वाराणसी क्लस्टर उन 20 हघकरघा क्लस्टरों में से एक है जिनकी वर्ष 2005-06 में कपड़ा मंत्रालय द्वारा क्षमता निर्माण समर्थन, बाजार विकास के दृष्टिकोण, तकनीकी और संस्थागत विकास के लिए पहचान की गई थी।सभी क्लस्टरों के लिए 40 करोड़ रुपये की लागत के साथ इस योजना के दायरे में कच्चे माल की आपूर्ति, विपणन समर्थन, डिजाइन इनपुट, प्रौद्योगिकी के उन्नयन और बुनकरों के कल्याण के लिए प्रत्येक क्लस्टर में हथकरघा क्षेत्र की सभी जरूरतों को लाया जाएगा। इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ हैंडलूम टेक्नोलॉजी (आईआईएचटी) और परियोजना के समन्वयक प्रमोद श्रीवास्तव ने ‘बिजनेस स्टैंडर्ड‘ को बताया, ‘उत्पाद पोर्टफोलियो का विविधीकरण समय की मांग है। अब बनारसी साड़ी से आगे बढ़ने और अन्य उपयोगी वस्तुओं में प्रयोग करने का समय आ गया है।‘
वाराणसी में और इसके आसपास तकरीबन एक लाख हथकरघा बुनकर हैं। वाराणसी हैंडलूम क्लस्टर का मुख्य उत्पाद साड़ी है और इसका दबदबा अभी भी कायम है। उत्पादन के कुल मूल्य में साड़ी की भागीदारी अनुमानित रूप से 90 फीसदी से लेकर 95 फीसदी है। उन्होंने कहा, ‘पारंपरिक कढ़ाई वाली साड़ियों की मांग में कमी आई है। बुनकरों को खरीदारों का ध्यान आकर्षित करने के लिए अपनी डिजाइन, उत्पादों और लागत नियंत्रण के साथ प्रयोग करने की जरूरत है।‘
उन्होंने कहा कि हम ऐसी प्रदर्शनियों के जरिये 4 लाख रुपये तक के ऑर्डर हासिल करने में सक्षम हैं। श्रीवास्तव ने बताया, ‘हथकरघा क्षेत्र के लिए न सिर्फ वित्तीय रियायत जारी रखे जाने की जरूरत है बल्कि उत्पादन के आधुनिकीकरण, धागे, डाई और रसायनों आदि की उचित मूल्य पर नियमित आपूर्ति और डिजाइन एवं बुनाई के नए पैटर्न में प्रशिक्षण के लिए संस्थागत समर्थन भी