Crude oil impact: ऐसा माना जाता है कि जब कच्चे तेल (crude oil) की कीमतें बढ़ती हैं, तो शेयर बाजार में गिरावट आती है। लेकिन आंकड़े दिखाते हैं कि यह हमेशा सही नहीं होता। वित्त वर्ष 2012 (FY12) में ब्रेंट क्रूड की कीमतें 32% बढ़कर 115 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंचीं, तब निफ्टी 50 इंडेक्स में 9.2% की गिरावट दर्ज की गई थी।
लेकिन इसके अगले दो सालों में जब तेल की कीमतें 110 डॉलर (FY13) और 108 डॉलर (FY14) रही, तो निफ्टी ने उल्टा फायदा दिखाया। FY13 में इंडेक्स 7.3% बढ़ा और FY14 में 18% की जोरदार छलांग लगाई। उस समय भारत की GDP ग्रोथ भी ठीक-ठाक थी – FY13 में 5.5% और FY14 में 6.4%।
इक्वीनोमिक्स रिसर्च के प्रमुख जी. चोक्कलिंगम बताते हैं कि 2007 से 2014 के बीच ट्रिपल डिजिट (100 डॉलर से ऊपर) तेल कीमतें आम थीं। लेकिन 2014 के बाद हालात बदले। अमेरिका ने अपने उत्पादन को बढ़ाया और शेल गैस का उपयोग शुरू किया। वहीं चीन ने मैन्युफैक्चरिंग से हटकर सर्विस सेक्टर पर ध्यान देना शुरू किया। इन वजहों से अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार में नरमी आई।
उनका कहना है कि 2013-14 के बाद वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत जैसे सोलर और विंड को भी महत्व मिलने लगा। बाजार ने कच्चे तेल के साथ-साथ इन विकल्पों को भी ध्यान में रखना शुरू कर दिया। इसलिए अगर तेल की कीमतें बहुत तेजी से और ज्यादा समय तक नहीं बढ़तीं, तो वे शेयर बाजार के लिए हमेशा नुकसानदेह नहीं होतीं।
FY22 में जब कच्चा तेल औसतन 81 डॉलर प्रति बैरल रहा (जो FY21 से 81% ज्यादा था), तब भी निफ्टी 50 करीब 19% ऊपर गया। इसके अगले साल FY23 में कीमतें 96 डॉलर प्रति बैरल तक बढ़ीं, लेकिन निफ्टी में गिरावट सिर्फ 0.6% ही रही।
हालांकि हाल की घटनाओं ने निवेशकों की चिंता बढ़ा दी है। deVere Group के CEO नाइजल ग्रीन का कहना है कि बाजार अब ‘खतरनाक लापरवाही’ दिखा रहा है। उनका कहना है कि निवेशक अब भी पुराने नजरिए से सोच रहे हैं, जबकि हालात बहुत बदल चुके हैं।
ग्रीन कहते हैं कि सोना और तेल तो सही तरीके से रिएक्ट कर रहे हैं, लेकिन शेयर बाजार इस तनाव को नजरअंदाज कर रहा है। खासतौर पर जब इजरायल ने ईरान के अंदर की सुविधाओं को निशाना बनाना शुरू किया है, तो यह संघर्ष अब प्रत्यक्ष युद्ध की तरफ बढ़ रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस संघर्ष के चलते ऊर्जा बाजार में बड़ा असर पड़ सकता है। स्ट्रेट ऑफ होरमुज़ एक अहम रास्ता है जहां से हर दिन करीब 17 मिलियन बैरल तेल गुजरता है। यह दुनिया की कुल आपूर्ति का करीब 20% है। अगर यह रास्ता बाधित होता है, तो कच्चे तेल की कीमतें 150 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकती हैं।
ग्रीन चेतावनी देते हैं कि अगर तेल की कीमतें इतनी तेजी से बढ़ीं, तो दुनिया के विकसित देशों की ब्याज दरें घटने की उम्मीदें भी खत्म हो सकती हैं। महंगाई फिर से बढ़ सकती है और शेयर बाजार की तेजी रुक सकती है।