स्वास्थ्य

भारत में क्लीनिकल ट्रायल मंजूरी कोविड के पहले जैसी

पैरेक्सेल दुनिया भर में हो रहे उसके 600 से ज्यादा परीक्षणों में से इस वक्त भारत में 30 क्लीनिकल परीक्षणों पर काम कर रहा है।

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सोहिनी दास   
Last Updated- June 25, 2024 | 10:39 PM IST

उद्योग के अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि भारत में क्लीनिकल परीक्षणों के लिए मंजूरी की समयसीमा वैश्विक महामारी से पहले के दिनों जैसी हो गई है। उनका दावा है कि वैश्विक महामारी के दौरान परीक्षण के लिए मंजूरी की समयसीमा में 30 से 40 प्रतिशत का खासा सुधार हो गया था।

दुनिया के सबसे बड़े क्लीनिकल रिसर्च संगठनों (सीआरओ) में शामिल पैरेक्सेल के प्रबंध निदेशक (भारत) और ग्लोबल एसबीयू प्रमुख (क्लीनिकल लॉजिस्टिक्स और वैश्विक सुरक्षा सेवाएं) संजय व्यास ने बिजनेस स्टैंडर्ड के साथ बातचीत में कहा कि पिछले 12 महीने में भारतीय नियामक ने लगभग 110 क्लीनकल परीक्षण के आवेदनों को मंजूरी दी है।

पैरेक्सेल दुनिया भर में हो रहे उसके 600 से ज्यादा परीक्षणों में से इस वक्त भारत में 30 क्लीनिकल परीक्षणों पर काम कर रहा है। सीआरओ भारत में 6,000 से ज्यादा लोगों को रोजगार देता है जो इसके वैश्विक कार्यबल का लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा है।

व्यास कहते हैं कि वैश्विक महामारी के दौरान आवेदन की समयसीमा में खासी तेजी देखी गई थी। उस समय वास्तविक समय की निगरानी और दूरस्थ निगरानी सहित और ज्यादा विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण अपनाया गया था। तब कोविड-19 के अध्ययनों के लिए परीक्षणों की मंजूरी 30 दिन या उससे भी कम समय में तथा कोविड-19 से इतर विषयों के मामले में लगभग 45 दिन में मंजूरी मिल जाती थी।

इंडियन सोसाइटी फॉर क्लीनिकल रिसर्च (आईएससीआर) के अध्यक्ष सानिश डेविस भी इस बात से सहमत हैं। उनके अनुसार ‘भारत में विनियामक समयसीमा लंबी हैं – 90 कार्य दिवस या साढ़े चार महीने तक। आचार समिति की मंजूरी की समयसीमाएं भी हैं, जो एक-दो महीने के वैश्विक औसत के मुकाबले भारत में लगभग दो-तीन महीने है।’

उन्होंने कहा कि जब इसकी तुलना एशिया के अन्य देश – मलेशिया से की जाती है, तो उसकी समयसीमा 30 दिन (क्लीनिकल परीक्षण के लिए आवेदन पर नियामकीय की मंजूरी के लिए) है और आचार समिति की प्रक्रिया इसके समानांतर चलती रहती है तथा लगभग डेढ़ महीने में अध्ययन शुरू हो जाता है और चल रहा होता है।

डेविस और उद्योग के अन्य अंदरूनी सूत्र इस नियामकीय देरी के पीछे कर्मियों की कमी की ओर इशारा करते हैं। डेविस कहते हैं, ‘अमेरिका या यूरोपीय संघ में नियामक के कार्यालय में लगभग 40 से 50 कर्मचारी क्लीनिकल परीक्षण की मंजूरी का ध्यान रखते हैं। लेकिन भारत के केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) के मामले में ऐसा नहीं है।

उन्होंने कहा कि समयसीमा में देरी की वजह से आम तौर पर प्रायोजकों (फार्मास्युटिकल कंपनियों) को अपने परीक्षणों के संचालन के लिए अन्य देशों पर विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इस विषय में सीडीएससीओ को भेजे गए ईमेल का जवाब नहीं मिला।

हालांकि रसायन और उर्वरक मंत्रालय के फार्मास्युटिकल विभाग द्वारा भारत में सीआरओ क्षेत्र पर नवंबर 2023 में किए गए अध्ययन में कहा गया था कि नियामकीय देरी वास्तव में एक चुनौती है।

First Published : June 25, 2024 | 10:10 PM IST