प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
हर साल 5 सितंबर को मनाया जाने वाला शिक्षक दिवस केवल महान गुरुओं को याद करने और मौजूदा बेहतरीन अध्यापकों का सम्मान करने का ही दिन नहीं है, यह देश में स्कूलों, शिक्षा और इस पूरी व्यवस्था को चलाने वालों की स्थिति पर विचार करने का भी मौका होता है। ताजा आंकड़े 3 स्पष्ट पैटर्न दिखाते हैं- निजी स्कूलों में शिक्षकों की अनुपातिक हिस्सेदारी बढ़ रही है, लेकिन आधे से अधिक अभी भी सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में कार्यरत हैं। स्कूलों में छात्रों का नामांकन लगातार गिर रहा है। हालांकि हाल के वर्षों में छात्र-शिक्षक अनुपात में सुधार हुआ है, फिर भी यह अधिकांश वैश्विक मानकों से पीछे है।
ताजा आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2025 में 50.9 प्रतिशत शिक्षक सरकारी क्षेत्र में कार्यरत हैं। इसके बाद दूसरे नंबर पर निजी क्षेत्र आता है, जहां लगभग 40 प्रतिशत शिक्षक काम कर रहे हैं। जबकि शिक्षकों की कुल संख्या वित्त वर्ष 2020 में 96.9 लाख से बढ़कर वित्त वर्ष 2025 में 1.01 करोड़ हो गई, लेकिन यह वृद्धि ज्यादातर निजी स्कूलों में दर्ज की गई है।
स्कूली शिक्षा व्यवस्था में शिक्षण कार्यबल का तो विस्तार हुआ है, लेकिन छात्र आधार घटा है। स्कूलों में छात्रों का नामांकन 2019-20 में 26.5 करोड़ से गिरकर 2024-25 में 24.7 करोड़ दर्ज किया गया। यानी दाखिला लेने वाले छात्रों की संख्या में लगभग 1.8 करोड़ की गिरावट आई है। कोविड महामारी के दौरान 2020-21 में छात्रों का नामांकन बहुत तेजी से गिरा था, लेकिन हालात सुधरने के बाद भी स्कूलों में छात्रों की संख्या नहीं बढ़ी। इसके उलट पिछले तीन वर्षों से लगातार नामांकन में गिरावट देखी जा रही है।
छात्रों की संख्या लगातार कम होने बावजूद 2022 में देश में छात्र-शिक्षक अनुपात अधिकांश विकसित और घनी आबादी वाले देशों की तुलना में ज्यादा दर्ज किया गया था। देश का प्राथमिक स्तर पर छात्र और शिक्षकों का अनुपात 23 था।