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एल्कोहल पर आयात शुल्क बढ़ाने का हक राज्य सरकार को नहीं

Last Updated- December 09, 2022 | 2:58 PM IST

सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले सप्ताह फैसला दिया था कि हिमाचल प्रदेश सरकार उत्तर प्रदेश से खरीदे जाने वाली शोधित स्पिरिट और पोटेबल एल्कोहल के आयात पर लेवी नहीं बढ़ा सकती।


‘मोहन मीकिन लिमिटेड बनाम स्टेट ऑफ हिमाचल प्रदेश’  मामले में कसौली (हिमाचल प्रदेश) में डिस्टिलरी ने मोहन नगर और हिमाचल प्रदेश के ऊना में अपनी इकाइयों से ‘माल्ट स्पिरिट ऑफ ओवर प्रूफ स्ट्रेंथ’ आयात किया था। 

कंपनी ने हिमाचल प्रदेश के आबकारी संग्राहक से आयात की अनुमति पहले ही हासिल कर ली थी। इसके लिए अधिकारियों ने 1996 में अधिक परमिट शुल्क वसूला था। कंपनी ने इसे उच्च न्यायालय में यह तर्क पेश करते हुए चुनौती दी कि राज्य सरकार को ऐसा करने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं था।

हालांकि कंपनी की याचिका को खारिज कर दिया गया। लेकिन इसकी अपील पर सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फैसले को दरकिनार कर दिया और इस मामले पर पुनर्विचार किए जाने को कहा।

पर्यावरण का हित

सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के राय बरेली के न्यायिक मजिस्ट्रेट (प्रदूषण) को निर्देश दिया है कि वे साई नदी को प्रदूषित करने के आरोप में मोदी कारपेट्स के संयुक्त प्रबंध निदेशक बी के मोदी और कंपनी के अन्य बड़े अधिकारियों के खिलाफ मामले को आगे बढ़ाएं।

इलाहबाद उच्च न्यायालय ने शुरू में मोदी के खिलाफ इस मामले को यह आधार पेश करते हुए समाप्त कर दिया था कि मोदी कंपनी के रोजमर्रा के कार्यों से प्रत्यक्ष रूप से नहीं जुड़े हुए हैं।

सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को यह कहते हुए दरकिनार कर दिया कि सवाल यह है कि कंपनी से मोदी प्रत्यक्ष तौर पर जुड़े हुए हैं या नहीं,

इसका फैसला ट्रायल पर किया जाना चाहिए न कि उच्च न्यायालय द्वारा। मुख्य न्यायाधीश के जी बालाकृष्णन द्वारा सुनाए गए फैसले में जोर देकर कहा गया है, ‘हमारे पर्यावरण के स्तर को बहाल करने और प्रदूषण स्तर को नियंत्रित करने के लिए वाटर पॉल्युशन एक्ट के संदर्भ में जितनी जिम्मेदारी संसद और विधायकों की है, उतनी ही जिम्मेदारी अदालतों की है।’

निविदा ठुकराए जाने का मामला

सर्वोच्च न्यायालय ने रेल मंत्रालय की मूल्यांकन समिति से मैसर्स गणपति आरवी-टैलेरीज एलेग्रिया ट्रैक लिमिटेड की उस बोली पर पुनर्विचार करने को कहा है जिसे ठुकरा दिया गया था। इस मामले में मोटे वेब स्विचों के लिए कंपनी की निविदा अंतिम समय में बिना कोई कारण बताए ठुकरा दी गई थी।

कंपनी ने आरोप लगाया है कि इस बोली में कार्टल था। उधर रेलवे का कहना था कि यह बोली गलतबयानी के कारण गलत तरीके से स्वीकार की गई थी। दिल्ली उच्च न्यायालय ने कंपनी की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि इसने रेलवे द्वारा तय मानदंडों को पूरा नहीं किया था।

लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इसकी अपील पर कहा है कि उच्च न्यायालय का फैसला गलत था। सर्वोच्च न्यायालय ने कंपनी के ऑफर पर पुनर्विचार को कहा है।

आरोपी के खिलाफ सबूत जरूरी

सर्वोच्च न्यायालय ने मद्रास उच्च न्यायालय के एक फैसले के खिलाफ दायर की गई तमिलनाडु विद्युत बोर्ड की उस अपील को खारिज कर दिया है जिसमें रासीपुरम टेक्स्टाइल्स लिमिटेड के प्रबंध निदेशक और अन्य निदेशक को बिजली चोरी के एक मामले में दोषमुक्त कर दिया गया।

ट्रायल कोर्ट ने दोनों को दोषी ठहराया था। लेकिन मद्रास उच्च न्यायालय ने उन्हें बरी कर दिया। मद्रास उच्च न्यायालय ने इस आधार पर निदेशकों को बरी कर दिया कि बोर्ड यह साबित करे कि ये निदेशक बिजली चोरी के लिए प्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार हैं।

लेकिन बोर्ड ऐसा करने में सफल नहीं रहा। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि अपराध के लिए जिम्मेदार सबूत के अभाव में इन निदेशकों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

First Published - December 28, 2008 | 11:46 PM IST

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