प्रतीकात्मक तस्वीर
चार नई श्रम संहिताओं को अधिसूचित करने के लिए कोई निश्चित समय-सीमा नहीं होने के कारण केंद्र सरकार ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को अपने मौजूदा श्रम कानूनों में आवश्यक बदलाव करने के लिए कहा है।
आधिकारिक सूत्रों ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को यह भी कहा गया है कि वे अपने श्रम कानूनों को श्रम संहिताओं की भावना एवं प्रावधानों के अनुरूप बनाएं।
सूत्रों ने कहा, ‘केंद्र सरकार ने कारोबारी सुगमता को आगे बढ़ाने और श्रम संगठनों के साथ विवादों में उलझे बिना निवेश आकर्षित करने तथा रोजगार के अवसर पैदा करने के उद्देश्य से राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को अपने मौजूदा श्रम कानूनों में उपयुक्त संशोधन करने की सलाह दी है। श्रम सुधार के मामले में मजदूर यूनियनों का रवैया काफी अड़ियल और अपनी बातों पर अडिग रहने वाला दिख रहा है। अगर यूनियन अपने रुख में बदलाव के साथ कुछ रचनात्मक प्रतिक्रिया देती हैं तो सरकार सभी प्रावधानों पर बात करने के लिए तैयार है।’
केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच ने 9 जुलाई से चार श्रम संहिताएं लागू किए जाने के विरोध में अपनी राष्ट्रव्यापी आम हड़ताल टाल दिया है। हड़ताल 20 मई से होने वाली थी मगर देश में ‘वर्तमान स्थिति पर समुचित विचार’ के बाद इसे टाल दिया गया। इस मंच में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) समर्थित भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) को छोड़कर 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियन शामिल हैं।
आधिकारिक सूत्रों ने कहा, ‘नई श्रम संहिताओं को अधिसूचित करने के लिए अभी तक कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान राज्यों के साथ व्यापक विचार-विमर्श किया गया है और उन्हें इन सुधारों को आगे बढ़ाने का नेतृत्व करने के लिए समझाने की कोशिश की गई है। अधिकतर राज्य केंद्र की श्रम संहिताओं के अनुरूप संशोधन पहले ही कर चुके हैं।’
कारोबारी सुगमता को बेहतर करने और श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए श्रम कानूनों में सुधार करने के उद्देश्य से 2020 में संसद ने 29 मौजूदा श्रम कानूनों को 4 संहिताओं में डालने का प्रस्ताव पारित किया था। इन संहिताओं में वेतन पर संहिता, सामाजिक सुरक्षा पर संहिता, व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य करने की स्थिति पर संहिता और औद्योगिक संबंध संहिता शामिल हैं। कई राज्यों ने अपने श्रम कानूनों में उद्योग की प्रमुख मांगों के अनुरूप संशोधन करने के लिए काफी सक्रियता से पहल की है। यह राज्य को निवेश के अनुकूल एक प्रमुख केंद्र के रूप में स्थापित करने की व्यापक रणनीति का हिस्सा है। उदाहरण के लिए करीब 20 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने सरकारी मंजूरी के बिना छंटनी की सीमा बढ़ा दी है और अब 100 के बजाय 300 तक कर्मचारियों को निकाला जा सकता है। उद्योग लंबे समय से इसकी मांग कर रहा था।
इस बीच 19 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने फैक्टरी अधिनियम के लागू होने के लिए श्रमिकों की संख्या दोगुनी करते हुए 20 (बिजली वाली इकाइयों के लिए) और 40 (बिना बिजली वाली इकाइयों के लिए) कर दी है। इतने ही राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों ने संविदा श्रम अधिनियम के लागू होने के लिए निर्धारित सीमा को भी मौजूदा 20 श्रमिक से बढ़ाकर 50 श्रमिक कर दिया है।
सूत्रों ने आगे कहा, ‘ऐसा नहीं है कि श्रम कानूनों में संशोधन केवल राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) शासित राज्यों तक ही सीमित हैं। विपक्षी दलों द्वारा शासित कई राज्य भी इस ओर कदम बढ़ाते हुए अपने श्रम कानूनों में बदलाव किए हैं। इससे पता चलता है कि ये राज्य निवेश को कितना महत्त्व देते हैं खासकर विनिर्माण क्षेत्र में।’