सर्वोच्च न्यायालय ने बिहार राज्य वित्त निगम की अपील को खारिज कर दिया है जिसने छोटानागपुर मिनरल्स की गिरवी संपत्ति के अलावा परिसर में पड़ा उसका अन्य सामान भी बेच दिया था।
मामला यह था कि कंपनी ने निगम से ऋण लिया था और वह उसे लौटाने में विफल रही। इसलिए निगम ने गिरवी रखी गई इमारत और मशीनरी को बेच दिया। लेकिन निगम ने साथ में परिसर में पड़े उस सामान को भी बेच दिया था जो गिरवी नहीं रखा गया था।
इनमें से कुछ भारतीय रिजर्व बैंक के पास गिरवी रखा हुआ था। कंपनी ने क्षतिपूर्ति के लिए निगम के खिलाफ मामला दर्ज करा दिया। झारखंड उच्च न्यायालय ने इसे मंजूरी दे दी। सर्वोच्च न्यायालय ने निगम की अपील खारिज कर दी और उससे कंपनी को हर्जाना देने को कहा।
विवाद निपटारे की जगह
जब किसी अनुबंध को लेकर दो पक्षकारों के बीच विवाद पैदा हो जाता है तो इसकी सुनवाई उन्हीं अदालतों में की जा सकती है जिनका नाम अनुबंध में शामिल हो। यह फैसला पिछले सप्ताह सर्वोच्च न्यायालय ने ‘राजस्थान राज्य विद्युत बोर्ड बनाम यूनिवर्सल पेट्रोल केमिकल्स लिमिटेड’ मामले में सुनाया था।
बोर्ड ने ट्रांसफॉर्मर ऑयल कंपनी को दो ऑर्डर दिए थे। यह कंपनी कोलकाता में स्थित है। कंपनी ने जो आपूर्ति की थी, उसमें त्रुटि पाई गई और बोर्ड ने इसे ठुकरा दिया था।
कंपनी मध्यस्थता के लिए कलकत्ता उच्च न्यायालय में चली गई। बोर्ड ने यह तर्क पेश किया कि समझौते के मुताबिक सभी विवादों का निपटारा जयपुर में होगा।
कलकत्ता उच्च न्यायालय ने इस तर्क को खारिज कर दिया। कोलकाता की इस कंपनी ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर दी। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अनुबंध में जिस अदालत का उल्लेख किया गया है, वहीं यानी जयपुर की अदालत ही इसकी सुनवाई करेगी।
इसका पालन किया जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के फैसले को पलटते हुए इस मामले को जयपुर स्थानांतरित कर दिया।
थर्ड पार्टी बीमा का मामला
सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि थर्ड पार्टी बीमा अनुबंध के मुताबिक कोई बीमा कंपनी वाहन के मालिक या ड्राइवर की दुर्घटना में मौत या इनके घायल होने पर उन्हें मुआवजा चुकाने के लिए जिम्मेदार नहीं है।
बीमाकर्ता की देयता तभी बनती है जब बीमित व्यक्ति ने जरूरी थर्ड पार्टी बीमा के साथ साथ ऐसी क्षतिपूर्ति के लिए एक अलग अनुबंध कर रखा हो।
न्यायालय ने यह बात झारखंड उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी की अपील पर मोटर व्हीकल्स एक्सीडेंट ट्रिब्यूनल और उच्च न्यायालय ने बीमा कंपनी को वाहन के मालिक, जिसके बेटे की दुर्घटना में मौत हो गई थी, को थर्ड पार्टी क्लेम चुकाने का आदेश दिया था।
ट्रक की सवारी को मुआवजा नहीं
मोटर व्हीकल्स ऐक्ट से जुड़े एक और मामले- ‘नैशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम रत्तानी’ में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया है कि किसी मालवाहक मोटर गाड़ी में मुफ्त या बिना कारण ही यात्रा कर रहे यात्रियों की अगर मौत हो जाती है या वे घायल हो जाते हैं तो ऐसी स्थिति में उनके लिए बीमा कंपनी से मुआवजा का दावा नहीं किया जा सकता।
न्यायालय ने कहा कि वाहन में ले जाए जा रहे सामान के मालिक या उसके द्वारा अधिकृत व्यक्ति ही ऐसे मुआवजे का हकदार होगा।
न्यायालय ने दुर्घटना का शिकार हुए व्यक्ति के संबंधियों के उस तर्क को खारिज कर दिया कि वह व्यक्ति 30 सदस्यीय बारात का हिस्सा था और वह दुल्हन पक्ष की ओर से मिले उपहारों को लेकर जा रहा था, इसलिए उसे मुआवजा मिलना चाहिए।