झींगा को मछली कहना गलत है। यह बात मद्रास उच्च न्यायालय ने अपने एक ताजा फैसले में कही है।
मामला यह था कि क्या झींगा के लिए निर्यात उपकर लागू है, जैसा कि एग्रीकल्चर प्रोडयूस सेस ऐक्ट, 1940 के तहत मछली के निर्यात पर लागू होता है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि झींगा एक मछली नहीं है और इसलिए उसका निर्यात उपकर के दायरे में नहीं आता। यहां मैं आपको यह बताने जा रहा हूं कि यह मानना कि झींगा एक मछली नहीं है, आम बोलचाल की भाषा से अलग नहीं है। कर-निर्धारण के उद्देश्य से इस पर ध्यान दिया जाना जरूरी है।
सर्वोच्च न्यायालय के कई फैसलों में यह बात स्वीकार की गई है कि कर निर्धारण उद्देश्य के लिए शब्दों को लोकप्रिय अर्थ में समझना होगा, यानी जैसा कि इन्हें बाजार की भाषा में समझा जाता है।
सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया है कि लोकप्रिय बोलचाल में शब्दों का मतलब जीव विज्ञान, वनस्पति विज्ञान या प्राणि विज्ञान की पुस्तकों में वैज्ञानिक मतलब से अक्सर अलग होता है।
पान के पत्ते के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि वनस्पति विज्ञान की दृष्टि से यह एक सब्जी है, लेकिन बाजार की भाषा में ऐसा नहीं है।
मद्रास उच्च न्यायालय के इस मामले में स्पष्ट कहा गया कि बाजार की भाषा में मछली में झींगा को शामिल नहीं किया गया है। न्यायालय ने कहा, ‘दक्षिण भारत में मछली और झींगा बेहद स्वादिष्ट माने जाते हैं।
यदि आम बोलचाल की भाषा की जांच व्यावहारिक है तो यह तर्क पेश नहीं किया जा सकेगा कि मछली और झींगा एक ही हैं। यदि कोई व्यक्ति बाजार में मछली मांगता है और यदि उसे इसके बदले में झींगा दे दिया जाता है तो वह इसे स्वीकार नहीं करेगा।’
मैं यह बताना चाहूंगा कि ऐसा सिर्फ दक्षिण भारत में ही नहीं है बल्कि पूरे भारत में मछली और झींगा पसंदीदा बने हुए हैं और झींगा को मछली माना जाता है। जब कोई व्यक्ति मछली खरीदने जाता है तो वह सिर्फ मछली की ही मांग नहीं करता है।
वह हमेशा कहता है कि उसे एक विशेष वैरायटी यानी अन्य प्रजाति की मछली चाहिए। झींगा हमेशा मछली की दुकानों में बेची जाती है और इसे मछली की अन्य प्रजातियों के तौर पर बेचा जाता है।
इसे बांग्ला भाषा में ‘चिंगड़ी माछ’ मछली के रूप में, हिन्दी में ‘झींगा मछली’, तमिल में ‘एर्रामीन’ और मलयालम में ‘चेमीन’ के तौर पर जाना जाता है और खाया जाता है।
जीव विज्ञान की दृष्टि से मछली और झींगा एकदम अलग हैं। मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा उध्दृत उड़ीसा उच्च न्यायालय के फैसले में यही कहा गया कि ये दोनों प्राणि जीव विज्ञान की दृष्टि से और गुणात्मक रूप से अलग हैं। मछली और झींगा एक नहीं हैं जैसा कि आम बोलचाल की भाषा में कहा जाता है।
हालांकि कोई भी व्यक्ति झींगा और मछली के बीच अंतर को अन्य तरह से भी स्पष्ट कर सकता है। उदाहरण के लिए, झींगा और मछली को खिलाया जाने वाला चारा भी अलग है और बिक्री कर दर की प्रविष्टियों में भी यह भेद देखा जा सकता है। कृषिगत उत्पादों और समुद्री उत्पादों के लिए कानून अलग अलग हैं।
मद्रास उच्च न्यायालय से पहले यह मौजूदा मामला उस एग्रीकल्चर प्रोडयूस सेस एक्ट, 1940 के तहत था, जिसे केंद्र सरकार द्वारा लागू किया गया था। इसी तरह समुद्री उत्पादों के लिए अलग अधिनियम है जिसका नाम है मैरीन प्रॉडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी ऐक्ट।
इससे यह निष्कर्ष सामने आता है कि झींगा और मछली के बीच विभिन्न उद्देश्यों के लिए भेद किया जा सकता है जैसे, चारे का विकास या कृषि या समुद्री उत्पादों के शोध के लिए मुहैया कराई जाने वाली वित्तीय सहायता आदि का आकलन करना। अत: यह स्पष्ट है कि बाजार की भाषा में झींगा एक मछली नहीं है। लेकिन आम बोलचाल की भाषा में झींगा एक मछली है।