बजट 2008 में एक प्रस्ताव था, जिसमें कुछ नियमों के संशोधन की बात कही गई है और जिसे 1 अप्रैल, 2008 से लागू किया जा चुका है।
इसमें कुछ खर्चों पर दिए जाने वाले सेवा कर के बकाया को सीमित करने को कहा गया है। इन खर्चों में मुख्यतौर पर निर्माता कंपनियों के अंतिम उत्पाद को बेचने के लिए परिवहन शामिल है।इस संशोधन के पीछे परिवहन पर सेवा कर भुगतान कर चुके इनपुट टैक्स बकाया की पात्रता में पैदा हो रही अनिश्चितता की स्थिति पर रोक लगाना था, जैसा कि ट्रिब्यूनल की ओर से लिए गए अलग-अलग निर्णयों की वजह से हो रहा था।
इसके लिए उचित होगा कि पहले ‘इनपुट सेवाओं’ की परिभाषा का विश्लेषण किया जाए, जिसमें वे सभी सेवाएं आती हैं जो निर्माता कंपनियों द्वारा इस्तेमाल की जाती हैं, फिर चाहे यह प्रत्यक्ष हों या अप्रत्यक्ष, अंतिम उत्पाद के उत्पादन से संबंध रखने वाली और अंतिम उत्पादन को उसके मूल स्थान से हटाने वाली।
इस परिभाषा का एक और भाग भी है, जो इसमें शामिल है और जिसमें एक सेवा है, सामान निकालने के स्थान तक के लिए बाहरी परिवहन। अंतिम उत्पाद को उसके स्थान से निकालने के संबंध में व्यंजक सेवा के अर्थ में समस्या पैदा होती है।
गुजरात अंबुजा सीमेंट बनाम सीसीई (2007-टीआईओएल-539) में पहले निर्णय में, ट्रिब्यूनल ने कहा कि निर्माता की फैक्टरी से और डिपो से ग्राहक के प्रांगण तक उत्पादों के परिवहन पर लगने वाली लागत पर भुगतान किया जा चुका सेवा कर इनपुट टैक्स बाकाया के रूप में उपलब्ध नहीं होगा।
ट्रिब्यूनल इस निर्णय पर पहुंचा कि उत्पादन इकाइयों के स्थान से अंतिम उत्पादों की व्यंजक निकासी का सिर्फ यही मतलब हो सकता है कि यह खर्च वैसे तो निकासी से ही संबंधित होता है और इसे उत्पादन इकाइयों के स्थान से परे परिवहन के लिए बढ़ाया नहीं जा सकता। ट्रिब्यूनल इस निर्णय पर भी पहुंचा कि यह सिर्फ दूसरा उपबंध था, जो समेकित परिभाषा का हिस्सा बनाता है, जिसमें मुनाफे को स्पष्ट रूप से परिवहन की ओर बढ़ा दिया गया है।
एक व्यापक परिदृश्य में, ट्रिब्यूनल ने उत्पादन इकाई से आगे परिवहन पर इनपुट टैक्स बकाया को अस्वीकृत कर दिया। इस निर्णय के अनुसार, ट्रिब्यूनल ने इसी तरह के दो और मामलों में निर्णय लिया। भारत में जापान लाइटिंग प्राइवेट लिमिटेड बनाम सीसीई (2007 (8) एसटीआर 124) मामले में लिया गया निर्णय एक प्रामाणिक है और इसमें ‘इनपुट सेवाओं’ की परिभाषा की सम्मिलित और एकसमान तरीके से व्याख्या की गई है, न कि वैकल्पिक तरीके से जैसा कि कंपनियां दलीलें देती हैं।
हालांकि, एक अन्य मामले में भारत सीमेंट्स लिमिटेड बनाम सीसीई (2007 (8) एसटीआर 43), ट्रिब्यूनल गुजरात अंबुजा सीमेंट्स (सुप्रा) के निर्णय से सहमत नहीं था और उसने निर्णय लिया कि उत्पादन इकाई से खरीदार के प्रागंण तक बाह्य परिवहन को बकाया के रूप में स्वीकार्य किया जा सकता है, क्योंकि यह उत्पादन इकाई से अंतिम उत्पाद की निकासी के संबंध में ही एक सेवा दी गई है। इसी के अनुसार, ट्रिब्यूनल ने मामले को अंतिम निर्णय के लिए बड़ी बेंच को निर्देश दे दिया।
बड़ी बेंच के विचाराधीन निर्णय के दौरान ही सरकार ने नियमों में संशोधन का प्रस्ताव रख दिया, जिसमें इनपुट सेवाएं अब अंतिम उत्पाद की उत्पादन इकाई से निकासी के संबंध में अन्य सेवाओं की तरह ही मानी जाएंगी।
इसके अनुसार, इनपुट सेवाओं की परिभाषा के पहले और परिभाषा के सम्मिलित भाग दोनों उत्पादन इकाई तक परिवहन पर इनपुट टैक्स में मुनाफे को सीमित करती हैं।इसका मतलब यह है कि उत्पादन इकाई से अंतिम उत्पादों की निकासी पर व्यय की गई परिवहन लागत, जैसे कि फैक्टरी से निकासी या डिपो से निकासी, पर कर बकाया में कोई मुनाफा नहीं उपलब्ध होगा। निर्माता कंपनियों की फैक्टरी से अंतिम उत्पाद निकाल कर डिपो तक परिवहन के संबंध में कर में मुनाफा उपलब्ध होगा।
संक्षेप में, प्राथमिक और द्वितीय परिवहन लागतों, ग्राहक के प्रांगण तक अंतिम उत्पाद की निकासी में किया हुआ व्यय, अब इनपुट टैक्स बकाया के लिए मान्य नहीं है और और इसमें फैक्टरी से डिपो तक अंतिम उत्पाद की निकासी प्राथमिक परिवहन के संबंध में मान्य है।
एक दिलचस्प मोड़ के रूप में, ट्रिब्यूनल के मेट्रो शूज प्राइवेट लिमिटेड बनाम सीसीई (2008-टीआईओएल-417) मामले के हालिया निर्णय में उत्पादन इकाई की परिभाषा को, निर्माता कंपनी के शोरूम, जहां से वस्तुएं बेची जाती हैं, निर्माता कंपनी की फैक्टरी से निकासी के बाद तक बढ़ाया गया है।