सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि कंपनी द्वारा अपने प्रबंधक को रहने के लिए दिए गए आवास को उसकी मौत के बाद कानूनी प्रतिनिधियों को खाली कर देना चाहिए।
अगर वे आवास को खाली नहीं करते हैं तो वे कंपनी कानून की धारा 630 के तहत अपराधिक कार्रवाई के लिए जिम्मेदार होंगे। यह फैसला ‘गोपिका चंद्रभूषण बनाम मैसर्स एक्सएलओ इंडिया लिमिटेड’ के मामले में दिया गया था।
यह मकान मुंबई में था और इस पर महारानी ऑफ ग्वालियर का स्वामित्व था और इसे एपीआई लिमिटेड को लीज पर दे दिया गया था। एपीआई लिमिटेड ने इसे चंद्रभूषण को आवंटित कर दिया जो इस कंपनी में निदेशक थे। बाद में वह एक्सएलओ इंडिया के प्रबंध निदेशक बन गए और दो कंपनियों के बीच समझौते के तहत यह लीज बरकरार रही।
लेकिन उनकी मौत के बाद कंपनी ने इसे खाली किए जाने की मांग की थी, परंतु उनकी बेटी ने इस मकान को खाली नहीं किया। इस मामले को लेकर कई स्तरों पर मुकदमेबाजी चली। चंद्रभूषण की बेटी की अपील को खारिज करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि अधिकारी की मौत के बाद उनके कानूनी प्रतिनिधि लीज वाले मकान को खाली करने के लिए बाध्य हैं।
गुजरात उच्च न्यायालय का फैसला पलटा
सर्वोच्च न्यायालय ने दो बोलीदाताओं के बीच एक विवाद में गुजरात उच्च न्यायालय के फैसले को दरकिनार कर दिया है। यह विवाद राज्य कृषि विश्वविद्यालय द्वारा नवसारी में एक पशु चिकित्सा कॉलेज के निर्माण की बोली प्रक्रिया से जुड़ा हुआ है।
विश्वविद्यालय इस कॉलेज की इमारत को जल्द तैयार करना चाहता था, क्योंकि अगर वह ऐसा नहीं करता तो उसे दिया जाने वाला अनुदान समाप्त हो सकता था। इसके निर्माण के लिए तीन बोलीदाताओं ने दिलचस्पी दिखाई जिनमें से दो इसके लिए योग्य पाए गए।
भवन निर्माण कंपनियों सूरत बिल्डर्स और श्रीजीकृपा बिल्डकॉन लिमिटेड के बीच विवाद पैदा हो गया। बाद वाली कंपनी यानी श्रीजीकृपा ने निविदा में तीन दिन का विलंब कर दिया, इसलिए उसकी बोली खारिज कर दी गई। यह कंपनी गुजरात उच्च न्यायालय में चली गई जिसने सूरत बिल्डर्स के चयन को अमान्य करार दे दिया। बाद में यह सर्वोच्च न्यायालय में चली गई जिसने सूरत बिल्डर्स के चयन का समर्थन किया।
विश्वविद्यालय के फैसले का समर्थन करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय की कार्रवाई ने पूरी प्रक्रिया में दखल दिया है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि निविदाओं को आमंत्रित किए जाने की शर्तों में दखल देकर गुजरात उच्च न्यायालय पूरी बोली प्रक्रिया को रद्द नहीं कर सकता। इससे कॉलेज के निर्माण में सिर्फ विलंब होगा और विश्वविद्यालय के खजाने पर भार बढ़ेगा।
केरल उच्च न्यायालय का फैसला नामंजूर
सर्वोच्च न्यायालय ने केरल उच्च न्यायालय के फैसले को दरकिनार कर दिया और ‘अतुल कमोडिटीज प्राइवेट लिमिटेड बनाम कमिशनर ऑफ कस्टम्स’ मामले में फैसला दिया कि जनवरी, 2005 से पहले पुरानी फोटोकॉपी मशीनों के आयात को विदेश व्यापार महानिदेशक के सर्कुलर के मुताबिक आयात लाइसेंस की जरूरत नहीं थी।
कस्टम्स, एक्साइज ऐंड सर्विस टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल (सीईएसटीएटी) ने सहमति जताई थी कि आयात को परमिट की जरूरत नहीं है और सामान की जब्ती की धमकी को लेकर कारण बताओ नोटिस को अमान्य करार दिया था।
केरल उच्च न्यायालय ने सीईएसटीएटी के आदेश को अवैध करार दे दिया। दूसरी तरफ कलकत्ता उच्च न्यायालय ने ट्रिब्यूनल के नजरिये का समर्थन किया। सर्वोच्च न्यायालय ने कलकत्ता उच्च न्यायालय का पक्ष लिया और केरल उच्च न्यायालय के फैसले को नामंजूर कर दिया।
न्यायाधिकरण के खिलाफ याचिका खारिज
सर्वोच्च न्यायालय ने कस्टम्स, एक्साइज ऐंड सर्विस टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल (सीईएसटीएटी) के फैसले के खिलाफ यूनिसन इलेक्ट्रॉनिक्स (पी) लिमिटेड की अपील को खारिज कर दिया है।
सीईएसटीएटी ने सामानों पर अन्य कंपनियों के ब्रांड नाम होने की वजह से यूनिसन को उत्पाद शुल्क छूट देने से इनकार कर दिया था। केंद्र सरकार की एक अधिसूचना के तहत लघु एवं मझोले उद्योगों को उत्पाद शुल्क में छूट प्रदान की गई है, लेकिन इसमें उन कंपनियों को शामिल नहीं किया गया है जो बोर ब्रांड नाम या अन्य कंपनियों के टे्रड नाम का इस्तेमाल करती हैं।