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  कानून  मामला देर से आए तो भी हो सकती है सुनवाई
कानून

मामला देर से आए तो भी हो सकती है सुनवाई

बीएस संवाददाता बीएस संवाददाता —May 12, 2008 12:24 AM IST0
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आर्बिट्रेशन अदालत से आए फैसले के खिलाफ सुनवाई की जा सकती है भले ही वह देरी से क्यों न आया हो।


हालांकि इसमें 4 महीनों से अधिक की देरी नहीं होनी चाहिए। इस तरह के 2 मामलों,कंसोलिडेटेड इंजीनियरिंग एंटरप्राइजेज बनाम प्रमुख सचिव और हट्टी गोल्ड माइन्स कंपनी लिमिटेड बनाम विनय हेवी इक्पिमेंट मामलों में कर्नाटक उच्च न्यायालय का अलग रुख रहा है।


इन मामलों में पाया गया कि असंतुष्ट पक्ष ने आर्बिट्रेशन को लेकर उचित अदालत का दरवाजा नहीं खटखटाया। जब तक मामला उचित अदालत में पहुंचाया गया तब तक काफी देरी हो चुकी थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में लिमिटेशन एक्ट की धारा 14 और आर्बिट्रेशन एंड कोंसिलेशन एक्ट की धारा 34 और 43 के तहत हस्तक्षेप किया और जिससे असंतुष्ट पक्ष को राहत पहुंची और इसमें देरी को भी नहीं माना गया।


कंपनी बनाम फ्रिंज बेनिफिट टैक्स


सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते अपने निर्णय दिया कि ऑस्ट्रेलियन कंपनी आर एंड बी फाल्कन को भारत में फ्रिंज बेनिफिट टैक्स नहीं देना होगा। इस विदेशी कंपनी ने अपने कर्मचारियों को कार्यस्थलों तक आने की मुफ्त सेवा मुहैया करायी। इस विदेशी कंपनी ने कुछ काम ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉर्पोरेशन (ओएनजीसी) के लिए किया जिसके चलते कंपनी को तीन साल पहले शुरू किया गया फ्रिंज बेनिफिट टैक्स देना बनता था।


इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आयकर की धारा 115 डब्ल्यू बी के तहत फैसला दिया कि यदि कंपनी अपने कर्मचारियों को कार्यस्थलों तक मुफ्त आने की सेवा मुहैया करा रही है तो इस तरह की सेवा पर कर नहीं लगाना चाहिए। कंपनी फ्रिंज बेनिफिट टैक्स देने से बच गई।


मामला टाइल्स के आयात निर्यात का


सुप्रीम कोर्ट ने ओरिएंट सेरेमिक्स एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड की याचिका को खारिज कर दिया। यह मामला सेरेमिक टाइल्स के आयात से जुड़ा हुआ है जिसमें कस्टम ट्राइब्यूनल ने कंपनी के खिलाफ फैसला दिया था। सर्वोच्च अदालत से भी कंपनी को किसी तरह की राहत नहीं मिली और सुप्रीम कोर्ट ने भी कस्टम ट्राइब्यूनल के फै सले को बरकरार रखा।


कंपनी का कहना है कि उसने ग्लेज्ड टाइल्स का आयात नहीं किया है और वही टाइल्स आयात की हैं  जिनके आयात के लाइसेंस की जरूरत नहीं है और जिनके आयात पर किसी तरह का शुल्क भी नहीं है। हालांकि नियामक का मानना है कि  कंपनी ने ग्लेज्ड टाइल्सों का ही आयात किया है।


इसके नमूनों को परीक्षण के लिए केंद्रीय राजस्व नियंत्रण प्रयोगशाला (सेंट्रल रेवेन्यू कंट्रोल लैबोरेटरी) भेजा गया है। प्रयोगशाला ने रिपोर्ट दी कि टाइल्स ग्लेज्ड ही हैं। उसके बाद कंपनी पर पेनाल्टी लगा दी गई और सर्वोच्च अदालत से भी कंपनी को कोई राहत नहीं मिली।


आय को लेकर स्पष्ट रखें आंकड़ें


सुप्रीम कोर्ट ने के पी मौहम्मद सलीम बनाम आयकर आयुक्त मामले में मामले में दिए फैसले में कहा है कि यदि किसी भी तरह से आय को छुपाया जाता है तो जनहित में मामले को क्षेत्र से दूर भी ले जाया जा सकता है। इसके साथ ही 10 साल पुरानी तक जांच भी हो सकती हैं।


इस मामले में, एक जगह पर केस सामने आया और टैक्स मामलों को दूसरे न्याय क्षेत्रों में ले जाया गया। इसमें प्रभावित पक्ष ने मामले को दूसरे न्याय क्षेत्रों में ले जाने के फैसले को चुनौती दी और तर्क दिया कि शुरूआती वर्षों में ब्लॉक एसेसमेंट (आकलन) नहीं करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने इन तर्कों को खारिज कर दिया और आकलन को जारी रखने का फैसला दिया।


मजदूरों को चुकाना होगा पूरा मेहनताना


सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास उच्च न्यायालय के एक फैसले को पलट दिया है। इस मामले में मद्रास उच्च न्यायलय ने फैसला दिया कि एस्सोर्प मिल्स लिमिटेड के जिन कर्मचारियों ने हड़ताल के जरिये काम को रोक दिया था उनको पूरी मजदूरी का भुगतान करना करना होगा।


मद्रास उच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि जब कोंसिलेशन कार्यवाही पूरी होनी बाकी थी और बिना इसकी मंजूरी लिए कर्मचरियों को बर्खास्त करके कंपनी ने इंडस्ट्रीज डिस्प्युट एक्ट की धारा 33 का उल्लंघन किया है। दूसरी ओर सर्वोच्च अदालत का कहना है कि कर्मचारियों ने हड़ताल की कोई पूर्व सूचना नहीं दी थी औैर कार्यवाही भी शुरू नहीं हो पाई थी।


सड़क दुर्घटना में मिले मुआवजा


सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक फैसले को पलट दिया और नैशनल इंश्योरेंस कंपनी को अपील करने की अनुमति प्रदान की। मामला एक सड़क दुर्घटना में पीड़ित को मुआवजा देने से जुड़ा हुआ है। इस मामले में प्रेमा देवी नाम की महिला एक माल ढ़ोने वाली गाड़ी में सफर कर रही थीं। गाड़ी के मालिक ने ऐसे यात्रियों के बीमे के लिए कोई पॉलिसी नहीं ले रखी थी।


बीमा कंपनी ने कहा कि वह क्यों पीड़ित को मुआवजा दे। उच्च न्यायालय ने बीमा कंपनी के तर्क को खारिज कर दिया लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बीमा कंपनी को राहत पहुंची है। न्यायालय ने पिछले साल के न्यू इंडिया एश्योरेंस बनाम वेदवती फैसले को नजीर बनाया और प्रेमा देवी को वाहन मालिक से मुआवजा वसूल करने का फैसला सुनाया। 

case will come late then also hearing is possible
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