रेफेरल फीस पर कर को लेकर भारत में चल रहे पहले न्यायिक परीक्षण में अथॉरिटी ऑफ एडवांस रूलिंग (एएआर) ने इस मामले को स्थगित करते हुए कहा है कि सिंगापुर की कंपनी कशमैन ऐंड वेकफील्ड के मामले में इस पर कर नहीं लगाया जा सकता क्योंकि भारत में स्थायी बंदोबस्त की मौजूदगी नहीं है।
एएआर ने अपने आदेश में कहा है कि इस तरह के भुगतान को रॉयल्टी की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता और न ही इस तरह की कोई बात आयकर कानून के प्रस्तावों के तहत भारत-सिंगापुर संधि के तहत की गई है। इसलिए इन गतिविधियों पर कर आरोपित करना जायज नहीं है।
भारतीय कानून के तहत किसी प्रवासी भारतीय कंपनी पर स्रोत आधारित नियमों के अंतर्गत कर लगाया जाता है, लेकिन कठोर दिशा निर्देशों के मातहत कभी कभी कर से राहत भी दी जाती है। इस स्रोत आधारित नियमों के तहत या तो आय को व्यापारिक आय की श्रेणी में रखा जाता है या इसे तकनीकी सेवा देने पर ली जाने वाली फीस के बतौर रखा जाता है। पहले वाले मामले में स्थायी बंदोबस्त का मौजूद रहना इन आयों पर कर लगाने की पूर्व निर्धारित शर्त माना जाता है।
सिंगापुर की कंपनी कशमैन ऐंड वाकफील्ड प्राइवेट लिमिटेड (सी एंड डब्ल्यू) घरेलू और अंतरराष्ट्रीय क्लाइंटों के लिए रियल एस्टेट से संबंधित सेवाएं मुहैया कराती है। पिछले कुछ सालों में सी एंड डब्ल्यू ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेहतरीन ग्राहक संबंध बनाए हैं और इस तरह से कंपनी ने अपनी एक अंतरराष्ट्रीय नीति भी बनाई है। इस नीति में यह प्रस्ताव किया गया है कि दूसरे सी ऐंड डब्ल्यू कार्यालयों में रेफेरल सेवाएं मुहैया कराए जांए।
वर्ष 2005 में सी ऐंड डब्ल्यू ने अपनी भारतीय सहयोगी कंपनी से रेफेरल सेवाओं को प्रदान करने को लेकर एक समझौता किया। इसके तहत सी ऐंड डब्ल्यू ने यह आश्वासन दिया कि भारत में मौजूद अपनी सहयोगी कंपनियों को वह रियल एस्टेट क्लाइंट, कंसल्टेंसी सेवाएं आदि मुहैया कराएगी। इस प्रस्ताव में इस बात का भी जिक्र किया गया कि इन सेवाओं को प्राप्त करने पर सी ऐंड डब्ल्यू इंडिया को रेफेरल फीस अदा करनी होगी।
एएआर से पहले के प्रश्न
वास्तविकता के आधार पर सी ऐंड डब्ल्यू ने एएआर से यह जानने की कोशिश की कि इस तरह की रेफेरल फीस जो ली जा रही है, वह भारत में बतौर रॉयल्टी या व्यापारिक आय में शामिल की जा रही है और अगर ऐसा है, तो इस तरह के भुगतान पर तो कर आरोपित होना चाहिए।
राजस्व विभाग का तर्क
पहले तो राजस्व विभाग ने यह तर्क दिया कि सी ऐंड डब्ल्यू सिंगापुर ने जो रेफेरल फीस के नाम पर भुगतान लिया है, वह बनावटी तौर पर कर को हटाया गया था। सी ऐंड डब्ल्यू कंपनी भी इस बात को साबित करने में नाकाम रही कि ली गई रेफेरल फीस आखिर किस मद में आती है। दूसरा, इस तरह की सेवाएं देने के लिए सहयोगी कंपनियों से बतौर कंसल्टेंसी फीस 30 प्रतिशत लेना भी न्यायसंगत नहीं था।
राजस्व विभाग ने कहा कि जो भी भुगतान किया गया, वह वाणिज्यिक सूचनाओं को प्रेषित करने के लिए दिया गया था, इसलिए यह भुगतान रॉयल्टी के अंतर्गत आता है। इसमें यह भी कहा गया कि घरेलू कानून और भारत-सिंगापुर संधि दोनों के मुताबिक यह रॉयल्टी के अंतर्गत आता है।
एएआर के आदेश
राजस्व विभाग के तर्क को नकारते हुए एएआर ने कहा कि इस मामले में ऐसा लग रहा है कि सी ऐंड डब्ल्यू को जो भुगतान किया गया है, वह रेफेरल फीस के अंतर्गत आता है। वैसे तो इस मामले पर कोई विवाद की बात उठती ही नहीं है। भुगतान की न्यायसंगतता पर एएआर ने कहा कि इस मामले में इस तरह का कोई मुद्दा उभरकर सामने नहीं आया है, इसलिए इस पर राजस्व विभाग को स्वतंत्र रूप से जांच करनी चाहिए।
एएआर ने कहा कि सी ऐंड डब्ल्यू ने भारत से बाहर या भारत में जिस प्रकार की गतिविधियों में अपने का संलग्न रखा है, वह संबंध या आकर्षण किसी भी रूप में व्यापारिक सूत्र को जाहिर नहीं करता है। इसके बाद एएआर ने कहा कि यह बात और अनौचित्यपूर्ण है कि सी ऐंड डब्ल्यू का भारत में स्थायी बंदोबस्त है या नहीं, इसके लिए भारत-सिंगापुर समझौते के प्रस्तावों को इस निहित हस्तांतरित किया जाए। ऐसा इसलिए क्योंकि अभी तक राजस्व विभाग ने भी इस बाबत किसी प्रकार की घोषणा भी तो नहीं की है।
दूसरी तरफ राजस्व विभाग की दलील है कि इस तरह की फीस को रॉयल्टी की श्रेणी में रखकर इस पर कर आरोपित होना चाहिए। इस पर एएआर ने यह कह कर इसे खारिज कर दिया कि यह किसी बौद्धिक संपदा के अंतर्गत नहीं आता था और न ही इसमें किसी भी रूप में बौद्धिक संपदा अधिकार किसी स्तर पर शामिल है। इस गतिविधियों में कहीं भी किसी प्रकार का वाणिज्यिक अनुभव या कौशल का भी इस्तेमाल सी ऐंड डब्ल्यू इंडिया के साथ किया गया था।
इस गतिविधि को रॉयल्टी की श्रेणी में रखने के पीछे राजस्व विभाग यह तर्क दे रहा है कि सी ऐंड डब्ल्यू किसी ट्रेडमार्क का अधिकारी नहीं है और इसलिए अगर गौर से देखा जाए, तो जिस प्रकार का व्यापारिक हस्तांतरण सी ऐंड डब्ल्यू ने किया वह रॉयल्टी के अंतर्गत आता है।
निष्कर्ष के तौर पर यह कहा जा सकता है कि अगर रेफरल फीस साधारण व्यापार आय के अंतर्गत आती हो, तो इस पर भारत में किसी प्रकार का कर आरोपित नहीं किया जा सकता है। इसकी वजह यह है कि भारत में स्थायी बंदोबस्त मौजूद नहीं है। आगे यह भी कहा गया कि चूंकि इस विवाद में किसी प्रकार कर आरोपन का मामला बनता ही नही है, इसलिए कर चोरी का तो कोई मसला ही नही बनता है।
अनुबोध
एएआर ने इस बात का अवलोकन किया कि भारतीय और सिंगापुर की इस कंपनी के बीच किसी प्रकार का व्यापारिक सूत्र नहीं दिख रहा है, फिर भी उसने कहा कि रेफरल का इंतजाम एक सतत प्रक्रिया की तरह है और इसमें समय समय पर बदलाव आ सकता है।
एएआर की इस सुनवाई से दो महत्वपूर्ण तथ्य उभरकर सामने आते हैं। इसमें यह बात उभरकर आई कि बहुत सारी बहुराष्ट्रीय कंपनियां, खासकर सॉफ्टवेयर कंपनियां, रेफेरल फीस पर कर लगाने का स्वागत कर रही हैं। बहुत सारी कंपनियां इस बात की भी सलाह दे रही हैं कि इस तरह की गतिविधियों को व्यापारिक गतिविधियों में शुमार किया जाए और उस पर वसूले जाने वाली रेफेरल फीस पर कर लगाया जाए।