निर्यातकों के लिए एक अच्छी खबर है। सीमा शुल्क विभाग अब इलेक्ट्रॉनिक डाटा इंटरचेंज (ईडीआई) संबंधित सेवाओं के जरिये सीमा शुल्क स्टेशन पर उनके दावे को पूरा करने की कोशिश करेगा।
हो भी क्यों नहीं, अब कोर बैंकिंग द्वारा अब देश के किसी कोने से वे अपने बैंक खाते का इस्तेमाल कर सकते हैं। केलकर समिति ने एक नोट में कहा था कि निर्यातक अपने खाते को उसी ब्रांच पर दावे के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं, जिस कस्टम स्टेशन पर वे निर्यात गतिविधियों को अंजाम देते हैं।
यह प्रक्रिया इस बात की मांग करता है कि खाते में न्यूनतम जमा रहना चाहिए और हस्तांतरण करने के लिए लेनदेन लागत की रकम भी उसमें जमा रहनी चाहिए। समिति ने इस बात का भी सुझाव दिया था कि सीमा शुल्क विभाग को इस तरह की व्यवस्था करनी चाहिए कि निर्यातक अपनी सुविधा के मुताबिक रुपये का हस्तांतरण कर पाए।
कोर बैंकिंग सॉल्यूशन (सीबीएस), वास्तविक समय सकल बंदोबस्त (आरटीजीएस), और राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक कोष हस्तांतरण (एनईएफटी) के आने से सीमा शुल्क विभाग इन सुझावों को क्रियान्वित करेगी। इसके बारे में विस्तृत जानकारी 1 जुलाई 2008 के सर्कुलर संख्या 012008-सिस्टम में उल्लिखित है। अब वह दिन दूर नहीं जब निर्यातकों के लिए यह आवश्यक नहीं होगा कि वे अपने बंदरगाह के करीब अधिकृत बैंक शाखा में लेनदेन का काम करे।
वाणिज्य मंत्री ने पिछले अप्रैल में यह घोषणा की थी कि 1 जुलाई 2008 से एडवांस ऑथराइजेशन स्कीम और एक्सपोर्ट प्रमोशन कैपिटल गुड्स स्कीम ईडीआई से संबद्ध होगा और इलेक्ट्रॉनिक संदेशों के जरिये लेनदेन संभव हो पाएगा। इससे अब निर्यातकों को कस्टम के पास शारीरिक रूप से उपस्थित होने की बाध्यता नहीं होगी और पंजीकरण के ताम-झाम से भी छुटकारा मिलेगा। वैसे इसके क्रियान्वयन को लेकर किसी तरह की खबर नहीं है।
लेकिन इतना तय है कि यह जल्दी लागू होगा और यहां तक कि निर्यातों की प्रक्रिया की वास्तविकता लेनदेन क्रियान्वयन को बैंकों के जरिये निष्पादित करने की कवायद शुरू हो जाएगी। गैर-जरूरी कागजी कामों और लेनदेन लागत से छुटकारा पाने के लिए क्षेत्रीय लाइसेंसिंग प्राधिकार की प्रक्रियाएं जल्द ही क्रियान्वित होगी। कारण बताओ नोटिस जारी होने के तुरंत बाद 1 जुलाई 2008 सरकार की आवश्यक कानूनी और इस संबंध में विस्तृत निर्देश के बाद केंद्रीय उत्पाद, सीमा शुल्क और सेवा कर निर्धारकों को इस पर अमल करना है।
वैसे इस संबंध में इन विभागों को एक नोट भी मिल गया है। इस निर्देश में यह कहा गया है कि राजस्व का ध्यान रखते हुए जरूरी न्यायसंगतता बरतनी चाहिए और इस संदर्भ में संपत्ति के कामचलाऊ संलग्नता को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए। संलग्नता के उपचार की यह विधि असाधारण हो रही है और 25 लाख की बकाया राशि के मामले में ज्यादा सतर्कता बरतने की बात कही गई है। संबद्ध अधिकारी को यह अनिवार्य तौर पर कहा गया है कि वे कामचलाऊ संलग्नकों को एससीएन के एक महीने के भीतर कमिश्नर को सौंप देनी चाहिए और अगर वे संतुष्ट हुए तो इसके अगले 15 दिनों में संलग्नकों के आदेश के संबंध में पार्टी की सुनवाई के लिए अवधि प्रदान करना होगा।
इस सर्कुलर में स्पष्ट तौर पर यह कहा गया है कि अगर अधिकारी कामचलाऊ संलग्नकों को निर्गत करने में किसी तरह की लापरबाही बरत रहा हो, तो उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। लेकिन यह एक प्रकार से निर्धारक अधिकारियों को तसल्ली देने की बात है कि अगर राजस्व अधिकारी इस तरह की कोताही बरतते हैं, तो उनके खिलाफ कदम उठाए जाएंगे।
हालांकि वाणिज्य मंत्रालय ने इस बात का आश्वासन दिया है कि विदेश व्यापार नीति को प्रस्तावित करने के लिए पब्लिक नोटिस, नीति सर्कुलर, नोटिफिकेशन या निर्णय आदि को इस नीति के क्रियान्वयन के लिए अनिवार्य कर दिया जाएगा। अगर वर्तमान नीति और प्रक्रिया में किसी तरह भी निरंतरता में कमी पाई गई, तो इसके लिए मंत्रालय ने कई उपबंधों की भी व्यवस्था की है।