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चेक बाउंस मामला : कंपनी जिम्मेदार या जारी करने वाले अफसर?

Last Updated- December 07, 2022 | 9:42 AM IST

एक कंपनी द्वारा जारी किया गया चेक बाउंस कर जाने पर तत्संबधी नियम को लेकर दो जजों के विचारों में मतभेद हो गया और यह मामला बड़ी पीठ को सौंप दिया गया जिसे सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश गठित करेंगे।


अनीता हाडा बनाम गॉडफादर ट्रैवल्स ऐंड टूअर्स लि. के मामले में एक विवाद उभरकर आया था।  गॉडफादर ट्रेवल्स ऐंड टूअर्स लि. ने इंटेल ट्रेवल्स लि. के ऑथराइज्ड सिग्नेटचरी के द्वारा 5 लाख रुपये का चेक पाया। जब यह चेक बाउंस कर गया, तो गॉडफादर ट्रैवल्स ऐंड टूअर्स लि. ने हस्ताक्षर करने वाले व्यक्ति के खिलाफ मामला दर्ज किया, न कि कंपनी के खिलाफ।

उच्च न्यायालय ने कार्यवाही निरस्त करने से इनकार कर दिया। एक जज ने यह राय दी कि धारा 138 के तहत मामला दर्ज नहीं किया जा सकता है। इसलिए कंपनी सर्वोच्च न्यायालय की शरण में गई। एक जज ने कहा कि अगर चेक डिसऑनर नहीं हुआ हो तो निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 138 के तहत कंपनी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि उसने केवल चेक पर हस्ताक्षर किया है, उसे हस्तगत करने का अधिकार उसके पास नहीं है।

वास्तव में कंपनी को इसका जिम्मेदार बनाया जाना चाहिए। नहीं तो यह ऐसा मामला हो जाएगा जिसमें कंपनी और उसके निदेशकों को बिना किसी सुनवाई के दोषी करार दिया जाएगा। कुछ निदेशक इस स्थिति में कंपनी के लिए अपनी कर्तव्यपरायणता खो देंगे वैसे एक जज ने अलग से अपनी एकसुनवाई में लिखा कि अधिकृत अधिकारी को दोषी ठहराया जाए। अब यह मामला तीन जजों की पीठ के जिम्मे चला गया है।

समझौते के बाद हस्तक्षेप नहीं

सर्वोच्च न्यायालय ने उस अपील पर सुनवाई की अनुमति दे दी है जिसके तहत औद्योगिक ट्रिब्यूनल ने आंध्रा बैंक की विशाखापट्टनम शाखा के कर्मचारियों को वेतन देने के मामले में निर्देश दिए थे। न्यायालय ने कहा कि अगर प्रबंधन और कर्मचारियों के बीच किसी प्रकार का समझौता हो जाए, तो औद्योगिक अदालत को किसी प्रकार के हस्तक्षेप का अधिकार नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि औद्योगिक ट्रिब्यूनल और आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय इन दोनों के बीच के समझौते को नजरअंदाज कर अपना काम करें। इस तरह से सर्वोच्च न्यायालय ने दो दशक पुराने मामले में फिर से सुनवाई के रास्ते खोल दिए।

बिजली टैरिफ की वापसी

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सरकार बिजली टैरिफ रियायत को वापस ले सकती है भले ही पहले स्थान पर उसे इसे लागू कर दिया हो। तमिलनाडु इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड बनाम स्टेटस स्पिनिंग मिल्स लि. के मामले में विवाद था कि उच्च दाब वाले उद्योगों से बिजली की रियायत खत्म कर दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने इसी मामले की सुनवाई के वक्त उक्त आदेश दिए। 1995 में उद्योगों को कुछ रियायतें दी गई थी। इसके बाद 1999 और 2000 के दो संशोधनों में कुछ सुविधाओं को वापस ले लिया गया।

राज्य के बहुत सारे उद्योगों ने इसके खिलाफ मद्रास उच्च न्यायालय में चुनौती पेश की। वैसे यह व्यक्तिगत तौर पर किसी के द्वारा दर्ज नहीं किया गया था, इसके बावजूद इसे कट ऑफ तारीख दी गई। बोर्ड ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर दी। संगत प्राधिकार को यह कहा गया कि वे इंटाइटलमेंट के हिसाब से अलग अलग उद्योगों के मामले में निर्णय दें।

मिल खरीदार को मिले मोहलत

सान टेक्सटाइल मिल्स और आईसीआईसीआई बैंक लि. के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यथापूर्व स्थिति बनाए रखी है और इस संबंध में मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश को निरस्त कर दिया है। इस आदेश में यह कहा गया है कि बीमार मिल को खरीदने वाले को बिक्री की राशि देने के लिए कुछ मोहलत दी जानी चाहिए। अगर वह इस रकम की अदायगी नहीं कर पाता तो बैंक मिल को लोन आगे भी दे सकता है।

वैसे यह घोषणा की जा चुकी थी कि बीमार मिल और बीआईएफआर ने इसे बंद करने की बात कर दी थी। उस कंपनी की पूरी परिसंपत्ति दूसरी कंपनी को बेच दिया गया। काफी इंतजार के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि पूर्ववत स्थिति बनाई जाए और उच्च न्यायालय को यह आदेश दिया कि इस मामले पर स्पष्ट निर्णय सुनाए।

विदेशी निर्यात पंजीकरण कानून के तहत प्रवर्तन निदेशालय की फौजदारी कार्यवाही करने के खिलाफ सीमा सिल्क ऐंड साड़ीज , की अपील को सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया। निर्यातक कंपनी ने अपना माल देश से बाहर भेजा था और इसके  लिए निर्यात प्रक्रिया का सही तरीके से पालन नहीं किया था। ऐसी भी खबर आ रही थी कि इस तरह की गतिविधियां बदस्तूर जारी है।

इसकी सूचना निदेशालय को दी गई और उसने फौजदारी मामला दर्ज कर लिया। कंपनी ने इस कार्रवाई के खिलाफ अपील दायर की और कहा कि यह कार्रवाई निर्यातकों के खिलाफ एक भेदभावपूर्ण व्यवहार है। न्यायालय ने इन सारी दलीलों को खारिज कर दिया और कानून के प्रावधानों का अनुमोदन किया। इस तरह इस मामले में पहले की स्थिति बनी हुई है। उच्च न्यायालय ने जो निर्देश सुनाए, उसपर सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बाद सारी दलीलें अपनी जगह धरी रह गई और मामले में अभी निर्णय आना बांकी रह गया।

First Published - July 7, 2008 | 11:50 PM IST

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