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केपटाउन : भारतीय विमानन का नया आकाश

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 07, 2022 | 9:42 AM IST

आने वाले दिनों में केपटाउन सम्मेलन के जरिये भारत अपनी पहुंच का विस्तार करने जा रहा है। भारत अपनी निगाहें आसमान के साथ साथ जमीन पर भी रखे हुआ है।


2001 में उच्चस्तरीय कूटनीतिज्ञों के एक सम्मेलन में भारत की ओर से केपटाउन पर मजबूत पकड़ बनाए जाने की बात कही गई थी। इस सम्मेलन में दो बातें प्रमुख तौर पर निकल कर आई थी। एक तो सम्मेलन अपने आप में काफी महत्त्वपूर्ण परिणाम था और दूसरा एयरक्राफ्ट प्रोटोकॉल का आना।

एयरक्राफ्ट प्रोटोकॉल में विमानन उद्योग की विशिष्टताओं को समाहित किया गया था और यह 1 मार्च 2006 से कार्यरूप में आ गया था। केपटाउन कन्वेंशन में इस प्रोटोकॉल की बातों को दुहराया गया और इस अंतरराष्ट्रीय संधि को इस प्रकार डिजाइन किया गया कि परिसंपत्ति आधारित वित्त पोषण और एयरक्राफ्ट को ठेके पर देने जैसी बातों पर भी विचार किया गया है। इसमें एयर फ्रेमों और एयरक्राफ्ट इंजन के डिजाइनों को भी शामिल किया गया है।

केपटाउन इस बात की इच्छा रखता है कि ऐसा वास्तविक और वाणिज्यिक जनित कानूनी ढांचा बनाया जाए, जिसमें मालिकाना हक की स्पष्टता, सुरक्षा से जुड़े मुद्दे, सर्वाधिकार खासकर उस स्थिति में जहां किसी प्रकार की खामी हो या ऐसी समस्या उत्पन्न हो जाए जिसे हल करना मुश्किल हो, वित्त प्रदान करने वाले के  अधिकारों की रक्षा आदि को भी गंभीरता से लिया जाए। इस चलंत परिसंपत्ति का पंजीकरण, जो कि वेब आधारित और हमेशा पहुंच में होगा, काफी आसान होगा और इसमें प्राथमिकताओं का ख्याल रखा जाएगा।

प्राथमिकता कहने का मतलब कि अगर कोई अपंजीकृत मामला है, तो उसपर पंजीकृत को तरजीह दी जाएगी। जिसका पंजीकरण पहले हो चुका है, उसे बाद में हुए पंजीकरण के स्थान पर तवज्जो दी जाएगी। इसके अलावा अधीनस्थ व्यवस्थाओं को समायोजित करने के ख्याल से प्राथमिकताओं को बदला जाएगा। इस तरह ऋणदाता अपनी रुचियों का रिकॉर्ड रख पाएंगे और एक डोमेन में अपेक्षित संभावनाओं की तलाश कर पाएंगे। ऐसा भी अनुमान लगाया जा रहा है कि इसके रख-रखाव की लागत को भी कम किया जा सकता है।

इसके अतिरिक्त ऋण लेने वाले की एसेसिंग लागत, ऋण लेने की क्षमता, कानूनी अधिकारों को लेकर स्पष्टता को बढावा देना, सीमाएं और क्रियान्वयन, जो कि प्रतिस्पद्र्धा और लाभ में भी इजाफा करेगा, का भी विशेष ख्याल रखा जाएगा। अगर इस तरह की व्यवस्थाएं की जाती है तो इससे निर्माताओं, यात्रियों और निवेशकों को भी फायदा होगा। अधिकारों की पहचान के अलावा केपटाउन चाहता है कि एकसमान पुनर्धिकार और कार्यान्वयन अधिकारों को लागू किया जाए। साथ ही पुनर्धिकार के लिए कोर्ट के आदेश के बिना ही कानूनी पहल उठाने की भी बात कही गई है। ये सारी बातें संधि करने वाले देशों के संबंध में ही लागू होगी।

अगर ये बातें लागू हो जाती है, तो संधि करने वाले राज्यों को इस बात के लिए आश्वस्त करना होगा कि ये प्रोटोकॉल प्रस्ताव कार्यान्वित होने लायक है या नहीं। केपटाउन  एयरक्राफ्ट को लीज पर देने, एयरक्राफ्ट मोर्गेज, सुरक्षा से जुड़े एसाइनमेंट, हायर या खरीदने की शर्तों आदि की अनुमति देता है और यह अनुमति भी उसी दायरे में जहां एयरक्राफ्ट परिचालित, पंजीकृत होते हैं या जहां ऋण लेने देने की बात होती है या जहां इस तरह के व्यापार की जगह होती है। वैसे पहले से जो अधिकार अस्तित्व में हैं, उसे केपटाउन किसी रूप में प्रभावित नहीं करेगा , जब तक कि विशिष्ट राज्य इस तरह की कोई घोषणा न करें।

केपटाउन की इन सारी बातों को प्रभावकारी बनाने में जो मुश्किलें हैं वह संधि करने वाले देशों के क्षेत्रीय कानून को लेकर है। अंतरराष्ट्रीय संधि जब एक बार लागू हो जाती है, तो उसे लागू करना आवश्यक हो जाता है और उसके लिए विधायिका से अनुमति लेने की औपचारिकता नहीं रह जाती है। अंतरराष्ट्रीय कानून को अगर एक बार पहचान मिलती है, तो विरोध तब होता है, जब भारतीय न्यायालय घरेलू कानूनों को इससे ज्यादा महत्त्वपूर्ण करार देता है।

केपटाउन घोषणाओं में कुछ संदेहात्मक बिंदु हैं। मिसाल के तौर पर धारा 8, जिसमें कंपनी के प्रभारी को अधिकार लेने या किसी अधिकृत परिसंपत्ति पर नियंत्रण करने के  लिए अधिकृत किया जाता है। वह कंपनी को लीज पर रख सकता है या उसे बेच सकता है और अपने प्रबंधन के लाभ और उपादेयता आय का इस्तेमाल कर सकता है। इससे एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि यह बैंकों और वित्तीय संस्थानों पर ज्यादा निर्भरता वाली बात हो जाती है। ये सारी चीजें एसएआरएफएईएसआई कानून के तहत होता है।

वैसे एसएआरएफएईएसआई एयरक्राफ्ट की सुरक्षा के लिए उपयुक्त नहीं होता है। पुनर्धिकार और रिकवरी के मामले में कई बार उच्चतम न्यायालय ने भी अपनी ताकत का एहसास कराया है। भारतीय रिजर्व बैंक ने भी रिकवरी एजेंटों को इस बात के निर्देश दिए हैं कि वे स्वयं सहायता के रास्ते न अख्तियार करें। वैसे इस कानून में कोई प्रत्यक्ष विरोध नहीं होता है। लेकिन विरोध की बात तब उठती है जब कोई खास मुद्दा हल होता हुआ नजर नहीं आता है या दिवालिया होने की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

अनुच्छेद 11 में एयरक्राफ्ट प्रोटोकॉल की खामियों को दूर करने के दो विकल्प बताये गए हैं। इसके तहत एक सख्त निर्देश दिए गए हैं, जिसके मुताबिक अगर निर्धारित अवधि में भविष्य के आरोपों को हल नहीं किया जाता है, तो ऋण देने वाला एयरक्राफ्ट प्राप्त कर सकता है। इस तरह हम देखते हैं कि केपटाउन भारत के विमानन उद्योग के लिए एक बेहतर आकाश साबित हो सकता है।

First Published : July 7, 2008 | 11:45 PM IST