प्रवासियों को किए जाने वाले सभी भुगतानों पर आम तौर पर कर में स्रोत पर ही कटौती की जानी होती है। आयकर की धारा 195 के तहत भुगतान करने वाले का यह दायित्व है कि वह या तो वह स्रोत पर ही कर काट ले या उस समय कर में कटौती करे जब प्रवासी के खाते में राशि हस्तांतरित की जा रही हो।
अगर इस तरह कर में कटौती न की गई तो इसके कई परिणाम हो सकते हैं, मसलन कि भुगतान करने वाला भुगतान की गई राशि के एवज में अपनी आय में कटौती का दावा करने का हकदार नहीं हो सकता है।
आईएमटी लैब्स (2005 के एएआर 676) के मामले में अथॉरिटी ऑफ एडवांस रूलिंग ने यह व्यवस्था दी थी कि कर में कटौती सिर्फ उन भुगतेय राशि पर ही नहीं होगी, जिसकी प्रकृति आय से संबद्ध हो बल्कि सकल राशि पर भी यह लागू होगा, जो कि ग्रहण करने वाले की आय या लाभ से इतर संपूर्ण आय को दर्शाता होगा।
इस संबंध में ट्रांसमिशन कॉरपोरेशन ऑफ एपी लिमिटेड बनाम सीआईटी (239 आईटीआर 587) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने जो निर्णय दिया था, उससे अथॉरिटी ने भी अपनी सहमति जताई थी।
लेकिन मंगलूर रिफाइनरी ऐंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड (113 आईटीडी 85) के मामले में मुंबई ट्रिब्यूनल ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि, धारा 195 में यह स्पष्ट तौर पर उल्लिखित है कि जांचकर्ता को खुद इस बात का स्पष्टीकरण देना होगा कि उसके भुगतान में आय का कोई भी तत्व नहीं आ रहा है।
जांचकर्ता अधिकारी को मात्र यह अधिकार है कि वह धारा 195 की उपधारा (2) के तहत बिना किसी कटौती के भुगतान की अनुमति प्रदान करे। हाल ही में हैदराबाद आयकर ट्रिब्यूनल ने भी फ्रंटलाइन सॉफ्टवेयर और कॉल वर्ल्ड टेक्नोलॉजिज के मामले में यह व्यवस्था दी कि कॉल सेंटरों को अगर विदेशी कंपनियों से सेवा के विरूद्ध भुगतान प्राप्त होता है, तो वह कर कटौती के तहत आता है।
