भारतीय दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता बोर्ड (आईबीबीआई) इस समय दक्षता और ऋणशोधन अक्षमता प्रक्रिया में सुधार के लिए दो चर्चा पत्रों पर काम कर रहा है। एक सरकारी अधिकारी के मुताबिक इस महीने इसे जारी किए जाने की संभावना है।
एक में दिवाला पेशेवरों के रूप में काम कर रही इकाइयों को बेहतर समाधान के सुझाव शामिल होंगे। वहीं दूसरे में कंपनियों के परिसमापन पर ध्यान केंद्रित होगा।
ये मसौदा पत्र दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) के तहत समाधान प्रक्रिया में तेजी लाने को लेकर सुझाव देंगे, जिसमें अभी रिकवरी बहुत कम हो रही है।
बहरहाल दिवाला प्रक्रिया का बचाव करते हुए नियामकीय सूत्रों ने कहा कि कम रिकवरी की वजह आईबीसी प्रक्रिया नहीं है और यह कर्जदाताओं और बैंकिंग गतिविधियों से जुड़ा मसला है, इसकी जिम्मेदारी उनकी है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘बैंकों की ओर से कॉर्पोरेट दिवाला की मांग में उल्लेखनीय देरी की वजह से आईबीसी के तहत वसूली प्रभावित हो रही है।’
उनके मुताबिक औसतन बैंक 700 दिन की चूक के बाद राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) की शरण लेते हैं, जिससे मूल्यांकन प्रभावित होता है। उन्होंने संकेत दिए कि बैंकिंग कार्यप्रणाली के मुताबिक 50-60 प्रतिशत की कटौती अनिवार्य बन जाती है। इसे और साफ करते हुए उन्होंने कहा कि जब कर्जदाता न्यायाधिकरण में जाता है तो संपत्ति का मूल्य गिर जाता है। साथ ही परिसमापन की कटौती ज्यादा होती है। सामान्यतया इसमें 300 दिन लग जाते हैं।
हाल के आईईबीबीआई के आंकड़ों से पता चलता है कि जनवरी से मार्च के बीच वित्तीय कर्जदाताओं की वसूली, किए गए दावों की तुलना में 10.21 प्रतिशत के रिकॉर्ड निचले स्तर पर रही है। 2021 की दिसंबर तिमाही में यह 13.41 प्रतिशत थी।
