देश के 15 राज्यों में राज्यसभा की 57 सीटों के लिए नामांकन भरने की आखिरी तारीख 31 मई को समाप्त हो रही है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), कांग्रेस, जनता दल यूनाइटेड (जदयू) और झारखंड मुक्ति मोर्चो (झामुमो) सहित सभी दलों के भीतर राज्यसभा पहुंचने के लिए नेताओं में आपाधापी दिखी है। इन सीटों के लिए 10 जून को चुनाव होंगे और जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में इनके नतीजे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
राज्यसभा सीटों के लिए भाजपा के उम्मीदवारों की सूची का अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल नहीं था। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण कर्नाटक और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल महाराष्ट्र से दोबारा उम्मीदवार बनाए गए हैं। हालांकि अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी का कार्यकाल भी पूरा होने वाला है मगर उनका नाम भाजपा की सूची में नहीं है। इसका मतलब है कि अगर वह छह महीनों में लोकसभा नहीं पहुंचे तो उन्हें केंद्रीय मंत्रिपरिषद से इस्तीफा देना होगा। उनके पुराने लोकसभा क्षेत्र रामपुर में 23 जून को उप-चुनाव होंगे। इस सीट के लिए समाजवादी पार्टी (सपा) ने आजम खान को उम्मीदवार बनाया है। भाजपा के लिए यह सीट प्रतिष्ठा का विषय हो सकती है।
जदयू के उम्मीदवार एवं केंद्रीय इस्पात मंत्री आर सी पी सिंह के भविष्य पर अनिश्चितता के बादल दिख रहे हैं। एक समय वह जदयू में नीतीश कुमार के बाद दूसरे सबसे बड़े नेता माने जाते थे मगर उन्हें राज्यसभा के लिए जदयू ने तीसरी बार उम्मीदवार नहीं बनाया है। सिंह ने कहा, ‘नीतीश कुमार ने रविवार को जो निर्णय लिया उसके लिए वह उनके आभारी हैं। उन्होंने जो भी फैसला लिया है वह मेरे हित में है। मैंने आज तक कोई ऐसा काम नहीं किया है जिससे कोई नाराज हो जाए।’ समाजवादी नेता अनिल हेगड़े और झारखंड में जदयू प्रमुख खीरू महतो जदयू की तरफ से उम्मीदवार बनाए गए हैं। इसके साथ ही पार्टी में आपसी टकराव का पटाक्षेप हो गया है। कुर्मी जाति से ताल्लुक रखने वाले आर सी पी सिंह बिहार के मुख्यमंत्री के विश्वस्त समझे जाते थे मगर जब भाजपा के साथ उनके संबंध बढऩे की अटकल तेज हुई तो जदयू में उनकी स्थिति कमजोर हो गई। भाजपा उन्हें सीट की पेशकश करने के लिए तैयार नहीं दिख रही है। अगर वह ऐसा करेगी तो बिहार में जदयू के साथ अपना गठबंधन दांव पर लगाने जैसा होगा।
भाजपा में भी सब कुछ ठीक नहीं रहा है। राजस्थान में घनश्याम तिवारी भाजपा के उम्मीदवार है। छह बार विधायक रह चुके तिवारी पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के धुर विरोधी समझे जाते हैं। तिवारी ने 2018 में विधानसभा चुनाव के दौरा भाजपा छोड़ दी और अपनी एक नई पार्टी बना ली। कुछ समय के लिए वह कांग्रेस से भी जुड़े थे मगर भाजपा नेताओं के कहने पर उन्होंने दोबारा घर वापसी कर ली। तिवारी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े हैं और राजनीति में उन्हें 45 वर्षों का अनुभव है। राज्यसभा में उनके आने का एक मतलब यह भी होगा कि राजस्थान की राजनीति से वह दूर हो जाएंगे जिससे वसुंधरा राजे खेमा मजबूत स्थिति में आ जाएगा।
मगर राज्यसभा पहुंचने के लिए सबसे अधिक खींचतान कांग्रेस में दिखी है। दिल्ली में पार्टी नेता पवन खेड़ा और तमिलनाडु में पार्टी नेता एवं फिल्म अभिनेत्री नगमा को टिकट नहीं दिया गया है। आनंद शर्मा और गुलाम नबी आजाद को भी उम्मीदवारों की सूची से बाहर रखा गया है। हालांकि शर्मा को हिमाचल प्रदेश में एक महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई थी। रणदीप सिंह सुरजेवाला, मुकुल वासनिक और प्रमोद तिवारी राजस्थान से राज्य सभा के लिए कांग्रेस के उम्मीदवार बनाए गए हैं और वहां राज्य के नेताओं को दरकिनार किया गया है। अब राज्य सभा में कांग्रेस के छह सांसद होंगे और केवल एक उम्मीदवार नीरज डांगी राजस्थान से आते हैं जबकि शेष बाहरी हैं। पहले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री के सी वेणुगोपाल और नीरज डांगी कांगे्रस के राज्य सभा सांसद थे।
राज्यसभा सीटों के चुनाव पर सहयोगी कांग्रेस के साथ मतभेद पैदा होने के बाद झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सोनिया गांधी से मुलाकात की। बैठक के बाद उन्होंने कहा कि इस विषय पर कांग्रेस के साथ उनक कोई मतभेद नहीं है। राज्य सभा की सबसे अधिक सीटें उत्तर प्रदेश में हैं। भाजपा ने अब तक लक्ष्मीकांत वाजपेयी (उत्तर प्रदेश), राधा मोहन अग्रवाल (उत्तर प्रदेश), सुरेंद्र नागर, बाबूराम निषाद और संगीता यादव को उम्मीदवार बनाया है। महाराष्ट्र में राज्यसभा की छह सीटों के लिए चुनाव होना है। पीयूष गोयल के अलावा भाजपा ने अपनी सूची में अनिल बोंडे को भी उम्मीदवार बनाया है।