दूरसंचार विभाग (डीओटी) भारतीय रेलवे को सिगनलिंग के लिए 700 मेगाहट्र्ज प्रीमियम बैंड में से 5 मेगाहट्र्ज देने को सहमत हो गया है। विभाग चाहता है कि रेलवे इन एयरवेव्स का गैर वाणिज्यिक इस्तेमाल करे और अपनी शेष जरूरतें डीलाइसेंस्ड स्पेक्ट्रम के माध्यम से पूरी करे।
रेल मंत्रालय की ओर से तैयार किए गए कैबिनेट नोट पर प्रतिक्रिया देते हुए डीओटी ने कहा कि वित्त मंत्रालय की ओर से तय की गई कीमत पर वह रेलवे को 700 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट्रम बैंड में से 5 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट्रम दे सकता है।
एक अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘हमने कहा है कि वित्त मंत्रालय द्वारा रेलवे के लिए दाम तय करने को लेकर कोई आपत्ति नहीं है क्योंकि वह धन आखिर में भारत की संचित निधि में जाएगा।’
इन एयरवेब्स की अनुमानित कीमत 65,000 करोड़ रुपये है और इन्हें प्रीमियम स्पेक्ट्रम माना जाता है क्योंकि लंबी दूरी के मोबाइल संचार के लिए 3जी और 4जी सेवाओं की तुलना में इसमें कम मोबाइल टॉवर की जरूरत होती है।
बहरहाल विभाग रेलवे की ओर से ज्यादा मात्रा में स्पेक्ट्रम की मांग को लेकर इच्छुक नहीं है। इसके बदले विभाग ने सलाह दी है कि नैशलन कैरियर स्पेक्ट्रम की अपनी शेष मांग की जरूरतों को डीसेंट्रलाइज्ड स्पेक्ट्रम से पूरी करे, जो हर किसी के लिए उपलब्ध होगा।
सरकार का यह भी मानना है कि मोबाइल सेवाओं के लिए चिह्नित फ्रीक्वेंसी बैंड और रेलवे को गैर वाणिज्यिक इस्तेमाल के लिए आवंटन से समायोजित सकल राजस्व जैसी लेवी, स्पेक्ट्रम उपभोग सुल्क और लाइसेंस शुल्क पर बुरा असर डाल सकता है।
रेलवे ने सार्वजनिक सुरक्षा और संरक्षा सेवाएं शुरू करने के लिए 10 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट्रम की मांग की है।
अगस्त 2018 में दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने 700 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट्रम के मूल्य में 42 प्रतिशत की कमी करके इसकी कीमत 6,568 करोड़ रुपये प्रति मेगाहट्र्ज करने का प्रस्ताव किया था। इससे आरक्षित मूल्य पर स्पेक्ट्रम का कुल दाम 65,680 करोड़ रुपये होता है।
2016 में इस 700 मेगाहट्र्ज बैंड स्पेक्ट्रम की बिक्री नहीं हो सकी थी, जब ट्राई ने इसका आधार मूल्य 11,485 करोड़ रुपये प्रति हट्र्ज रखा था।
ऐसा माना जा रहा है कि रेल मंत्रालय जल्द ही प्रस्ताव को अंतिम रूप देगा और वह कैबिनेट के समक्ष यह प्रस्ताव मंजूरी के लिए भेजेगा।
