विभिन्न राज्यों विशेष तौर पर गैर-भाजपा शासित राज्यों ने आज राज्यों के ऊर्जा मंत्रियों के सम्मेलन में विद्युत अधिनियम, 2003 में प्रस्तावित संशोधनों का जोरदार विरोध किया।
यह बैठक वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये आयोजित की गई थी, जिसमें सभी राज्यों के विद्युत मंत्रालय/विभाग का केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के प्रतिनिधि शामिल थे। सूत्रों का कहना है कि बिहार, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और केरल संशोधनों का विरोध कर रहे हैं।
केंद्र ने अप्रैल में विद्युत अधिनियम, 2003 में संशोधन के मसौदे को पेश किया था और राज्यों से इस पर अपनी टिप्पणी देने के लिए कहा है। बड़े संशोधनों में सब्सिडी वाली बिजली दरों को समाप्त कर उसकी जगह सब्सिडी को प्रत्यक्ष लाभ अंतरण से भेजना, औद्योगिक उपभोक्ताओं पर क्रॉस सब्सिडी का बोझ घटाना, नए अनुबंध प्रवर्तन प्राधिकरण की स्थापना और मौजूदा राज्य विद्युत नियामक आयोगों (एसईआरसी) के लिए नई चयन प्रक्रिया शामिल है।
पश्चिम बंगाल ने अपने प्रतिवेदन में कहा कि अधिनियम में नए संशोधन राज्य की संप्रभुता का अतिक्रमण है। राज्य सरकार ने मसौदा विधेयक, 2020 में प्रस्तावित लगभग सभी नए प्रावधानों का विरोध किया। राज्य ने एसईआरसी के सदस्यों के चयन के लिए समिति के गठन के प्रस्ताव का भी विरोध किया। पश्चिम बंगाल के साथ ही राजस्थान ने कहा कि इससे चयन प्रक्रिया में राज्यों की स्वायत्तता समाप्त हो जाएगी।
सब्सिडी युक्त बिजली दरों को समाप्त करने के कदम की कई अन्य राज्यों ने भी निंदा की। विधेयक में विद्युत टैरिफ के निर्धारण के प्रावधान को संशोधित किया गया है और इसने सभी राज्य विद्युत नियामक आयोगों (एसईआरसी) से कहा है कि वे अधिनियम की धारा 65 के तहत बिना किसी सब्सिडी के बिजली की खुदरा बिक्री के लिए शुल्क का निर्धारण करें। इसमें सीधे उपभोक्ता को सब्सिडी देने का प्रस्ताव है।
सूत्रों ने कहा कि राज्यों ने इसका इस आधार पर विरोध किया है कि बिजली में डीबीटी को लागू करना मुश्किल होगा।
मसौदा विधेयक के प्रस्तावों में से एक है निजी क्षेत्र के लिए विद्युत वितरण का दरवाजा खोलना। केंद्र ने राज्यों से यह भी अपील की है कि वे अपने राजस्व में सुधार लाने के लिए फ्रैंचाइजी के आधार निजी क्षेत्र के बिजली वितरकों से हाथ मिलाएं।
भाजपा के साथ गठबंधन वाली बिहार सरकार ने बिजली वितरण के निजीकरण के प्रस्ताव का विरोध किया क्योंकि उसे इस बात का भय है कि इससे बिजली दरों में इजाफा होगा। मसौदा विद्युत विधेयक, 2020 को सभी साझेदारों से टिप्पणी मिली है और इस पर विचार किया जा रहा है। केंद्रीय ऊर्जा राज्य मंत्री आरके सिंह ने कहा कि वह मॉनसून सत्र में इस विधेयक को संसद में पेश करने की उम्मीद कर रहे हैं।
90,000 करोड़ रुपये के पार जाएगा आत्मनिर्भर ऋण
केंद्रीय बिजली मंत्रालय आत्मनिर्भर पैकेज के तहत कर्ज की राशि बढ़ाकर 1.25 लाख करोड़ रुपये कर सकता है, जो अभी 90,000 करोड़ रुपये है। वितरण कंपनियों को बकाये का भुगतान करने के लिए यह कर्ज दिया जा रहा है। वितरण कंपनियों द्वारा सरकारी और निजी बिजली उत्पादन कंपनियों का बकाया चुकाने के लिए यह कर्ज दिया जा रहा है। बिजली मंत्रियों के साथ बैठक में राज्यों ने अनुरोध किया था कि इस योजना का विस्तार सरकारी उत्पादन कंपनियों तक किया जाना चाहिए। केंद्रीय बिजली मंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार इसके लिए सहमत हो गई है। उन्होंने कहा कि अब तक 20,000 करोड़ रुपये कर्ज का अनुरोध स्वीकार किया गया है।
