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अब राजभवन पर अटकीं निगाहें

Last Updated- December 15, 2022 | 4:23 AM IST

राजस्थान में नाटकीय सियासी घटनाक्रम का गवाह बन रहे जयपुर के फेयरमॉन्ट होटल के बजाय शुक्रवार को सबकी निगाहें राजभवन के लॉन पर जाकर थम गईं। फेयरमॉन्ट होटल में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का समर्थन करने वाले कांग्रेसी विधायकों को रखा गया है। गहलोत अपने 100 विधायकों के साथ शुक्रवार की दोपहर राजभवन पहुंचे और वहां के लॉन में बैठ गए और उन्होंने राज्यपाल कलराज मिश्र से सोमवार को विधानसभा सत्र आयोजित कराने की मांग की ताकि सरकार को सदन में अपना बहुमत साबित करने का मौका मिल सके।
गहलोत ने आरोप लगाया कि राज्यपाल पर राज्य विधानसभा का सत्र आयोजित नहीं करने का ‘ऊपर से दबाव’ है जबकि मंत्रिमंडल ने गुरुवार को एक पत्र लिखकर भी सत्र बुलाने के लिए उन्हें सुझाव दिया था। संविधान के अनुसार राज्यपाल मंत्रिमंडल का सुझाव मानने के लिए बाध्य है।
वहीं कलराज मिश्र ने कहा कि वह कानूनी विशेषज्ञों से परामर्श करने के बाद ही कोई फैसला लेंगे क्योंकि उच्चतम न्यायालय फिलहाल इस मामले की सुनवाई कर रहा है। उन्होंने संकेत दिया कि कोविड-19 महामारी के प्रसार के दौर में विधानसभा सत्र आयोजित करना चिंताजनक है।
गहलोत ने इस बात का जिक्र किया कि 1993 के विधानसभा चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के भैरो सिंह शेखावत को तत्कालीन राज्यपाल बलिराम भगत ने सरकार बनाने के लिए आमंत्रित नहीं किया जिन्हें 95 विधायकों और कुछ निर्दलीय विधायकों का समर्थन हासिल था। शेखावत और उनके विधायक भी विरोध जताने केलिए राजभवन के लॉन में बैठ गए थे और तब तक नहीं हटे जब तक उन्हें राज्यपाल से सरकार बनाने का न्योता नहीं मिला। गहलोत ने राज्यपाल से मुलाकात के बाद कहा, ‘राजस्थान के लोग हमारे साथ हैं। अगर जनता विरोध में राजभवन को घेरती है तो हम जिम्मेदार नहीं होंगे।’
इस बीच कांग्रेस के बागी नेता सचिन पायलट और उनका समर्थन करने वाले 18 विधायकों को शुक्रवार को राजस्थान उच्च न्यायालय से राहत मिली। विधानसभा अध्यक्ष द्वारा बागी विधायकों को अयोग्य ठहराये जाने वाले नोटिस पर अदालत ने पहले की तरह ‘यथास्थिति’ बनाए रखने का आदेश दे दिया। अदालत ने कहा कि जब तक उच्चतम न्यायालय विधानसभा अध्यक्ष की शक्तियों से जुड़े बड़े संवैधानिक सवाल का फैसला नहीं करता तब तक वह नोटिस पर कार्रवाई नहीं कर सकते। शीर्ष अदालत इस मामले में सोमवार को सुनवाई करेगी।
इस वक्त जो स्थिति है उसके मुताबिक अगर राज्यपाल सत्र बुलाते हैं और गहलोत विश्वास मत जीतते हैं तब अगले छह महीनों तक अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता है। हालांकि अगर गहलोत हार जाते हैं तब ऐसी अटकलें हैं कि पायलट जल्द ही अपनी एक नई पार्टी का ऐलान कर सकते हैं और भाजपा के बाहरी समर्थन से सरकार बना सकते हैं। गहलोत का दावा है कि फि लहाल 200 सदस्यों वाली विधानसभा में 102 विधायक उनके साथ हैं। बहुमत का आंकड़ा 101 है। हालांकि गहलोत खेमे में एक विधायक बीमार पड़ गए हैं और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है। पायलट खेमे ने 30 विधायकों के समर्थन का दावा किया लेकिन अब तक सिर्फ 19 विधायकों के बागी होने की पुष्टि हुई है। भाजपा के पास 72 विधायक हैं। अगर निर्दलीय और छोटे दलों को शामिल किया जाता है तब विपक्ष के पास 97 विधायक हो सकते हैं।
सदन में यह अहम होगा कि बागी विधायकों को मतदान करने की इजाजत होगी या नहीं। अगर वे मतदान करेंगे तो उनके सामने पार्टी व्हिप का उल्लंघन करने के लिए अयोग्य ठहराए जाने का जोखिम होगा लेकिन निश्चित तौर पर उनके वोटों की गिनती होगी। अगर उन्हें मतदान नहीं करने दिया जाता है तो विधानसभा की प्रभावी ताकत कम हो जाएगी और गहलोत सरकार आसानी से विश्वास मत जीत सकती है। गहलोत ने यह भी दावा किया कि कुछ असंतुष्ट विधायकों ने उनके खेमे में लौटने की इच्छा जताई है लेकिन बाउंसर और पुलिस का पहरा दिया जा रहा है। हालांकि इसके बाद सचिन पायलट खेमे के 18 विधायकों में से कुछ ने दावा किया कि वे दिल्ली में हैं और किसी के दबाव में नहीं हैं।
इससे ही जुड़े एक घटनाक्रम में भाजपा के एक विधायक ने पिछले साल बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के छह विधायकों के कांग्रेस में विलय के खिलाफ  उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की है। वहीं दूसरी तरफ  केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता गजेंद्र सिंह शेखावत ने इसे राजनीतिक साजिश करार देते हुए कहा कि राजस्थान की एक अदालत ने राज्य पुलिस के विशेष अभियान समूह (एसओजी) को ‘संजीवनी क्रेडिट कोऑपरेटिव कमेटी’ घोटाले में उनकी कथित भूमिका की जांच करने का आदेश दिया है। वहीं कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने प्रधानमंत्री से इन्हें बर्खास्त करने की मांग की।

First Published - July 24, 2020 | 11:14 PM IST

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