आयकर विभाग ने स्पष्ट किया है कि 2020-21 आकलन वर्ष (एवाई) के लिए शेयरों की खरीद व बिक्री का शेयरों के लेन-देन (स्क्रिप) के मुताबिक ब्योरा देना सिर्फ उन्हीं के लिए जरूरी होगा, जिन्होंने दीर्घावधि पूंजी लाभ कर से छूट का विकल्प चुना है।
विभाग ने उन रिपोर्टों से पूरी तरह इनकार किया है, जिनमें कहा गया है कि स्टॉक या डे ट्रेडर्स को आकलन वर्ष 2020-21 में आयकर रिटर्न दाखिल करते समय स्क्रिप के मुताबिक विस्तृत ब्योरा देने की जरूरत होगी। उपरोक्त उल्लिखित छूट की अनुमति 31 जनवरी 2018 तक सूचीबद्ध शेयरों पर वित्त अधिनियम 2018 के ग्रैंडफादरिंग अनुच्छेद के तहत दी गई है। ग्रैंडफादरिंग से आशय उस छूट से है, जिसके तहत किसी व्यक्ति या इकाई को पहले मिली अनुमति की शर्तों के मुताबिक परिचालन या गतिविधियां जारी रखने की छूट दी जाती है, जो नए नियम आने के पहले से लागू हैं।
2018-19 के बजट में 1 लाख रुपये से ज्यादा दीर्घावधि पूंजी लाभ होने पर 10 प्रतिशत कर लगाया गया था।
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ने साफ किया है कि आकलन वर्ष 2020-21 में रिटर्न दाखिल करने वालों में उन्हीं को स्क्रिप के मुताबिक ब्योरा देना पड़ेगा, जिन्होंने इन शेयरों/यूनिट्स के लिए दीर्घावधि पूंजीगत लाभ की रिपोर्टिंग की है और वे ग्रैंडफादरिंग का लाभ उठाने के पात्र हैं।
इसमें कहा गया है कि हर शेयर/यूनिट के विभिन्न मूल्यों (जैसे 31.01.2018 को लागत, बिक्री मूल्य और बाजार मूल्य) की तुलना करने के बाद ग्रैंडफादरिंग की अनुमति दी जाती है, ऐसे में स्क्रिप के मुताबिक ब्योरे की जरूरत होगी, जिससे कि इन शेयरों/यूनिट पर पूंजीगत लाभ की गणना की जा सके।
अगर इस तरह की रिपोर्र्टिंग की जरूरत न रखी जाए तो ऐसी स्थिति बन सकती है कि प्रावधानों की समझ की कमी की वजह से करदाता दावा न करें या ग्रैंडफादरिंग के लाभ का दावा गलत तरीके से करें।
सीबीडीटी ने कहा है कि इसके अलावा अगर उपरोक्त गणना स्क्रिप के मुताबिक नहीं की जाती है और करदाता को कुल आंकड़ों के मुताबिक अनुमति दे दी जाती है तो आयकर प्राधिकारियों को यह जांच करने का कोई तरीका नहीं होगा कि दावा सही है या नहीं और ऐसे में तमाम रिटर्न की ऑडिट की जरूरत होगी, ऐसे में बाद के स्तर पर अनुपालन व सुधार संबंधी अनावश्यक कठिनाइयां बढ़ेंगी।
