पिछले महीने एक प्रवासी भारतीय वरुण के गोरेन एक ऐसे प्रस्ताव के साथ भारत आए जिसके बारे में अधिकतर भारतीय वैज्ञानिकों ने पहले नहीं सुना होगा। वरुण कनाडा की कंपनी बैरीक गोल्ड कॉर्पोरेशन का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। इस प्रस्ताव ने जिस बात को लेकर सबका ध्यान अपनी ओर खींचा वह है इसकी भारी भरकम एक करोड़ डालर यानी
ये वैज्ञानिक विभिन्न विश्वविद्यालयों ,भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों और धनबाद स्थित उनके अपने पुराने संस्थान इंडियन स्कूल ऑफ माइन्स में कार्यरत हैं। गोरेन ने इन वैज्ञानिकों को वैश्विक अनुसंधान की चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार किए जाने वाले कार्यक्रमों में शामिल होने का निमंत्रण दिया।
गोरेन भी कोई अपवाद नहीं हैं। ज्यादातर प्राइज मनी प्रस्ताव भारतीय वैज्ञानिकों को लक्षित करके घोषित किए जा रहे हैं। यह केवल उत्खनन समस्या के समाधान के लिए नहीं है बल्कि दवाइयों की खोज और जीन संबंधी अनुसंधान के क्षेत्र में भी मोटी प्राइज मनी दी जा रही है। उदाहरण के तौर पर अमेरिका का एक्स प्राइज फाउंडेशन भी जीन संबंधी अनुसंधान के लिए तकरीबन
40 करोड़ रुपये की मोटी रकम देने की बात कर रहा है।
एक उच्चस्तरीय बोर्ड एक्स प्राइज फाउंडेशन के जीन अनुसंधान कार्यक्रम कार्यक्रम को देख रहा है। इस बोर्ड में तकनीकी और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के प्रमुख समीर ब्रह्मचारी भी शामिल हैं। उन्हें भरोसा है कि इसके जरिये नई खोजों के लिए रास्ता आसान होगा। उनका यह भी कहना है कि पुरानी उपलब्धियों और अनुसंधान के लिए सीधे फंड देने की बजाय एक्स प्राइज फाउंडेशन ने आला दर्जे की प्रतियोगिता शुरू की जिससे किसी सृजनात्मक हल निकलने को प्रोत्साहन मिलेगा।
इस फाउंडेशन का भी यही मानना है कि सरकारी दायरों से परे एक एक्स प्राइज की सक्षमता परंपरागत व्यवसायियों और स्वतंत्र विचारों वाले दोनों वर्गों को लुभाएगी। भारतीय प्रबंधन संस्थान
, नई दिल्ली के वैज्ञानिक शुद्धसत्व बासु कहते हैं, ‘गोरेन का प्रस्ताव अपनी तरह का पहला और ऐसा प्रस्ताव है जिसको नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यह साधारण नहीं है। हमने कई योजनाओं के लिए अनुसंधान अनुदान के बारे में तो सुना है, लेकिन किसी खास फॉर्मूले के लिए वैज्ञानिकों को व्यक्तिगत तौर पर प्राइज मनी के बारे में नही सुना है।‘
इससे किसी खास समस्या से जूझ रहे संस्थान को उस खास क्षेत्र में काम कर रहे वैज्ञानिक की दक्षता से उसका हल भी मिल जाता है। बैरीक का नई खोजों के लिए पुरस्कृत करने का इतिहास रहा है। कंपनी पहले ही उत्खनन क्षेत्र में अन्वेषण के लिए प्राइज मनी प्रतियोगिता करा चुकी है। भारत में यह चलन एकदम नया है जबकि विकसित देशों में यह काफी प्रचलित हो चुका है।
कंपनियों, अकादमिक संस्थानों और गैरलाभकारी संगठनों को जोड़ने वाले एक ऑनलाइन नेटवर्क ने समस्याओं को सुलझाने वाले संगठन के तौर पर पहचान बना ली है। नेटवर्क ने व्यापार, रसायन, इंजीनियरिंग और डिजायन, जीव विज्ञान, कंप्यूटर, भौतिकी आदि क्षेत्रों में सृजनात्मक हल मुहैया कराने के जरिये तकरीबन चार करोड़ रुपये की कमाई की।