काउंसिल आन एनर्जी, एनवायरनमेंट ऐंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) की ओर से आज जारी एक अध्ययन के मुताबिक 2030 तक नए वाहनों की बिक्री में इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) की हिस्सेदारी 30 प्रतिशत होने से भारत का सालाना तेल आयात 1,07,566 करोड़ रुपये कम हो सकता है। लेकिन इस बदलाव का मतलब यह भी है कि तेल और ऑटोमोबाइल क्षेत्र से सालाना मूल्य वर्धन हानि करीब 2 लाख करोड़ रुपये हो सकता है।
केंद्र व राज्य सरकारों को पेट्रोल व डीजल की बिक्री घटने से करीब 1 लाख करोड़ रुपये सालाना कर का नुकसान हो सकता है, जिससे केंद्र व राज्यों को पेट्रोलियम खपत से होने वाली कमाई पर निर्भरता कम करनी होगी और आमदनी के अन्य स्रोतों पर ध्यान केंद्रित करना होगा। 2030 में कच्चे तेल की 100 प्रतिशत मांग की कल्पना के आधार पर आयात बिल में 15 प्रतिशत कमी का अनुमान लगाया गया है। इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या में बढ़ोतरी से पावरट्रेन, बैटरी और पब्लिक चार्जर के बाजार का संयुक्त आकार भी बढ़कर 2,12,456 करोड़ रुपये हो जाएगा, जिससे इस क्षेत्र में 1,20,000 नई नौकरियों का सृजन होगा। साथ ही बैटरी रिसाइक्लिंग, टेलीमैट्रिक्स और संबंधित निर्माण एवं सेवा क्षेत्र में भी नई नौकरियों का सृजन होगा।
सीईईडब्ल्यू के अध्ययन के मुताबिक 2030 तक कुल वाहनों में ईवी की संख्या 30 प्रतिशत करने के लक्ष्य को पूरा करने से पर्यावरण को भी लाभ होगा और प्राइमरी पार्टिकुलेट मैटर और नाइट्रोजन ऑक्साइड और डाई ऑक्साइड उत्सर्जन में 17 प्रतिशत, कार्बन मोनो ऑक्साइड के उत्सर्जन में 18 प्रतिशत और ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में 4 प्रतिशत की कमी आएगी। अध्ययन के लेखकों में से एक और सीईईडब्ल्यू के शोधकर्ता अभिनव सोमन ने कहा कि ईवी की हिस्सेदारी 30 प्रतिशत करने का लक्ष्य सिर्फ इलेक्ट्रिक दोपहिया व तिपहिया वाहनों की बिक्री से हासिल किया जा सकता है।
