प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में डब्ल्यूएचओ ग्लोबल सेंटर ऑफ ट्रेडिशनल मेडिसन के शिलान्यास समारोह में कहा कि भारत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भारतीय दवाएं वैश्विक मानकों के अनुरूप हैं। उन्होंने परंपरागत चिकित्सा प्रथाओं के वैश्विक भंडार की स्थापना पर भी जोर दिया था।
बिज़नेस स्टैंडर्ड के विश्लेषणों से पता चलता है कि आयुष मंत्रालय के लिए सरकारी सहयोग मजबूत हो रहा है। 2021-22 में मंत्रालय के धन के उपयोग में 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई जो 2014 में इसकी शुरुआत के बाद से सर्वाधिक स्तर है। मंत्रालय का खर्च 2015-16 के मुकाबले 2.5 गुना बढ़ चुका है।
बहरहाल, पिछले तीन साल से मंत्रालय की व्यय वृद्घि दो अंकों में रही है। एक ओर जहां मंत्रालय ने कोष के इस्तेमाल में अच्छी प्रगति की है, वहीं सरकार का अग्रणी कार्यक्रम राष्ट्रीय आयुष मिशन व्यय प्रदर्शन में पिछड़ गया। मंत्रालय द्वारा धन का इस्तेमाल जहां बजट अनुमानों से महज 5 फीसदी कम रहा, वहीं राष्ट्रीय आयुष मिशन ने 16 फीसदी कम खर्च किया। यहां तक कि पिछले चार वर्षों में से दो वर्ष व्यय वृद्घि ऋणात्मक रही है।
राज्यवार विश्लेषणों से पता चलता है कि राज्य सरकारों द्वारा किए जाने वाले खर्च में 2021-22 में दो तिहाई की कमी आई। लोकसभा में एक प्रश्न का जवाब देते हुए मंत्रालय ने खुलासा किया था कि राज्य सरकार का व्यय 2021-22 में घटकर 65.17 करोड़ रुपये रह गया जो 2020-21 में 198.62 करोड़ रुपये और 2019-20 में 271.64 करोड़ रुपये रहा था।
मिशन के मोर्चे पर पिछडऩे के बावजूद आयुष दवाओं की बिक्री में इजाफा हुआ है जिससे इसकी बढ़ी हुई स्वीकार्यता के संकेत मिलते हैं। 2020-21 के लिए मंत्रालय की ताजा वार्षिक रिपोर्ट के आंकड़ों से पता चलता है कि इंडियन मेडिसन्स फार्मास्यूटिकल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (आईएमपीसीएल) द्वारा आयुष दवाओं की बिक्री 2016-17 के 66.46 करोड़ रुपये से बढ़कर 2020-21 में 164.33 करोड़ रुपये की हो गई। आईएमपीसीएल के पास आयुर्वेदिक और यूनानी दवाओं के विनिर्माण का लाइसेंस है। इन आंकड़ों के और अधिक विश्लेषण से पता चलता है कि आयुष दवाओं के निर्यात में भी बढ़ोतरी हो रही है। 2019-20 में 92,242 टन आयुष और हर्बल उत्पादों का देश से निर्यात किया गया। 2020-21 में निर्यात बढ़कर 1,20,558 टन पर पहुंच गया। अप्रैल और जनवरी 2021-22 के बीच 1,04,511 टन का निर्यात किया गया था।
चीन और अमेरिका भारतीय आयुष तथा हर्बल उत्पादों के प्रमुख आयातक हैं और उनकी हिस्सेदारी में इजाफा हुआ है। 2019-20 में भारत के निर्यात में इन दो देशों की हिस्सेदारी 26 फीसदी रही थी जो 2020-21 में बढ़कर 36 फीसदी हो गई और 2021-22 में मामूली कम होकर 32 फीसदी पर आ गई।
