जी-7 देशों के वित्त मंत्रियों ने दुनिया भर में मंडरा रहे आर्थिक संकट के बादलों और डॉलर के गिरते दाम पर गहरी चिंता जताई है।
साथ ही आशंका जाहिर की कि अगर क्रेडिट संकट बरकरार रहता है तो हालात और भी बिगड़ सकते हैं। जी 7 देशों के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंकरों ने वाशिंगटन में बातचीत के बाद जारी बयान में कहा है कि पिछली मीटिंग से अब तक कई बार दुनिया की महत्वपूर्ण मुद्राओं में उतार चढ़ाव देखा गया है।
आर्थिक स्थिरता पर इसके प्रभावों को लेकर चिंतित हैं।प्रतिनिधियों ने दुनिया की खराब आर्थिक स्थिति के लिए अमेरिकी हाउसिंग संकट, क्रेडिट बाजार में मंदी और कमोडिटी की कीमतों में इजाफा और मुद्रास्फीति (मंहगाई दर) को जिम्मेदार ठहराया।
जी 7 देशों की पिछली बैठक फरवरी में टोक्यो में हुई थी और इतने कम समय में ही डॉलर के दाम में यूरो के मुकाबले 8 फीसदी और येन के मुकाबले 6 फीसदी गिरावट आई है। इसी हफ्ते यूरो के मुकाबले अमेरिकी डॉलर 1.5913 के रेकॉर्ड न्यूनतम स्तर पर था।
बाजार पर नजर
जी 7 देशों ने कहा कि एक्सचें मार्केट पर पैनी नजर रखी जा रही है और हम इसमें सहयोग करने के लिए तैयार हैं। हेनरी पॉलसन के अनुसार मुद्रा के मसले पर जी 7 देशों के बदले तेवर इस बात का संकेत हैं कि बाजार में बदलाव की बयार बह रही है। इसके साथ ही पॉलसन ने कहा कि जी 7 देशों को साफ तौर पर बता दिया गया है कि हम हर हाल में डॉलर को मजबूत बनाने के लिए तत्पर हैं।
मॉर्गन स्टैनली में मुद्रा रणनीतिकार सोफिया ड्रॉसॉस कहती हैं कि डॉलर को मजबूत बनाने के लिए सावधानी से कोशिश की जा रही है। अगर ऐसा नहीं किया जाता तो डॉलर में गिरावट जारी रहने के आसार थे।
इससे पता चलता है कि अस्थिरता बढ़ गई है। नीति नियामकों ने पूंजी बाजार को पटरी पर लाने के लिए 100 दिन का एक कार्यक्रम बनाया है। वित्तीय कंपनियों से कहा गया है कि वह अपनी अर्ध वार्षिक आमदनी में साफ तौर पर बताएं कि उनका कि तना निवेश डूबने के कगार पर है।
मुश्किल में दुनिया
प्रतिनिधियों ने बैठक के बाद जारी बयान में कहा है कि वैश्विक वित्त बाजार की हालत उम्मीद से कहीं ज्यादा खराब है। आर्थिक भविष्य की तस्वीर चिंताजनक है। जी 7 देशों ने दुनिया को इस संकट से निकालने के लिए जरूरी मौद्रिक और वित्तीय कदम उठाने का प्रण किया लेकिन यह कदम क्या होंगे इसका खुलासा नहीं किया। इसके साथ ही बेसिल स्थित फाइनेंशियल स्टेबिलिटी फोरम की सिफारिशों को लागू करने पर भी प्रतिबध्दता जाहिर की गई।
जी – 7 ने यह भी मांग की कि नियामक लिक्विडिटी रिस्क मैनेजमेंट से जुड़े नियमों पर दोबारा विचार किया जाए, उन इकाइयों के लिए मानकों में सुधार किया जाए जिनका जिक्र बैलेंस शीट में नहीं होता और परिसंपत्तियों के मूल्यांकन के बारे में ज्यादा जानकारी मुहैया कराई जाए।