Strait of Hormuz Crisis: पिछले कुछ दिनों से इजरायल और ईरान के बीच बढ़ता तनाव वैश्विक ऊर्जा बाजारों के लिए एक बड़ा खतरा बनकर उभरा है। लेकिन इस तनाव के बीच जो एक नाम सबसे ज्यादा चर्चा में रहा है, वह है ‘स्ट्रेट ऑफ होर्मुज’। ‘स्ट्रेट ऑफ होर्मुज’ एक ऐसा समुद्री मार्ग जो दुनिया के तेल और गैस व्यापार के लिए बेहद अहम है। अगर बात भारत के संदर्भ में की जाए तो यह और महत्वपूर्ण हो जाता है। भारत अपनी ऊर्जा जरूरत का लगभग 85% कच्चा तेल इसी ‘स्ट्रेट ऑफ होर्मुज’ से मंगाता है, जो सऊदी अरब, ईरान, इराक, कुवैत, कतर आदि जैसे देशों से आता है। ये सभी तेल टैंकर ‘स्ट्रेट ऑफ होर्मुज’ से होकर ही भारत पहुंचते हैं।
गौरतलब है कि भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए 80 प्रतिशत से अधिक तेल आयात पर निर्भर है, इसलिए इस क्षेत्र में स्थिरता बेहद जरूरी है। हाल ही में इजरायल द्वारा ईरान के सैन्य और परमाणु ठिकानों पर हमले और ईरान की ओर से ‘स्ट्रेट ऑफ होर्मुज’ को बंद करने की धमकी ने वैश्विक चिंता बढ़ा दी है। ‘स्ट्रेट ऑफ होर्मुज’ भारत के साथ-साथ पूरी दुनिया के ऊर्जा व्यापार के लिए महत्वपूर्ण है और ईरान के इस ऐलान ने मध्य पूर्व देशों से तेल और गैस खरीदने वाले दुनिया भर के मुल्कों की चिताएं बढ़ा दी हैं।
‘स्ट्रेट ऑफ होर्मुज’ एक संकरा समुद्री मार्ग है, जो ईरान और ओमान के बीच स्थित है। यह फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी और अरब सागर से जोड़ता है। यह मार्ग इतना महत्वपूर्ण है कि इसे कच्चे तेल व्यापार के सबसे बड़े चोकपॉइंट के रूप में माना जाता है।
अमेरिकी ऊर्जा सूचना प्रशासन (EIA) के अनुसार, दुनिया का लगभग 20 प्रतिशत तेल और 20 प्रतिशत लिक्विफाइड नेचुरल गैस (LNG) इस संकरे रास्ते से होकर गुजरती है। हर दिन करीब 20.9 मिलियन बैरल तेल और इससे संबंधित उत्पाद इस मार्ग से विश्व के विभिन्न हिस्सों, खासकर एशियाई देशों जैसे भारत, चीन, जापान और दक्षिण कोरिया तक पहुंचते हैं।
यह मार्ग केवल 21 मील चौड़ा है, जो इसे सैन्य और भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से बेहद संवेदनशील बनाता है। सऊदी अरब, इराक, कुवैत, कतर और संयुक्त अरब अमीरात जैसे प्रमुख तेल उत्पादक देशों का तेल निर्यात इसी रास्ते से होता है। अगर इस मार्ग में कोई रुकावट आती है, तो वैश्विक तेल आपूर्ति पर गहरा असर पड़ सकता है, जिससे तेल की कीमतें आसमान छू सकती हैं।
बीते दिनों जेपी मॉर्गन ने चेतावनी दी थी कि अगर ‘स्ट्रेट ऑफ होर्मुज’ बंद होता है, तो तेल की कीमतें 120 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती हैं।
एनर्जी एक्सपर्ट नरेंद्र तनेजा भी इस बात से सहमत दिखते हैं। तनेजा कहते हैं, “इस समुद्री रास्ते से प्रतिदिन 20 मिलियन बैरल से अधिक कच्चा तेल दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में पहुंचता है। यह दुनिया भर में प्रतिदिन खपत होने वाले कुल तेल का 20% है। अगर ईरानी नौसेना के जहाजों द्वारा किसी भी तरह की रुकावट करने की कोशिश की जाती है या फिर पानी में विस्फोटक डालने से तेल टैंकरों के प्रभावित की जाती है तो इससे आवाजाही और आपूर्ति बाधित होगी, जिससे वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें आसमान छू जाएंगी।”
बता दें कि भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है, जो अपनी ऊर्जा जरूरतों का 85 प्रतिशत से अधिक हिस्सा आयात से पूरा करता है। भारतीय रिफाइनरियों द्वारा मई 2025 में आयात किए गए लगभग 47 प्रतिशत कच्चे तेल का परिवहन ‘स्ट्रेट ऑफ होर्मुज’ के रास्ते हुआ था। इसके अलावा, भारत की लगभग आधी LNG आपूर्ति भी इसी मार्ग से आती है। इस स्थिति में, अगर ‘स्ट्रेट ऑफ होर्मुज’ में कोई व्यवधान होता है, तो भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर गंभीर खतरा मंडरा सकता है।
हाल के दिनों में इजरायल और ईरान के बीच तनाव बढ़ने से तेल की कीमतों में उछाल देखा गया है। उदाहरण के लिए, इजरायल द्वारा ईरान के सैन्य और परमाणु ठिकानों पर हमले के बाद तेल की कीमतें दो महीने के उच्चतम स्तर 78 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गईं। गोल्डमैन सैक्स ने भी अनुमान लगाया है कि अगर ‘स्ट्रेट ऑफ होर्मुज’ में रुकावट होती है, तो तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल से भी ऊपर जा सकती हैं। भारत जैसे देश के लिए, जो अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए खाड़ी देशों पर बहुत अधिक निर्भर है, यह स्थिति महंगाई और आर्थिक अस्थिरता को बढ़ावा दे सकती है।
तनेजा कहते हैं, “भारतीय रिफाइनरी सऊदी अरब, इराक, कुवैत और अबू धाबी से कच्चा तेल खरीदते हैं और कतर से LNG भी खरीदते हैं। इन सब की आपूर्ति प्रभावित हो सकती है क्योंकि टैंकरों के लिए उपलब्ध एकमात्र मार्ग ‘स्ट्रेट ऑफ होर्मुज’ से होकर ही है। दूसरी बात, हमारी सबसे बड़ी चिंता यह है कि अगर युद्ध जारी रहा तो तेल और गैस दोनों की कीमतों में तेजी से उछाल आएगा।”
भारत सरकार इस स्थिति पर नजर रख रही है और वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों की तलाश कर रही है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि भारत रूस, अमेरिका और पश्चिम अफ्रीकी देशों से तेल आयात को बढ़ाने पर विचार कर सकता है। हालांकि, इन वैकल्पिक मार्गों से शिपिंग लागत बढ़ सकती है, क्योंकि ‘स्ट्रेट ऑफ होर्मुज’ की तुलना में ये रास्ते लंबे और महंगे हैं। इसके अलावा, भारत के पास रणनीतिक तेल भंडार हैं, लेकिन लंबे समय तक आपूर्ति में व्यवधान होने पर ये भंडार भी अपर्याप्त साबित हो सकते हैं।
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‘स्ट्रेट ऑफ होर्मुज’ में किसी भी तरह की रुकावट का असर केवल तेल और गैस की आपूर्ति तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह भारत के समग्र व्यापार और अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित कर सकता है। इस मार्ग से न केवल ऊर्जा व्यापार, बल्कि भारत के खाड़ी देशों को होने वाले दूसरे निर्यात भी प्रभावित हो सकते हैं। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के अनुसार, वित्त वर्ष 25 में भारत का लगभग 3.8 बिलियन डॉलर से अधिक का व्यापार इजरायल और ईरान के साथ हुआ। इसमें से भारत और इजरायल के बीच वित्त वर्ष 25 में व्यापार 2.15 बिलियन डॉलर था, जबकि ईरान के साथ 1.24 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ था।
इसके अलावा, अगर इस मार्ग में व्यवधान होता है, तो जहाजों को दूसरे रास्ते से जाना पड़ सकता है, जिससे शिपिंग के समय में 15-20 तक की बढ़ोतरी हो सकती है और लागत में भी बढ़ सकता है।
इससे माल ढुलाई और बीमा लागत बढ़ेगी, जिसका असर भारतीय बाजार पर पड़ेगा और इससे सामान महंगे हो सकते हैं। इसके अलावा भारतीय रुपये पर भी दबाव बढ़ सकता है, क्योंकि तेल की कीमतें बढ़ने से आयात बिल बढ़ेगा और डॉलर की मांग बढ़ने से रुपये का मूल्य कम हो सकता है। इससे महंगाई बढ़ने का खतरा है, जिसके कारण रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को अपनी मौद्रिक नीति पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है।
इसी बीच आज दो तेल टैंकरों की ‘स्ट्रेट ऑफ होर्मुज’ के पास टक्कर और आग लगने की घटना ने भी बाजारों में चिंता बढ़ा दी है। हालांकि, अभी तक तेल और गैस की आपूर्ति में कोई बड़ा व्यवधान नहीं हुआ
इस तनाव के बीच, भारत सरकार उद्योग जगत के साथ मिलकर स्थिति पर नजर रख रही है। सरकार ने शिपिंग कंपनियों और कंटेनर संगठनों के साथ बातचीत करने की बात कही है ताकि इस संकट का व्यापार पर प्रभाव कम किया जा सके। एक्सपर्ट का मानना है कि भारत को अपनी ऊर्जा आपूर्ति को विविधता देने और रणनीतिक भंडारों को मजबूत करने की जरूरत है, ताकि भविष्य में इस तरह के संकटों का सामना किया जा सके।