भारतीय रिफाइनरों को रूस से कम कीमत पर तेल मिलना जारी रहेगा, ऐसे में ओपेक समूह (Opec+ group ) की तरफ से कच्चे तेल का उत्पादन घटाने का भारत पर असर नहीं होगा। अधिकारियों ने मंगलवार को ये बातें कही।
उन्होंने कहा कि भारतीय रिफाइनरों को मौजूदा दरों पर कच्चे तेल की अबाध आपूर्ति के लिए आश्वस्त किया गया है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, वैश्विक कीमत की सीमा के बाद कई रिपोर्ट से भारत की खरीदारी के पैटर्न में बदलाव का पता चलता है। लेकिन भारतीय रिफाइनरों को अनुकूल खरीद करार का लाभ मिलता रहेगा।
13 अहम तेल उत्पादक देशों मसलन सऊदी अरब, ईरान, इराक और वेनेजुएला आदि के अंतर-सरकारी संगठन ओपेक को अर्थशास्त्री कार्टल करार देते रहे हैं। सदस्य देश कुल वैश्विक तेल उत्पादन में करीब 44 फीसदी की हिस्सेदारी रखते हैं बकि दुनिया के तेल भंडार में इनकी हिस्सेदारी 81.5 फीसदी है। ये आंकड़े 2018 के हैं।
भारत के लिए रूस लगातार छठे महीने मार्च में कच्चे तेल का सबसे बड़ा स्रोत बना रहा और उसने सभी तेल आयात के 35 फीसदी के बराबर आपूर्ति की। यह जानकारी लंदन की कमोडिटी डेटा एनालिस्ट वोर्टेक्सा से मिली, जो तेल आयात के अनुमान के लिए जहाजों की आवाजाही को ट्रैक करती है।
भारत ने मार्च में रूस से अब तक का सबसे ज्यादा 16.4 लाख बैरल रोजाना तेल का आयात किया, जो फरवरी में 16 लाख बैरल रोजाना रहा था। जनवरी में आयात 14 लाख बेरल और दिसंबर में 10 लाख बैरल रहा था। वोर्टेक्सा के आंकड़ों से यह जानकारी मिली।
हालांकि रूस से आयात हाल के महीनों में धीरे-धीरे बढ़ा है। उद्योग के अधिकारियों ने कहा कि इसकी वजह भारतीय रिफाइनरों की तरफ से डॉलर के बजाय अन्य मुद्राओं में भुगतान में होने वाली मुश्किल है, जिसकी मांग रूस ने की थी जब उस पर अंतरराष्ट्रीय पाबंदी लगी थी।
तेल विपणन कंपनी के एक अधिकारी ने कहा, अब इन मसलों का समाधान निकाल लिया गया है और रुपये में ट्रेड हो रहा है। इसके परिणामस्वरूप रूस से वॉल्यूम और बढ़ सकता है। रूसी बैंक अपने पास रुपये के भारी भंडार जमा होने को लेकर चिंतित हैं क्योंकि भारत से रूस को आयात भारत की तरफ से रूस से आयात के मुकाबले काफी कम है।