Israel-Iran crisis: ईरान और इजरायल के बीच चल रहे तनाव के असर को समझने और आगे की योजना बनाने के लिए नई दिल्ली में सरकारी अधिकारियों ने विभिन्न हिस्सेदारों से बातचीत शुरू कर दी है। इनमें शिपिंग और कंटेनर कंपनियों से लेकर निर्यात संवर्धन परिषद शामिल हैं। सूत्रों ने कहा कि पश्चिम एशिया में संकट की स्थिति को देखते हुए मंत्रालयों के बीच बातचीत भी चल रही है।
अधिकारियों के मुताबिक कच्चे तेल की आवक पर अभी सीधा कोई खतरा नहीं है, लेकिन तेल की कीमतों में वृद्धि को लेकर चिंता बनी हुई है। सोमवार को वाणिज्य सचिव सुनील बड़थ्वाल ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि सरकार स्थिति की निगरानी कर रही है, वह इस सिलसिले में उपचारात्मक कदम उठाएगी और उचित कार्रवाई करेगी।
बड़थ्वाल ने कहा, ‘जब भी इस तरह का टकराव पैदा होता है, हम व्यापार की निगरानी और हिस्सेदारों से परामर्श शुरू कर देते हैं। नीतिगत हस्तक्षेप तब शुरू होगा, जब हम समझ लेंगे कि व्यापारियों को किस तरह की समस्याएं हो रही हैं।’
उन्होंने कहा कि सरकार पिछले 2 साल से ज्यादा समय से क्षेत्रीय टकरावों से निपट रही है और विभिन्न क्षेत्रों में निर्यात में विविधता लाने की रणनीति तैयार की गई है। इजरायल पर ईरान द्वारा ड्रोन और मिसाइल से हमले के दो दिन बाद वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि वे स्थिति पर नजर रखे हुए हैं और इस मसले पर संबंधित मंत्रालयों के संपर्क में बने हुए हैं।
नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव (जीटीआरआई) ने कहा कि लाल सागर में जहाजों की आवाजाही बाधित होने के कारण भारत के व्यापार की समस्या जटिल हो सकती है क्योंकि ईरान और इजरायल में नया टकराव शुरू हो गया है।
ईरान और इजरायल के बीच युद्ध के कारण तेल की आवक पर सीधा असर पड़ने की आशंका नहीं है, लेकिन सरकार तेल की वैश्विक कीमतों पर पड़ने वाले असर को लेकर चिंतित है।
पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा, ‘हमने हमेशा यह ध्यान रखा है कि कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर जाने पर कठिन स्थिति पैदा हो सकती है। इस स्तर तक पहुंचने से पहले अभी पर्याप्त बफर है। पश्चिम एशिया में लगातार चल रहे संकट के असर के कारण तेल की कीमत हमारी अपेक्षा से कहीं लंबे समय तक ऊंचे स्तर पर बनी रह सकती है, जैसा कि हमने पहले अनुमान लगाया था।’
जीटीआरआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस टकराव का संभवतः भारत में पेट्रोलियम की कीमत पर असर नहीं पड़ेगा। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘इस टकराव के कारण पश्चिम एशिया में स्थिति बहुत अस्थिर बन गई है। इससे भारत मध्य-पूर्व गलियारा (आईएमईसी) जैसी परियोजनाओं पर असर पड़ सकता है। यह व्यापार गलियारा लंबे समय से कागजों में पड़ा है।’
रिपोर्ट में कहा गया है कि समुद्री मार्ग की सुरक्षा में वृद्धि के कारण लाल सागर के शिपिंग मार्ग प्रभावित हो सकते हैं और इससे भारत का इजरायल और ईरान के साथ कारोबार प्रभावित हो सकता है।
उदाहरण के लिए चावल निर्यातक बहुत चिंतित हैं। सूत्रों ने कहा कि टकराव को देखते हुए लाल सागर से आवाजाही के मसले व अन्य चुनौतियों को लेकर उन्होंने बैठक की है।
तेल मंत्रालय के एक और अधिकारी ने कहा, ‘चुनौती यह है कि पड़ोसी देश कई शिपिंग मार्ग संचालित कर रहा है। कच्चे तेल की ढुलाई की दर पहले से ही बढ़ी हुई है। अगर ढुलाई की दर आने वाले समय में और बढ़ती है तो तेल विपणन कंपनियों द्वारा खरीद पर नकारात्मक असर पड़ेगा। हम स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं।’
साल 2023 में वस्तु निर्यात सहित भारत से ईरान को निर्यात 1.7 अरब डॉलर रहा है, जबकि आयात 67.2 करोड़ डॉलर रहा है। भारत से ईरान को भेजी जाने वाली प्रमुख वस्तुओं में चावल (1.03 अरब डॉलर) और कार्बनिक रसायन (11.3 करोड़ डॉलर) शामिल हैं।
यूक्रेन और गाजा में युद्ध और ईरान समर्थित हूती चरमपंथियों की धमकियों के कारण लाल सागर और अदन की खाड़ी में तनाव बढ़ा है और इसकी वजह से तेल के कारोबार पर असर पड़ा है।
बहरहाल अधिकारियों ने कहा कि पश्चिम एशिया में नए तनाव से भारत के आयात चैनल पर सीधा कोई असर पड़ने की आशंका नहीं है क्योंकि भारत भुगतान की कठिनाइयों के चलते ईरान से तेल नहीं खरीदता है।
साल 2018-19 तक ईरान, भारत का तीसरा बड़ा तेल स्रोत था, जब आयात बढ़कर 12.1 अरब डॉलर पर पहुंच गया। एक साल से ज्यादा समय तक रूस से कच्चा तेल खरीदने के बाद भारत एक बार फिर पश्चिम एशिया के अपने परंपरागत आपूर्तिकर्ताओं से संबंध बढ़ाने पर विचार कर रहा है। इन देशों से आने वाला कच्चा तेल फारस की खाड़ी, ओमान की खाड़ी और ईरान के जल क्षेत्र से आता है।