नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में सब्सिडी और कोयले पर शुल्क अधिक करने से वर्ष 2030 तक भारत में उत्सर्जन एक तिहाई तक कम हो सकता है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के दो अर्थशास्त्रियों मारगॉक्स मैकडोनाल्ड और जॉन स्प्रे द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है।
उनके अध्ययन में कहा गया है कि इन दो कदमों से 2030 तक कोयले के आयात में भी 14 फीसदी की गिरावट आ जाएगी और ऐसे में ऊर्जा कीमतों में वैश्विक परिवर्तन को लेकर लचीलापन बढ़ेगा और ऊर्जा सुरक्षा में सुधार होगा।
अध्ययन का ब्योरा मंगलवार को जारी किया गया। इसके अनुसार, भारत ने पेरिस समझौते के तहत अपने उत्सर्जन में कटौती के लक्ष्य को पूरा करने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन मौजूदा नीतियों के साथ कुल ग्रीनहाऊस गैस का उत्सर्जन 2030 तक 40 फीसदी तक और बढ़ जाएगा।
इसमें कहा गया है कि लघुकालीन उत्सर्जन में मामूली बढ़ोतरी गरीबी उन्मूलन और ऊर्जा सुरक्षा के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए जरूरी हो सकती है, लेकिन मौजूदा नीतियों का स्तर बढ़ाते रहने से 2070 तक उत्सर्जन को शून्य तक ले जाने के लक्ष्य के निकट पहुंचा जा सकता है।
दोनों अर्थशास्त्रियों ने कहा है कि उनके अध्ययन से पता चलता है कि नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में मिलने वाली सब्सिडी और कोयले पर शुल्क अधिक होने से वर्ष 2030 तक भारत में उत्सर्जन एक तिहाई तक कम हो सकता है।