वर्ष 2024 अभी तक का सबसे गर्म साल रिकॉर्ड किया गया है। ऐसे में सबकी नजरें अगले पखवाड़े बाकू में होने वाले संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (कॉप29) पर टिकी हैं। कॉप29 इसलिए भी महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है कि यह वाटरशेड पेरिस कॉप21 और ग्लोबल नॉर्थ द्वारा किए गए नए फाइनैंसिंग वादों के बाद राष्ट्रीय स्तर पर संशोधित निर्धारित योगदान (एनडीसी) का गवाह बनेगा। लेकिन प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के इस सम्मेलन से किनारा करने की आशंका है। अमेरिका के नए राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के सत्ता संभालने के बाद अमेरिका इस सम्मेलन में शिरकत करने की अनिच्छा जता सकता है जिससे कॉप29 के मकसद पर पानी फिर सकता है।
सूत्रों ने संकेत दिया कि भारत के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री के भी इस बार सम्मेलन में शामिल नहीं होने के आसार हैं। सूत्रों ने कहा कि इस बार आयोजन स्थल पर भारत का कोई आधिकारिक मंडप भी नहीं है। इस बारे में जानकारी के लिए मंत्रालय से संपर्क किया गया लेकिन खबर लिखे जाने तक मंत्रालय के प्रवक्ता का कोई जवाब नहीं आया।
सम्मेलन के पहले कुछ दिनों में सदस्य देशों द्वारा जलवायु को लेकर अपने नए संकल्प की घोषणा किए जाने की उम्मीद है। इसमें अजरबैजान, ब्राजील और ब्रिटेन की कॉप नेतृत्व तिकड़ी शामिल होंगी। क्लाइमेट ट्रेंड्स के विश्लेषण में कहा गया है कि नए एनडीसी फरवरी 2025 तक आने वाली है और वैश्विक आकलन तथा कॉप28 समझौते पर बात बनने की उम्मीद है, जिसमें सदस्य देशों ने जीवाश्म ईंधन से किनारा करने की प्रतिबद्धता जताई है और नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता तथा ऊर्जा दक्षता के लक्ष्य निर्धारित किए हैं।
संयुक्त राष्ट्र के जलवायु कार्रवाई और जस्ट ट्रांजिशन के महासचिव के विशेष सलाहकार सेलविन हार्ट ने कहा, ‘बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान की मुख्य परख होगी क्योंकि यही तय करेगा कि पेरिस समझौता को पूरा किया जा सकता है या नहीं। विकासशील देशों के लिए यह सही नीति संदेश देने और समावेशिता सुनिश्चित करने का अवसर है। लेकिन इसमें वित्त पोषण की जरूरत होगी।’
हालांकि इस बार कॉप सम्मेलन पर ट्रंप की छाया बरकरार रहने की आशंका है। वैश्विक मीडिया रिपोर्टों के अनुसार अमेरिका, यूरोपीय संघ और ब्राजील सहित प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के नेता पहले से ही कॉप29 से किनारा करने की योजना बना रहे हैं। पापुआ न्यू गिनी ने ‘खोखले वादों और निष्क्रियता’ पर अपनी निराशा का हवाला देते हुए कॉप29 से अपना नाम वापस ले लिया है।
वैश्विक जलवायु प्रयासों पर संदेह जताते हुए वर्ष 2017 में ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका ने पेरिस जलवायु समझौते से बाहर निकलने के इरादे की घोषणा की थी।
क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने कहा कि पिछली बार जलवायु नीति पर ट्रंप की कार्रवाई और पेरिस समझौते से हटने के निर्णय से यह भरोसा नहीं होता है कि वे जलवायु आपातकाल पर आवश्यक ध्यान देंगे।
खोसला ने कहा, ‘कॉप में महत्त्वाकांक्षी जलवायु वित्तपोषण पर नई सामूहिक मात्रात्मक लक्ष्य (एनसीक्यूजी) समझौता यह सुनिश्चित कर सकता है कि जलवायु कार्रवाई के लिए धन का प्रवाह बना रहे भले ही अमेरिका का योगदान शून्य हो जाए। अन्य वैश्विक नेताओं से जलवायु चुनौती का सामना करने की उम्मीद की जाएगी। यूरोपीय संघ और चीन इसके लिए आगे आ रहे हैं। ब्राजील, भारत और केन्या जैसे देशों ने भी इस दिशा में महत्त्वाकांक्षा दिखाई है।’