डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति उम्मीदवार जो बाइडन लगातार 270 के बहुमत के आंकड़े के नजदीक पहुंच रहे हैं। यह आंकड़ा हासिल करने पर वह व्हाइट हाउस में पहुंच जाएंगे। ऐसे में विश्लेषकों ने यह चर्चा शुरू कर दी है कि नए अमेरिकी प्रशासन की नीतियों के दक्षिण एशिया और भारत के लिए क्या मायने हो सकते हैं। हालांकि भारतीय और अमेरिकी विशेषज्ञ कह रहे हैं कि भले ही कोई भी सरकार आए, अमेरिका के लिए भारत आगे भी प्रभावशाली सामरिक साझेदार बना रहेगा। हालांकि तीन क्षेत्रों को लेकर चिंताएं हैं। इनमें बढ़ते ‘अनुदारवाद’ को रोकने की डेमोक्रेट की प्रतिबद्धता, चीन के उभार और उप-महाद्वीप में शक्ति संतुलन और व्यापार एवं सैन्य संबंधों को बढ़ाना शामिल हैं।
जब मतों की गिनती चल रही थी, उस समय डेमोक्रेट समर्थकों को संबोधित करते हुए बाइडन ने कहा, ‘हमारी ताकत का उदाहरण अमेरिका की सबसे अधिक ताकत नहीं बल्कि हमारे उदाहरण की ताकत है।’ उन्होंने वर्ष 2016 में यही बयान दिया था। उन्होंने कहा, ‘सहिष्णुता को लेकर हमारे मूल्यों और हमारी प्रतिबद्धताओं का पालन ही हमें अन्य दूसरी ताकतों से अलग बनाता है।’ सहिष्णुता और लोकतंत्र को लेकर इस प्रतिबद्धता के चलते ही हाल में अमेरिकी संसद कांग्रेस की सदस्य प्रमिला जयपाल (जिन्होंने चुनाव जीता है) ने कश्मीर में नागरिक अधिकारों का मुद्दा उठाया था। इसके बाद पिछले साल विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ बैठक में उनके हिस्सा लेने पर रोक लगा दी गई थी।
निकोलस बन्र्स और अंजा मैनुअल जो बाइडन के सबसे प्रभावशाली समर्थक हैं और दोनों पिछले डेमोक्रेटिक प्रशासन का हिस्सा रहे थे। उन्होंने एक हस्ताक्षरित आलेख में कहा, ‘अमेरिका को घरेलू स्तर पर नस्लीय अन्याय को रोकना चाहिए और दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों के बीच विभाजनकारी संबंंध को दुरुस्त करना चाहिए। भारत को यह सलाह दी जाएगी कि वह उन लोगों पर काबू रखे, जो आम तौर पर देश की बड़ी मुस्लिम आबादी को नुकसान पहुंचाने के लिए कट्टर हिंदू राष्ट्रवादी एजेंडा अपनाते हैं।’
दक्षिण एशिया में राजनीतिक हिंसा और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा का अध्ययन कर चुके एक शिक्षाविद पॉल स्टानिलैंड ने बिज़नेस स्टैंडर्ड के साथ बातचीत में कहा, ‘बाइडन ने चीन, रूस और अन्य अनुदार देशों के प्रभाव की काट के लिए लोकतंत्र और उदारतावाद की अहमियत उजागर की है। यह देखना होगा कि इसका वास्तविक निति निर्माण पर क्या असर पड़ता है, लेकिन ऐसा लगता है कि उदार लोकतंत्र को लेकर प्रतीकवाद और बयानबाजी पर जोर रहेगा।’
पूर्व राजदूत और मुंबई के थिंक टैंक गेटवे हाउस की निदेशक नीलम देव कहती हैं कि उदार लोकतंत्र को लेकर इस प्रतिबद्धता के भारत के लिए अनचाहे परिणाम हो सकते हैं। इसका मतलब यह भी हो सकता है कि रूस पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए जाएं क्योंकि डेमोक्रेट्स का मानना है कि रूस ने हिलेरी क्लिंटन को हराने के लिए ट्रंप के साथ सांठगांठ की। वे ट्रंप प्रशासन की इस बात पर भी आलोचना करते हैं कि उसने रूस को लेकर कई मुद्दों पर कड़ा रुख नहीं अपनाया। इनमें क्रीमिया के विलय से लेकर बेलारूस में निरंकुश लुकाशेंका शासन को मौन सहमति देना शामिल हैं। कड़े प्रतिबंधों का मतलब है कि रूस और भारत के बीच रक्षा संधियां बढ़ सकती हैं, जिन पर अभी अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण दबाव है।
देव ने कहा कि अमेरिका-रूस के बीच तनाव से चीन को नियंत्रित करने की नीति सुस्त पड़ सकती है, जिन्हें ट्रंप प्रशासन अपना रहा है। इसमें पश्चिमी दुनिया को रूस की मदद की दरकार है।
बन्र्स और मैनुअल का कहना है कि बाइडन ने लोकतंत्रों के गठबंधन का प्रस्ताव रखा है। इसका मकसद निरंकुश ताकतों और चीन तथा रूस के आत्मविश्वास का प्रतिरोध तेज करना है। उन्होंने कहा, ‘भारत को ऐसे समूह का चार्टर सदस्य बनना चाहिए। इसके अलावा विदेश विभाग को भारत के साथ मिलकर काम करना चाहिए ताकि श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल और म्यांमार में अधिक प्रभाव कायम करने की चीन की कोशिश को रोका जा सके।’ ज्यादातर विश्लेषकों का मानना है कि बाइडन चीन को रोकने की ट्रंप की नीति को बनाए रखेंगे। स्टानिलैंड ने कहा, ‘वियतनाम जैसे देश चीन को लेकर संशयी हैं, लेकिन वे खुद निरंकुशवादी हैं। मेरा संदेह है कि भविष्य में किसी भी प्रशासन को दक्षिण एशिया में चीन से मुकाबले और उदार लोकतंत्र को बढ़ावा देने में तनाव का सामना करना पड़ेगा।’
बाइडन 264 के आंकड़ेे पर
चुनाव के दो दिन बाद भी अभी तक कोई उम्मीदवार जीत दर्ज करने के लिए आवश्यक मत हासिल नहीं कर पाया है। लेकिन निर्णायक माने जाने वाले राज्यों विस्कॉन्सिन और मिशिगन में जीत दर्ज कर बाइडेन 264 के आंकड़े पर पहुंच गए हैं। ट्रंप को 214 निर्वाचक मंडल मत मिले हैं। मौजूदा राष्ट्रपति की राह हालांकि काफी कठिन है क्योंकि ट्रंप को 270 के जादुई आंकड़े तक पहुंचने के लिए चार शेष बचे बैटलग्राउंड राज्यों पेन्सिलवेनिया, नॉर्थ कैरोलिना, जॉर्जिया और नेवादा में जीत हासिल करनी होगी। बैटलग्राउंड उन राज्यों को कहा जाता है, जहां रुझान स्पष्ट नहीं होता। स्पष्ट जीत के लिए 538 निर्वाचक मंडल सदस्यों में से विजेता बनने के लिए कम से कम 270 निर्वाचक मंडल मतों की आवश्यकता है।
