चीन पाकिस्तान में CPEC प्रोजेक्ट पर काम कर रहे चीनी नागरिकों की सुरक्षा को लेकर खुश नहीं है। पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसियों ने दिसंबर में हुए दासू आतंकी हमले की जांच तो पूरी कर ली है, लेकिन चीन को पाकिस्तान की अब तक की कार्रवाई काफी नहीं लगती।
वह चाहता है कि पाकिस्तान जून 2014 में शुरू किए गए ‘ऑपरेशन जर्ब-ए-अजद’ की तरह बड़े पैमाने पर आतंकवाद विरोधी अभियान चलाए। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने मार्च में हुए इस हमले में 5 चीनी नागरिकों को मार दिया था।
पाकिस्तानी अखबार डॉन में सुरक्षा विश्लेषक मुहम्मद आमिर राणा के लेख के मुताबिक, चीन पाकिस्तान के जवाब से असंतुष्ट है और बड़े अभियान की मांग कर रहा है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ 4 जून से चीन की 5 दिन की यात्रा पर जा रहे हैं।
इस दौरान दोनों देश अरबों डॉलर की लागत वाली CPEC परियोजना के तहत सहयोग बढ़ाने पर चर्चा कर सकते हैं। गहरे आर्थिक संकट का सामना कर रहे पाकिस्तान के लिए ‘ऑपरेशन जर्ब-ए-अजद’ जैसा बड़ा अभियान चलाना मुश्किल होगा।
पाकिस्तान के लिए बड़े आतंकवाद विरोधी अभियान चलाना बहुत महंगा साबित होगा
जून 2016 में ‘ऑपरेशन जर्ब-ए-अजद’ के दो साल पूरे होने पर पाकिस्तानी सेना ने बताया था कि इस अभियान में 490 पाकिस्तानी सैनिक और करीब 3500 आतंकी मारे गए थे। साथ ही इस अभियान पर पाकिस्तानी सेना का करीब 1.9 अरब डॉलर खर्च हुआ था।
वहीं, पाकिस्तानी सेना के एक प्रवक्ता ने जून 2016 में दावा किया था कि 9/11 के बाद से आतंकवाद की वजह से पाकिस्तान को 107 अरब डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ है। अभी दो साल से भी ज्यादा समय से गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान के लिए ‘ऑपरेशन जर्ब-ए-अजद’ जैसा बड़ा अभियान चलाना मुश्किल है। उसकी वजह है खाली सरकारी खजाना।
अप्रैल में पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से 1.1 अरब डॉलर की मदद मिली थी। इससे पहले जून 2023 में IMF से हुए समझौते के तहत पाकिस्तान को कुल 3 अरब डॉलर की मदद मिलनी थी।
इससे पहले भी पाकिस्तान चीन के कहने पर आतंकवाद विरोधी अभियान चला चुका है। ‘डॉन’ अखबार के मुताबिक, 2007 में लाल मस्जिद का ऑपरेशन चीन के कहने पर ही चलाया गया था। तब चीन ने पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ से संपर्क किया था।
रिपोर्ट के मुताबिक, 2014 में जर्ब-ए-अजद का एक कारण चीन समेत अंतरराष्ट्रीय दबाव भी था। लेकिन, ‘डॉन’ की रिपोर्ट बताती है कि चीन की ताजा मांग शायद पूरी न हो सके। इसकी वजह ये है कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) और उसके साथी संगठन अब अफगानिस्तान से पाकिस्तान में घुसपैठ कर रहे हैं.
चीन पाकिस्तान से नाराज क्यों है?
चीन पाकिस्तान में काम कर रहे अपने नागरिकों की सुरक्षा को लेकर चिंतित है। खासकर उन चीनी लोगों की सुरक्षा को लेकर जो चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं। चीन की ये चिंता इसलिए बढ़ी है क्योंकि इस साल पाकिस्तान में CPEC से जुड़े कई हमले हो चुके हैं। मार्च में हुए हमले में 5 चीनी नागरिक मारे गए थे।
चीन ने पाकिस्तान से अपने 1200 चीनी नागरिकों की सुरक्षा के लिए पाकिस्तान में ही अपने खुद के सुरक्षाकर्मी तैनात करने की मांग की है। ये जानकारी अप्रैल में निक्की एशिया के लिए लिखते हुए किंग्स कॉलेज लंदन के वार स्टडीज विभाग की सीनियर फेलो आयशा सिद्दीका ने दी थी। मगर अप्रैल तक पाकिस्तान ने इस मांग को नहीं माना था।
बता दें कि CPEC परियोजना चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का हिस्सा है। इस परियोजना के तहत पाकिस्तान में चीन करीब 50 अरब डॉलर का निवेश कर रहा है।
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) परियोजना पर अक्सर सुरक्षा खतरे मंडराते रहते हैं। पाकिस्तान में बन रही ये करीब 3,000 किलोमीटर लंबी परियोजना का मकसद चीन के शिनजियांग प्रांत को पाकिस्तान के ग्वादर और कराची बंदरगाहों से जोड़ना है।
इस साल ही CPEC से जुड़े कम से कम तीन बड़े हमले हो चुके हैं। 26 मार्च को तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) ने ख़ैबर पख्तूनख्वा प्रांत में दासू हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट की तरफ जा रहे चीनी नागरिकों के काफिले पर हमला कर दिया। इस हमले में 5 चीनी नागरिक मारे गए थे। चीन ने इस हमले की कड़ी निंदा की थी और पाकिस्तान से इसकी गहन जांच की मांग की थी। पाकिस्तान ने भी तुरंत ही जांच टीम बना दी थी जिसमें पुलिस और खुफिया विभाग के अधिकारी शामिल थे।
पाकिस्तान सरकार ने हमले में मारे गए चीनी नागरिकों के परिवारों को ढाई करोड़ डॉलर की मदद का भी ऐलान किया था। 7 मई को पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता ने दावा किया था कि 26 मार्च का हमला अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे वाले इलाके से अंजाम दिया गया था। पाकिस्तान का कहना है कि अफगानिस्तान से आतंकवाद लगातार पाकिस्तान में फैल रहा है, जबकि वो खुद अफगानिस्तान में शांति के लिए अहम भूमिका निभा रहा है।
CPEC पर लगातार हो रहे हमलों ने पाकिस्तान की चिंता बढ़ा दी है.
मार्च के अंत में पाकिस्तानी सुरक्षाबलों ने मार्च हमले में शामिल 11 तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) आतंकवादियों को गिरफ्तार कर लिया। इससे पहले मार्च में ही कई हमले हुए थे।
26 मार्च को पाकिस्तान के बलूचिस्तान फ्रंटियर कोर का एक अर्धसैनिक जवान और बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) के मजीद ब्रिगेड के चार आतंकी मारे गए। ये हमला बलूचिस्तान प्रांत के तूर्बत में पाकिस्तानी नौसेना के ठिकाने पीएनएस सिद्दीकी पर हुआ था।
तूर्बत में स्थित पीएनएस सिद्दीकी पाकिस्तान का दूसरा सबसे बड़ा नौसेना हवाई अड्डा है और इसका एक मुख्य काम CPEC परियोजना को समर्थन देना है। पीएनएस सिद्दीकी पर हमले से पहले मार्च में ही ग्वादर पोर्ट अथॉरिटी परिसर पर भी हमला हुआ था। हमले की जिम्मेदारी BLA के मजीद ब्रिगेड ने ली थी।
इस हमले में पाकिस्तान के दो सैनिक और आठ आतंकी मारे गए थे। 20 मार्च को ग्वादर पोर्ट अथॉरिटी परिसर पर हुए हमले में भारी गोलीबारी और विस्फोट हुए थे। ग्वादर पोर्ट CPEC परियोजना का आधारस्तंभ है।
पाकिस्तान के लिए क्या दांव पर लगा है?
पाकिस्तान को तुरंत दूसरे देशों से मिलने वाले निवेश की सख्त जरूरत है। वहीं, ये निवेश करने वाले देश पाकिस्तान में अपने निवेश की पूरी सुरक्षा चाहते हैं। ‘डॉन’ अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक चीन के अलावा सऊदी अरब को भी पाकिस्तान में अपने निवेश की सुरक्षा को लेकर फिक्र है।