अंतरराष्ट्रीय

खालिस्तान समर्थक समूहों पर ब्रिटेन नहीं उठा रहा पर्याप्त कदम

भारतीय राजनयिकों का सवाल है कि ब्रिटेन में खालिस्तान समर्थकों के प्रदर्शन पर नियंत्रण क्यों नहीं

Published by
आदिति फडणीस
Last Updated- April 13, 2023 | 11:00 PM IST

वर्ष 2019 में पाकिस्तान के तत्कालीन विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने ब्रिटेन का दौरा किया था। उन्हें ब्रिटेन के मंत्रियों के साथ चंद मुलाकातें करने का मौका भी मिला, ऐसे में यह विशेष रूप से सफल राजनयिक वार्ता नहीं कही जा सकती थी। लेकिन उनकी यात्रा का मुख्य आकर्षण ब्रिटेन की संसद के भीतर कश्मीर पर आयोजित एक ‘अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन’ था जिसमें कंजर्वेटिव, लेबर और लिबरल पार्टियों के सांसदों ने भाग लिया था।

उन्होंने लेबर पार्टी की विदेश सचिव एमिली थॉर्नबेरी और सांसद डेबी अब्राहम्स का शुक्रिया अदा किया। पूर्व प्रधानमंत्री डेविड कैमरन के मंत्रिमंडल में काम कर चुकीं बैरनिस सईदा वारसी भी इस मौके पर मौजूद थीं। ब्रिटेन के पहले पगड़ीधारी भारतीय मूल के सिख सांसद तनमनजीत सिंह धेसी भी उस कमरे में मौजूद थे।

हालांकि नाराज भारतीय राजनयिकों ने इस बैठक का विरोध किया। लेकिन इसका कोई खास फायदा नहीं हुआ। ब्रिटेन में भारत के पूर्व उच्चायुक्त ने कहा, ‘संसद भवन में बैठक के लिए कमरा बुक करना इतना मुश्किल नहीं है। लेकिन पाकिस्तानियों को लगता है कि वे ये चीजें कर सकते हैं।

इससे हमारा यह भरोसा मजबूत होता है कि ब्रिटेन में एक वर्ग है जो खालिस्तानियों और पाकिस्तानियों से सहानुभूति रखता है और वे ब्रिटेन में भारत के खिलाफ जो कुछ भी करना चाहते हैं, उसकी अनुमति देने में उन्हें कोई एतराज नहीं है।’

इस सप्ताह की शुरुआत में भारत ने ब्रिटेन में खालिस्तानियों की गतिविधियों, विशेष रूप से भारत में आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए ब्रिटेन में शरण लेने से जुड़े दर्जे का दुरुपयोग करने के बारे में अपनी चिंताएं दोहराईं और ब्रिटेन के अधिकारियों से दिल्ली में आयोजित पांचवीं भारत-ब्रिटेन गृह मामलों की वार्ता (एचएडी) के दौरान ‘निगरानी’ बढ़ाने और ‘उचित तरीके एवं सक्रियता से कार्रवाई’ करने के लिए कहा।

केंद्रीय गृह सचिव अजय कुमार भल्ला ने भारत की ओर से वार्ता का नेतृत्व किया वहीं दूसरी तरफ ब्रिटेन के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व स्थायी सचिव (गृह कार्यालय) सर मैथ्यू रिक्रॉफ्ट ने किया।

यह सब लंदन में भारतीय मिशन के बाहर खालिस्तान समर्थक समूहों के विरोध प्रदर्शन के बाद हुआ। यह विरोध प्रदर्शन पंजाब पुलिस द्वारा कट्टरपंथी अमृतपाल सिंह और उनके अनुयायियों को ढूंढने के लिए राज्यव्यापी अभियान शुरू किए जाने के तुरंत बाद शुरू हुआ था। प्रदर्शनकारियों ने भारत विरोधी नारे लगाए और खालिस्तान के झंडे लहराए।

ब्रिटेन में भारतीय उच्चायुक्त (2018-2020) रुचि घनश्याम कहती हैं, ‘मुझे याद है कि इसी तरह के हमले का सामना हमने 2019 में इंडिया हाउस में किया था। लंदन की मेट पुलिस के साथ हमारा अनुभव यह था कि जब उन्हें सूचित किया जाता था, तब वे मौजूद रहते थे, हालांकि लगभग हर मौके पर उनकी संख्या पूरी तरह से अपर्याप्त होती थी!’

राजनयिकों का कहना है कि सभी सिख खालिस्तानी नहीं है और खालिस्तानी सिखों की गतिविधियों को विभिन्न कारणों से बर्दाश्त किया जाता है और कई दफा प्रोत्साहित भी किया जाता है हालांकि ब्रिटेन में इस समुदाय में ‘कट्टरपंथियों’ का बहुत छोटा हिस्सा हैं।

एक पूर्व विदेश सचिव ने कहा, ‘हम यह नहीं समझ पाते हैं कि उन्हें (खालिस्तानी कार्यकर्ताओं को) ब्रिटेन में इतनी आजादी क्यों है। ब्रिटिश सरकार इनको बर्दाश्त करने की अपनी सीमा को कभी कम करती है और कभी सख्ती बरतने लगती है। लेकिन निश्चित तौर पर इस समुदाय के कार्यकर्ता एक-दूसरे से अच्छी तरह जुड़े हुए हैं।

गुरुद्वारों में उदारवादी सिखों को डराने की उनकी क्षमता को कम करके नहीं आंका जाना चाहिए। निश्चित रूप से, ये ऐसे तत्व हैं जो स्थानीय निकायों के चुनावों के दौरान सिख समुदाय के लिए बोलने को लेकर ज्यादा तवज्जो पाते हैं। लोग सिख चरमपंथियों के खिलाफ कुछ भी कहने से घबराते हैं।’

वह आगे कहते हैं, ‘लेकिन मुझे पता है कि उनकी खुफिया सेवाएं इसमें शामिल रही हैं। क्यों? मैं नहीं जानता, क्योंकि उन्होंने भारत के साथ अपने संबंधों को प्राथमिकता भी दी है। लेकिन यह एक ऐसा तुरुप का पत्ता है जिसे उनकी खुफिया एजेंसियां पूरी तरह से छोड़ने को तैयार नहीं हैं।

ब्रिटेन में मुख्यधारा की राजनीतिक विचारधारा वास्तव में राजनीतिक यथार्थता से जुड़ी है और वे इस्लामी या सिख कट्टरपंथियों की हिंसक कार्रवाई को खारिज करने के अनिच्छुक हैं, भले ही ये उनके समाज की स्थिरता के लिए बहुत खतरा पैदा करते हैं।’

ब्रिटेन में सिख कट्टरपंथी विद्रोही हैं। वे कहते हैं कि वे सिखों के लिए एक अलग देश बनाने की अपनी मुहिम कभी नहीं छोड़ेंगे। 1984 की घटनाओं को बार-बार याद किया जाता है। साउथहॉल और बर्मिंघम के गुरुद्वारों में जरनैल सिंह भिंडरांवाले की विशाल तस्वीरें अब भी दिखाई जा रही हैं।

लेबर पार्टी के मौजूदा सांसद ढेसी ने पिछले महीने ब्रिटेन की संसद में अमृतपाल सिंह की खोज और उसके नागरिक अधिकारों के हनन का मुद्दा उठाया था। लेकिन भारतीय अधिकारियों का कहना है कि जब तक ब्रिटेन में गुप्त और अवैध तरीके से शक्ति संचालन करने वाले तत्त्व इसे बर्दाश्त करते रहेंगे तब तक इस तरह के कट्टरपंथी समूहों की गतिविधियां जारी रहने वाली है।

First Published : April 13, 2023 | 11:00 PM IST