अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर माइक्रोग्रैविटी यानी सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण की स्थिति में मांसपेशियों की क्षति (Muscle Loss) को समझने के लिए वैज्ञानिक प्रयोग कर रहे हैं। यह अध्ययन उन बुजुर्गों के लिए दवाएं विकसित करने में मददगार हो सकता है जो गतिहीनता (Immobility) से जूझ रहे हैं। शुक्ला, ISRO और NASA की एक संयुक्त पहल के अंतर्गत Axiom-4 प्राइवेट अंतरिक्ष मिशन का हिस्सा हैं। वे पिछले गुरुवार को तीन अन्य अंतरिक्ष यात्रियों के साथ आईएसएस पर पहुंचे थे।
Axiom Space के एक बयान में कहा गया, “शक्स (शुक्ला का कॉल साइन) ने ‘लाइफ साइंसेज ग्लोवबॉक्स’ (LSG) में मायोजेनेसिस अध्ययन के लिए प्रयोग किए, जिससे यह पता चल सकता है कि माइक्रोग्रैविटी मांसपेशियों की हानि में कैसे योगदान देती है।” बयान में कहा गया कि इस अध्ययन से स्केलेटल की मांसपेशियों की खराबी के पीछे के आणविक रास्तों की पहचान हो सकती है, जिससे लंबे समय तक अंतरिक्ष यात्रा के दौरान मांसपेशी क्षीणता को रोकने के लिए टारगेटेट उपचार विकसित किए जा सकते हैं।
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Axiom Space ने कहा, “ये जानकारियां पृथ्वी पर मसल्स लॉस से जुड़ी स्थितियों, खासकर बुजुर्गों और इमबोलिटी के जूझ रहे लोगों के लिए, के बेहतर इलाज में भी मदद कर सकती हैं।” शुक्ला ने भारतीय छात्रों के लिए एक वीडियो भी रिकॉर्ड किया, जिसमें उन्होंने बताया कि अंतरिक्ष में डाइजेस्टिव सिस्टम कैसे बदलता है और काम करता है।
अंतरिक्ष यात्रियों ने अंतरिक्ष में मानसिक स्वास्थ्य पर एक अध्ययन के लिए गतिविधियों का दस्तावेजीकरण भी किया। यह शोध अंतरिक्ष में मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक है और पृथ्वी पर भी दूरदराज़ के क्षेत्रों में मानसिक विकारों के निदान और उपचार के लिए तकनीकों के विकास में सहायक हो सकता है।
मिशन कमांडर पेगी व्हिटसन ने अपने सोशल मीडिया पर शुक्ला और हंगरी के अंतरिक्ष यात्री टिबोर कापू के साथ एक फोटो पोस्ट की। इसके अलावा, अंतरिक्ष यात्रियों ने एक विशेष हेडसेट के जरिए मस्तिष्क में रक्त प्रवाह को ट्रैक करके न्यूरल फंक्शन का आकलन करने वाले ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस (BCI) पर एक प्रयोग में हिस्सा लिया। ‘फोटॉनग्रेव’ परियोजना के तहत यह न्यूरल तकनीक मनुष्यों द्वारा सिर्फ सोच के माध्यम से कंप्यूटर सिस्टम को नियंत्रित करने की संभावना का पता लगाने का प्रयास है।
Axiom Space के मुताबिक, भविष्य की अंतरिक्ष यात्राओं में यह तकनीक अंतरिक्ष यान से संवाद, खासकर उच्च तनाव या हाथों के उपयोग के बिना काम करने की स्थितियों में, को आसान बना सकती है। पृथ्वी पर, यही तकनीक न्यूरो-रिहैबिलिटेशन और सहायक उपकरणों में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है, जिससे उन लोगों को मदद मिल सकती है जो इमबोलिटी या संवाद में चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
शुभांशु शुक्ला ने इस अंतरिक्ष यात्रा के साथ इतिहास रच दिया है। वह 1984 में विंग कमांडर राकेश शर्मा के बाद करमन लाइन पार करने वाले पहले भारतीय बन गए हैं। बता दें कि करमन लाइन को अंतरिक्ष की सीमा मानी जाती है। इससे पहले, अंतरिक्ष से शुभांशु ने एक संदेश में कहा था, “यह मेरी ISS की यात्रा की शुरुआत नहीं है, बल्कि भारत के मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम की शुरुआत है।”
शुभांशु axiom-4 मिशन के तहत स्पेसएक्स ड्रैगन कैप्सूल में सवार होकर अंतरिक्ष पहुंचे। इस कैप्सूल ने 25 जून को नासा के कैनेडी स्पेस सेंटर से उड़ान भरी थी। 28 घंटे की यात्रा के बाद यह कैप्सूल 26 जून को दोपहर 4:02 बजे IST पर ISS से जुड़ा। ड्रैगन कैप्सूल ने सटीकता के साथ कई कक्षा-उन्नयन manuevers किए और 4:16 बजे IST पर पूरी तरह से डॉकिंग पूरी की। शुभांशु का कॉल साइन “ग्रेस” है, और यह डॉकिंग भारत के अंतरिक्ष मिशन के लिए एक ऐतिहासिक पल था।
पीटीआई इनपुट के साथ