भारत

US Visa: अमेरिकी वीजा के लिए भारत में लोग मंदिरों में क्यों जा रहे हैं? क्या है लोगों की चिताएं

दिल्ली के नेब सराय ​​स्थित श्री सिद्धपीठ चमत्कारी हनुमान मंदिर में खासकर 20 जनवरी को डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद भीड़ बढ़ गई है।

Published by
आदिति फडणीस   
Last Updated- February 17, 2025 | 12:14 AM IST

जिस प्रकार व्हाइट हाउस से संकेत मिल रहे हैं, उससे भारतीयों के लिए अमेरिका में वैध तरीके से रहना और काम करना बहुत मु​श्किल होने वाला है। ऐसे में उन लोगों का कारोबार खूब फल-फूल रहा है, जो अमेरिकी वीजा दिलाने के लिए सहायक सेवाएं उपलब्ध कराते हैं। इनमें धारा प्रवाह बोलने लायक इंग्लिश सिखाने वाले कोचिंग सेंटरों से लेकर वीजा के लिए पूजा-अर्चना कराने वाले मंदिरों के पुजारी तक शामिल हैं।

दिल्ली के नेब सराय ​​स्थित श्री सिद्धपीठ चमत्कारी हनुमान मंदिर में खासकर 20 जनवरी को डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद भीड़ बढ़ गई है। बिना कागज-पत्र विश्व भ्रमण करने वाला पहला यात्री समझे जाने वाले हनुमान को अमेरिका का वीजा चाहने वाले लोग अपना इष्ट देवता मानते हैं।

वीजा हनुमान मंदिर

भक्त इस मंदिर में आते हैं और हनुमान के चरणों में अपना पासपोर्ट रखते हैं और इसे फौरन ही वापस भी उठा सकते हैं। इसके बाद लाल स्याही से लिखी चिट्ठी (मन्नत) वहीं पास में रखे बॉक्स में डाल देते हैं। इसके बाद 41 दिन तक हनुमान चालीसा का जाप करना होता है। इस दौरान मांस, मदिरा, लहुसन आदि से दूरी बना कर रखनी पड़ती है। जब वीजा मिल जाए तो मंदिर में रखी कॉपी में लाल रंग की स्याही से ही लिखकर भगवान को धन्यवाद किया जाता है। जब से अमेरिका ने वीजा नियम सख्त किए हैं, भारत से वहां जाने की योजना बनाने वालों की जेबें ढीली हो रही हैं और उनकी पूजा-अर्चना में वृद्धि हो गई है। लोग इसे वीजा हनुमान मंदिर भी कहते हैं। देश भर में ऐसे आधा दर्जन मंदिर हैं। इनमें कुछ ऐसे हैं जहां बाकायदा ‘फीस’ भी ली जाती है। लेकिन लंबी अव​धि के लिए अमेरिका में रहने का वीजा पाने के लिए करोड़ों भारतीयों द्वारा खर्च की जाने वाली रकम की तुलना में तो यह फीस कुछ भी नहीं है।

वीजा रद्द होने के डर के अनि​श्चितता वाले के आज के माहौल में परामर्श देने वाली कई एजेंसियों और मंदिरों के लिए यह राजस्व के बेहतरीन स्रोत बन कर उभरे हैं।

बेवजह की चिंता?

अमेरिका-भारत रणनीतिक साझेदारी मंच (यूएसआईएसपीएफ) के अध्यक्ष और सीईओ मुकेश अघी इन सब कोशिशों-टोटकों पर हंसते हुए कहते हैं, ‘यह एक अफवाह ही है कि राष्ट्रपति ट्रंप के शासनकाल में अमेरिकी प्रशासन कम संख्या में एच-1बी वीजा जारी करेगा।’ वह इससे इनकार नहीं करते कि ट्रंप के पहले शासनकाल के दौरान रिकॉर्ड स्तर पर एच-1बी वीजा नामंजूर किए गए थे। वरिष्ठ सलाहकार और अब ट्रंप के चीफ ऑफ स्टाफ स्टीफन मिलर ने उस समय नई नीतियां जारी की थीं, जिनमें एच-1बी वीजा आवेदनों की जांच प्रक्रिया थोड़ी सख्त बना दी गई थी, जिससे 2018 में वीजा आवेदन खारिज होने की दर 24 प्रतिशत बढ़ गई थी। जो बाइडन के शासन के दौरान वीजा आवेदन रद्द होने की यह दर अपेक्षाकृत बहुत कम 2 से 4 प्रतिशत ही रही। लेकिन अघी कहते हैं कि इस बार के माहौल में थोड़ा अंतर है।

उन्होंने कहा, ‘2024 के राष्ट्रपति चुनाव में डॉनल्ड ट्रंप अपनी जीत में कुछ हद तक ईलॉन मस्क और कुछ अन्य प्रौद्योगिकी दिग्गजों के सहयोग के लिए एहसानमंद हैं। ये तकनीकी दिग्गज उच्च कौशल वाले विदेशी लोगों को अमेरिका लाने के पक्षधर हैं और कारोबार को अ​धिक नियम-कानूनों में बांधने की सरकार की नीति के ​खिलाफ हैं। प्रत्येक 10 एच-1बी वीजा आवेदन खारिज होने पर नौ नौकरियां अमेरिका से बाहर चली जाती हैं। यह अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी बात नहीं है।’

एच-1बी वीजा कार्यक्रम स्नातक डिग्री धारी कुशल विदेशी कामगारों को अमेरिका में काम करने की इजाजत देता है। यह अमेरिकी प्रौद्योगिकी और स्टेम (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथ) से जुड़े क्षेत्रों के लिए आधारस्तंभ का काम कर रहा है।

इस सप्ताह के शुरू में राज्य सभा में अमेरिकी नागरिकता और प्रवासी सेवाओं के आंकड़ों का जिक्र करते हुए विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने कहा कि अक्टूबर 2022 से सितंबर 2023 के बीच अमेरिका द्वारा जारी किए गए कुल एच-1बी वीजा में से 72.3 प्रतिशत भारतीयों ने हासिल किए।

एच-1बी कार्यक्रम रोजगार और कंपनी आधारित वीजा है, जिसका पूरा खर्च कर्मचारी बुलाने वाली कंपनी उठाती है। अमेरिकी इमिग्रेशन कानून में एच-1बी वीजा के लिए परामर्श फीस देना गैर कानूनी है। लेकिन सलाहकार वीजा दिलाने की मदद करने के लिए वापसी की गारंटी के साथ एकमुश्त रकम जमा करने को कहते हैं। यह रकम 5,000 अमेरिकी डॉलर या इससे भी 

अ​धिक हो सकती है। अघी कहते हैं कि छोटी भारतीय कंपनियां एच-1बी वीजा प्रणाली का दुरुपयोग करती हैं। ‘हम इस पर रोक लगाने के लिए उद्योग संगठनों के संपर्क में हैं।’ इस प्रकार की वीजा प्रणाली भारत की सूक्ष्म अर्थव्यवस्था को काफी सहारा देती है। अमेरिका में पढ़ने की चाहत रखने वाले छात्रों की अंग्रेजी बहुत अच्छी होनी चाहिए। इसके लिए उन्हें इंटरनैशनल इं​ग्लिश लैंग्वेज 

टे​स्टिंग सिस्टम (आयल्ट्स) या टेस्ट ऑफ इं​ग्लिश ऐज अ फॉरेन लैंग्वेज (टोफल) से गुजरना पड़ता है जो गैर अंग्रेजी भाषी देशों के नागरिकों के लिए इस भाषा पर पकड़ को जांचने-परखने की परीक्षा होती है। इन दोनों परीक्षाओं को पास करने के ​लिए अच्छी-खासी तैयारी की जरूरत होती है और इन पर वीजा चाहने वाले लोग 25,000 से 1 लाख रुपये तक खर्च कर देते हैं।

विश्वास से परे

भारत में इंटरनैशनल इं​ग्लिश लैंग्वेज टे​स्टिंग सिस्टम टेस्ट कराने वाली आईडीपी एजुकेशन लिमिटेड ने पिछले दो साल में देशभर में 23 नए केंद्र खोले हैं। टोफल के 

वै​श्विक प्रमुख उमर ​चिहाने ने पिछले साल दिल्ली में संवाददाताओं से कहा था, ‘भारत में टोफल टेस्ट देने वालों की संख्या 2022 में बढ़कर 7.77 प्रतिशत हो गई है जो एक साल पहले 5.83 प्रतिशत थी।’

उन्होंने कहा, ‘देश भर में हम करीब 80 केंद्रों पर परीक्षा कराते हैं। पिछले दो वर्षों में इनमें 25 प्रतिशत और इजाफा हुआ है। कश्मीर घाटी में भी 2023 में एक केंद्र खोला गया है।’ ऐसा नहीं है कि अंग्रेजी परीक्षा देने वाले सभी अमेरिका जाने वाले होते हैं, लेकिन यह भी सच है कि उनकी संख्या अपेक्षाकृत अ​धिक होती है। पहले चरण की परीक्षा की फीस 16,900 रुपये ली जाती है। पंजाब और आंध्र प्रदेश इस तरह के कोचिंग के हब हैं। 

अघी कहते हैं, इन दावों में कोई दम नहीं है कि छात्र वीजा आवेदन खारिज होने की दर भी बढ़ जाएगी क्योंकि ये अमेरिकी विश्वविद्यालयों के लिए अच्छे-खासे राजस्व का जरिया होते हैं। अमेरिका में कानूनी तौर पर रहने और काम करने के लिए वीजा हासिल करने में सहयोग देने का कारोबार कितना बड़ा है, इसका आकलन करना मु​श्किल है। इसी प्रकार यह पता लगाना भी आसान नहीं है कि अवैध तरीके से अमेरिका भेजने वालों का कारोबारी जाल कहां तक फैला है। 

अमेरिकी वीजा पाने में दिक्कत पेश आने के डर ने भगवान के समक्ष पूजा अर्चना करने वालों की संख्या बढ़ा दी है। 

First Published : February 17, 2025 | 12:14 AM IST