वरिष्ठ अधिवक्ता और विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने अर्चिस मोहन के साथ बातचीत में कांग्रेस नेतृत्व और उनके अलगाव पर चर्चा की। उन्होंने राम मंदिर मुद्दे पर शंकराचार्य की कथित टिप्पणियों को गलत करार दिया और कहा कि मथुरा और काशी विश्वनाथ का फैसला अदालत करेगी। मुख्य अंशः
क्या सोमवार को अयोध्या में हुए प्राण प्रतिष्ठा को आगामी लोकसभा चुनाव के लिहाज से देखना चाहिए या इसका कोई बड़ा परिप्रेक्ष्य है?
हमें इस समारोह को बड़े नजरिये से देखना चाहिए। हमने प्रधानमंत्री को भी बुलाया। हमने सभी बड़े विपक्षी नेताओं को भी बुलावा भेजा था। हमने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अध्यक्ष समेत सभी विपक्षी दलों के अध्यक्षों और सुप्रीमो को न्योता भेजा था।
अगर सभी लोग आ जाते तो फिर राजनीति का कोई कारण नहीं होता। अगर कोई नहीं आए और फिर भाजपा नेता ही रहें तो क्या किया जा सकता है।
जिन लोगों ने हमारे निमंत्रण को स्वीकार नहीं किया वे समारोह पर राजनीति कर रहे हैं। जो लोग शामिल होने में झिझक रहे थे उनमें से कम से कम तीन नेताओं शरद पवार, अखिलेश यादव और अरविंद केजरीवाल ने तो शुभकामनाएं भेजीं। हमारे कार्य की सराहना की और कहा कि प्राण प्रतिष्ठा पूजा के बाद वे सपरिवार यहां आएंगे।
मगर, कांग्रेस नेतृत्व और उनके कार्यकर्ताओं के बीच का अलगाव देखिए। हमारे निमंत्रण को उन्होंने ‘अस्वीकार’ कर दिया। ये उनके अहंकार को दर्शाता है। कांग्रेस पार्टी के उत्तर प्रदेश के नेताओं ने अयोध्या में पूजा की। कांग्रेस नेता अपनी पार्टी के साथ ही नहीं हैं। हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बेटे और मौजूदा मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने कहा कि वह आएंगे।
कुछ मुस्लिम बुद्धिजीवियों का कहना है कि साल 1990-91 में समझौते की गुंजाइश थी?
मुझे लगता है कि आम मुसलमान रामविरोधी नहीं हैं। इस कारण ही देश में कुछ अप्रिय होने की शंका सर्वोच्च न्यायालय पर विश्वास और भरोसे के कारण सच साबित नहीं हुई। देश में कहीं भी कोई अप्रिय घटना नहीं हुई। किसी भी शहर या गांव में नहीं हुई। मुस्लिम नेताओं (असदुद्दीन ओवैसी जैसी नेता) का एक वर्ग सुर्खियों में बने रहने के लिए अमर्यादित बयानबाजी करते रहे।
85 फीसदी मुस्लिमों की आबादी वाले पसमांदा (पिछड़े) मुसलमानों ने यह माना कि वे खतरे में नहीं हैं और उन्हें शिक्षा, जीविकोपार्जन और बेहतर जीवनशैली की जरूरत है। उन्हें पता चल गया है कि ‘इस्लाम खतरे में है’ जैसा नारा उन्हें बुनियादी सुविधाओं से ध्यान भटकाने के लिए गढ़ा गया है।
धार्मिक संगठनों के सदस्य सहित अयोध्या के मुसलमानों ने कहा है कि वे स्थानीय हिंदुओं के साथ शांति से रह रहे हैं मगर बाहरी लोगों के कारण कानून व्यवस्था की समस्याओं पर सशंकित हैं?
यह कोई नई बात नहीं है बल्कि राम जन्मभूमि आंदोलन के वक्त से चल रही है। अयोध्या के मुसलमान भी श्रीराम के हैं और वे सभी मंदिर से जुड़े हैं। वही लोग प्रभु श्रीराम के लिए वस्त्र, आभूषण आदि सामान बनाकर अपनी आजीविका कमाते हैं। यहां कोई झगड़ा नहीं है।
आप ‘नई अयोध्या’ में रोजगार, व्यापार और पर्यटन संभावनाएं को कैसे देख रहे हैं?
मुझे पर्यटन की जगह तीर्थयात्रा उपयुक्त लग रहा है। मैंने कहीं पढ़ा अवध के विकास से इसकी अर्थव्यवस्था में हर साल हजारों करोड़ रुपये जुड़ेंगे। आतिथ्य, परिवहन और अन्य क्षेत्रों में रोजगार के असीमित अवसर खुलेंगे। काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर का निर्माण होने से वाराणसी के लोगों की आय 10 दस गुना बढ़ गई।
समारोह को लेकर कई विवाद भी हुए हैं। मंदिर अधूरा होने के कारण इसके प्राण प्रतिष्ठा पर शंकराचार्यों ने आपत्ति जताई है।
कुछ मुद्दे जानबूझकर उछाले जा रहे हैं। जैसे कि चार शंकराचार्यों ने समारोह पर विरोध जताया है, यह बात पूरी तरह मीडिया का फैलाया हुआ है। चार में से दो शंकराचार्यों के मठ प्रशासन ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर प्राण प्रतिष्ठा का समर्थन किया है। तीसरे शंकराचार्य ने भी इसके समर्थन में साक्षात्कार दिया है।
जहां तक चौथे शंकराचार्य का सवाल है मैं यह कहता हूं कि उनके शंकराचार्य होने का दावा भी अभी विचाराधीन है और वह विरोध कर रहे हैं। मंदिर तो कई साल तक बनते रहते हैं मगर प्राण प्रतिष्ठा नहीं करने का यह कारण नहीं हो सकता है। हिंदू परंपरा के अनुसार मंदिर का गर्भगृह पूरा हो जाने पर प्राण प्रतिष्ठा की जा सकती है।
सोमवार को हुए प्राण प्रतिष्ठा समारोह में कुछ उद्योगपति, फिल्मी हस्तियां और प्रतिष्ठित लोग शामिल हुए। प्रभु श्रीराम की सेना में तो सभी तबके के लोग थे?
वे वहां रहेंगे। एक कूड़ा बीनने वाली महिला जो रोजाना 40 रुपये कमाती है जब उन्होंने देखा कि हमारे स्वयंसेवक मंदिर के लिए दान ले रहे हैं तो उन्होंने भी 20 रुपये दिए। हमने उन्हें भी बुलाया क्योंकि हमने हस्तियों को आमंत्रित किया। झोपड़ियों में रहने वाले 10 परिवार ने 100-100 रुपये का दान दिया था वे भी शामिल हुए।
इसके साथ ही उन 3,500 मजदूरों ने भी इसमें शिरकत किया जो मंदिर निर्माण से जुड़े हैं। 1990 की गोलीबारी में मारे गए लोगों के परिजन भी इसमें आए। यह समारोह सिर्फ बड़े लोगों के लिए नहीं है बल्कि उन सभी के लिए है जिनके हृदय में श्रीराम बसते हैं।
मथुरा और काशी विश्वनाथ का भविष्य क्या है?
मथुरा और काशी पर अदालत फैसला करेगी।