facebookmetapixel
एफपीआई ने किया आईटी और वित्त सेक्टर से पलायन, ऑटो सेक्टर में बढ़ी रौनकजिम में वर्कआउट के दौरान चोट, जानें हेल्थ पॉलिसी क्या कवर करती है और क्या नहींGST कटौती, दमदार GDP ग्रोथ के बावजूद क्यों नहीं दौड़ रहा बाजार? हाई वैल्यूएशन या कोई और है टेंशनउच्च विनिर्माण लागत सुधारों और व्यापार समझौतों से भारत के लाभ को कम कर सकती हैEditorial: बारिश से संकट — शहरों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के लिए तत्काल योजनाओं की आवश्यकताGST 2.0 उपभोग को बढ़ावा दे सकता है, लेकिन गहरी कमजोरियों को दूर करने में कोई मदद नहीं करेगागुरु बढ़े, शिष्य घटे: शिक्षा व्यवस्था में बदला परिदृश्य, शिक्षक 1 करोड़ पार, मगर छात्रों की संख्या 2 करोड़ घटीचीन से सीमा विवाद देश की सबसे बड़ी चुनौती, पाकिस्तान का छद्म युद्ध दूसरा खतरा: CDS अनिल चौहानखूब बरसा मॉनसून, खरीफ को मिला फायदा, लेकिन बाढ़-भूस्खलन से भारी तबाही; लाखों हेक्टेयर फसलें बरबादभारतीय प्रतिनिधिमंडल के ताइवान यात्रा से देश के चिप मिशन को मिलेगी बड़ी रफ्तार, निवेश पर होगी अहम चर्चा

मौसम, कीड़ों के आगे नहीं टिका आम यूपी में बागवानों की आस हुई धड़ाम

बागवान फसल को कीटों से बचाने के लिए और आंधी से हुए नुकसान को कम करने की जुगत में कच्चे आमों को 10 रुपये किलोग्राम के भाव पर ही मंडियों में बेच रहे हैं।

Last Updated- June 01, 2025 | 10:57 PM IST
Mango

उत्तर प्रदेश की फल-पट्टी का इलाका काकोरी-मलिहाबाद कुछ हफ्ते पहले तक शानदार फसल की उम्मीद से चहक रहा था मगर एक तगड़ी आंधी सारी खुशी को उड़ा ले गई और उम्मीदें धराशायी हो गईं। अच्छी बौर और फिर शुरुआती फल आने से बागवानों को अच्छी फसल, बढ़िया मुनाफे और शानदार निर्यात की जो भी उम्मीदें जगी थीं, उन पर खराब मौसम, कीड़ों के प्रकोप और आंधी-बारिश ने पानी फेर दिया है। हालत इतनी बुरी हो गई है कि बागवान फसल को कीटों से बचाने के लिए और आंधी से हुए नुकसान को कम करने की जुगत में कच्चे आमों को 10 रुपये किलोग्राम के भाव पर ही मंडियों में बेच रहे हैं।

मई के आखिरी हफ्ते में नौतपा शुरू होने के साथ ही दशहरी आम का पकना शुरू हो जाता है। साथ ही इसे तोड़कर बाहर भेजने की शुरुआत भी कर दी जाती है। मगर इस बार हालात एकदम उलट हैं। बागवान बता रहे हैं कि कटर नाम का कीट इस बार आम के पेड़ों पर अपना कहर बरपा रहा है और उसने इतना नुकसान किया है कि आम की पैदावार आधी ही रह गई है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के काकोरी-मलिहाबाद इलाके के मशहूर दशहरी आम पर तो गाज गिरी ही है, बनारसी, लंगड़ा, चौसा और पूर्वी उत्तर प्रदेश के सफेदा आमों की फसल पर भी मौसम तथा कीड़ों की मार पड़ी है।

इसका असर बाजार और मंडियों में भी दिख रहा है। पिछले सालों में सीजन के दौरान 20 से 25 फीसदी कच्चा आम ही बाजार में आ पाता था मगर इस बार 50 फीसदी कच्चा आम बाजार में पहुंच जाने की संभावना लग रही है। बागवान इसका बड़ा कारण कीट बता रहे हैं, जिनकी वजह से आम बरबाद हो रहे हैं। उनका कहना है कि कटर कीट से आम खराब हो, इससे अच्छा है कि कच्चा आम ही बेच दें, कम से कम कुछ पैसे तो आ जाएंगे।

अच्छी बौर पर कीड़ों और मौसम की मार

पिछले कुछ सालों के मुकाबले इस बार जाड़ा कम पड़ा और कोहरे तथा पाले का प्रकोप नहीं के बराबर रहा। इसलिए आम के पेड़ भी इस बार बौर से लद गए थे। प्रदेश के प्रमुख आम उत्पादक इलाकों काकोरी-मलिहाबाद, हरदोई, सहारनपुर, बागपत, मेरठ, अलीगढ़, हाथरस, वाराणसी, मिर्जापुर, गाजीपुर, उन्नाव तथा सीतापुर में इस बार 80 फीसदी से भी ज्यादा पेड़ों पर बौर आए थे।
मार्च तक इन पेड़ों पर ज्यादातर बौर बची भी रह गई थी और फल लगने शुरू हो गए थे। इससे बागवानों की अच्छी कमाई की उम्मीद भी बढ़ गई थी।

मगर अप्रैल में शुरू हुई बेतहाशा गर्मी, कीटों के प्रकोप और मई में बार-बार चली आंधी तथा तेज हवाओं ने आम के साथ बागवानों की उम्मीदें भी जमीन पर ला दीं। बागवानों का कहना है कि कटर नाम के कीट ने आम के पेड़ों की टहनियों पर ही हमला बोला, जिसकी वजह से आम नीचे गिरने लगा है। मई के पहले हफ्ते और फिर तीसरे हफ्ते की बारिश के बाद तो दशहरी का रंग भी काला पड़ने लगा है। बागवानों का कहना है कि कीटों और मौसम ने आम को जिस तरह खराब किया है, उसके बाद पाल लगाने पर भी आम अच्छी तरह पककर तैयार नहीं हो पाएंगे। इसीलिए ज्यादातर बागवान कच्चे आम ही बेच रह हैं।

कच्चे आम भी रह गए बेदाम

मौसम और कीड़ों के हमले से मार खाए किसान बाजार तो पहुंचे मगर उन्हें कच्चे आम के भी वाजिब दाम नहीं मिल पा रहे हैं। आम के कारोबारी हकीम त्रिवेदी बताते हैं कि अचार, जैम, चेली और चटनी जैसा माल बनाने के लिए आम के खरीदार आ तो रह हैं मगर वे भी कौड़ियों के भाव इन्हें खरीदने की कोशिश कर रहे हैं। चूंकि कच्चे आम की आवक पिछले सालों की तुलना में बहुत ज्यादा है और दशहरी में जाली भी पड़ चुकी है, इसलिए उसे खरीदने वाले मुश्किल से ही मिल रहे हैं। काकोरी की मंडी में इस समय बागवानों को कच्चे आम की कीमत 10 रुपये किलो भी नहीं मिल पा रही है।

यह बात अलग है कि खुदरा बाजार में आम जरूर महंगा बिक रहा है। कारोबारी तेज बहादुर सिंह बताते हैं कि कुछ उत्पादकों ने इसी हफ्ते पाल लगाकर आम पकाए हैं और बाजार में बेचना शुरू कर दिया है मगर उन्हें भी सही दाम नहीं मिल पा रहे हैं। थोक मंडी में पाल का दशहरी आम केवल 500 रुपये से 1,000 रुपये पेटी बिक रहा है। एक पेटी में 25 किलो तक आम होते हैं। खुदरा बाजार में पाल की दशहरी का दाम 60 रुपये किलो खुला है। तेज बहादुर सिंह का कहना है कि माल बेशक कम आएगा मगर कीमत भी नहीं मिल पाएगी क्योंकि क्वालिटी खराब होने की वजह से इस बार खरीदार नाक-भौं सिकोड़ रहे हैं।

दशहरी के गढ़ में बाहरी आमों का हमला

आम तौर पर उत्पादन कम रहे तो कीमत बढ़ती है मगर उत्तर प्रदेश में इस बार आम की पैदावार घटने के बाद भी कीमत कम रहने की वजह बाहरी प्रदेशों के आम हैं, जिनकी आवक धड़ल्ले से हो रही है। फरवरी से ही उत्तर प्रदेश के बाजारों में दूसरे प्रदेशों से अल्फॉन्सो, बेगमपल्ली, तोतापरी, केसर, बॉम्बे ग्रीन जैसी किस्म के आम आने शुरू हो गए थे। प्रदेश के बाजार आम तौर पर मई के आखिर में दशहरी, लंगड़ा, चौसा और फजली आम से पट जाते हैं। मगर इस समय भी बाहर के आम उन्हें कड़ी टक्कर दे रहे हैं और यह टक्कर आवक में ही नहीं कीमत में भी मिल रही है।

लखनऊ के बाजारों में झांकें तो बॉम्बे ग्रीन से लेकर केसर तक कोई भी किस्म 60 से 80 रुपये किलो के भाव पर मिल रही है। आम कारोबारी शबीहुल हसन के मुताबिक उत्तर प्रदेश का दशहरी आम 20 मई से 20 जून तक, चौसा जून से जुलाई के मध्य तक और सफेदा पूरे जून बाजार में रहेगा। रामकेला व देसी किस्म की आम 10 जून के बाद आएगी और महीने भर मिलती रहेगी। मगर हसन का कहना है कि क्वालिटी कमतर रह जाने के कारण और बाहरी आमों से कड़ी टक्कर मिलने के कारण इस बार कारोबारी लागत निकाल लें वही बहुत है, मुनाफे की बात तो कोई सोच ही नहीं रहा।

यूपी के आम निर्यात पर भी असर

भारत से अमेरिका पहुंची आमों की खेप इस बार क्वालिटी खराब होने की वजह से वापस कर दी गई है। इसके बाद से निर्यातक विदेश से ऑर्डरों पर वैसे भी बहुत सावधानी बरत रहे हैं। प्रदेश के कारोबारी बताते हैं कि उन्हें निर्यात के सीधे ऑर्डर बहुत मुश्किल से मिलते हैं। मगर मुंबई और दिल्ली के कारोबारी यहां से दशहरी की खेप मंगाकर विदेश भेजते हैं। शबीहुल हसन बताते हैं कि निर्यात के लिए आमों की खेप वेपर ट्रीटमेंट कराने के बाद बेंगलूरु भेजी जा रही है मगर उम्मीद के उलट ऑर्डर बहुत कम हैं। खाड़ी देशों में निर्यात के लिए कुछ ऑर्डर स्थानीय कारोबारियों के पास आए हैं मगर मंडी में इस बार निर्यात के नाम पर उत्साह कम ही दिख रहा है।

पैदावार के मामले में उत्तर प्रदेश पूरे देश में सबसे आगे

आम की पैदावार के मामले में उत्तर प्रदेश पूरे देश में सबसे आगे है। भारत में होने वाले आम के कुल उत्पादन में इस प्रदेश की ही 23.47 फीसदी हिस्सेदारी है। किसी भी दूसरे राज्य के मुकाबले आम की सबसे ज्यादा किस्में भी उत्तर प्रदेश में ही पाई जाती हैं। यहां दशहरी, लंगड़ा, सफेदा, चौसा, मलका, लखनउवा, फजली, रामकेला, आम्रपाली, देसी और बंबइया समेत करीब दो दर्जन किस्म के आम उगाए जाते हैं। मगर अपने रंग, जायके और खुशबू की वजह से दशहरी आम इनमें सबसे ज्यादा मशहूर हैं। काकोरी-मलिहाबाद इलाके में खास तौर पर पैदा होने वाले दशहरी आम का रकबा करीब 30,000 हेक्टेयर में फैला हुआ है। इसके अलावा लखनऊ के पड़ोसी जिले हरदोई, सीतापुर, उन्नाव और बाराबंकी में भी बागवान दशहरी उगाते हैं।

First Published - June 1, 2025 | 10:57 PM IST

संबंधित पोस्ट