मंदी और खर्च में सुस्ती के संकेत संपन्न गांवों में भी दिखाई दे रहे हैं। उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में मथुरापुर गांव के शेखर सिंह बाइक के शौकीन हैं। 2022 में जब उनका किसान परिवार आसानी से खर्च कर सकता था तो उन्होंने अपने लिए रॉयल एनफील्ड खरीदी। मगर यह साल अच्छा नहीं रहा। इसलिए उनके परिवार ने गैर-जरूरी खर्च से बचने का फैसला किया।
मथुरापुर खेती-बाड़ी वाला गांव है, जहां 2,500 की आबादी में जाट ज्यादा हैं। खरीफ की खेती खराब होने से वहां के किसान हाथ बांधकर खर्च कर रहे हैं। शेखर के चाचा संजीव कुमार ने कहा कि 1 एकड़ में पिछले साल औसतन 15 क्विंटल धान हुआ था मगर इस साल केवल 5 क्विंटल ही हो पाया। कुमार ने कहा, ‘हमारा घर का खर्च तो उतना ही है। अपने खाने के लिए हम अनाज और सब्जियां उगाते हैं मगर ट्रैक्टर चलाने के लिए ईंधन और फसल तथा उर्वरक का खर्च भारी पड़ रहा है।’
आसपास जाने के लिए ग्रामीण दोपहिया का इस्तेमाल करते हैं मगर कार तो दूर का सपना है। परिवार को कहीं जाना हो तो गाड़ी किराये पर ली जाती है। परिवार के बुजुर्ग अरुण कुमार ने कहा, ‘हम गीजर खरीदना चाहते थे मगर टाल दिया क्योंकि खेती का खर्च पूरा करना पहले जरूरी है। हम ठंडे पानी से या बाहर धूप में नहा सकते हैं।’ घर में पैसे की तंगी होती है तो डायरेक्ट-टु-होम टेलीविजन का पैक भी एक-दो महीने रिचार्ज नहीं कराया जाता है।
शेखर बताते हैं कि सर्फ एक्सेल जैसा 1 किलोग्राम डिटरजेंट 135 से 140 रुपये में आता है मगर स्थानीय ब्रांड के डिटरजेंट 100 रुपये में 3 किलो आ जाते हैं। ऐसे में ग्रामीण अपने बजट के हिसाब से ब्रांडेड या सस्ता उत्पाद चुन लेते हैं।
मगर गांव के दूसरे लोग भी महंगाई की शिकायत कर रहे हैं। नाम नहीं छापने की शर्त पर सरकारी स्कूल के एक शिक्षक ने कहा कि वह हर महीने 85,000 रुपये कमाते हैं मगर बढ़ती महंगाई के कारण खर्च कम करने पड़ रहे हैं। उनके तीन बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ते हैं और इसलिए वह इस साल मेवे या गरम कपड़े नहीं खरीद रहे।