मात्रा के हिसाब से देश में उतनी ही दवा बिक रही हैं, जितनी कोरोना महामारी से पहले बिक रही थीं। मगर बाजार अनुसंधान एजेंसी फार्मारैक अवाक्स के आंकड़े बताते हैं कि बिकने वाली दवाओं की कीमत पहले से ज्यादा है क्योंकि दवाओं के दाम भी बढ़ चुके हैं।
भारतीय फार्मास्युटिकल बाजार में अप्रैल 2023 में बिकी दवाओं की मात्रा अप्रैल 2019 के मुकाबले 0.21 फीसदी ज्यादा रही। इस दौरान हृदयरोग, मधुमेह की दवाओं और विटामिन आदि की मात्रात्मक बिक्री यानी खपत कम हुई है। मगर श्वसन, संक्रमण और दर्द की दवा इस साल अप्रैल तक अधिक मात्रा में बिकी हैं।
कोविड-19 का सबसे अधिक असर श्वसन प्रणाली पर पड़ता है। इसलिए इसके संक्रमण से उबर चुके लोगों को भी लंबे समय तक खांसी या सांस की तकलीफ से जूझना पड़ सकता है। दमा जैसी बीमारियों से पहले ही जूझ रहे लोगों के लिए स्थिति और भी गंभीर हो सकती है। यही वजह है कि अधिकतर दवाओं के मामले में मूल्य और मात्रा के लिहाज से अप्रैल 2023 में भारतीय दवा बाजार की बिक्री घटी मगर श्वसन और संक्रमण की दवाएं ज्यादा बिकी हैं।
Pharmarack AWACS की उपाध्यक्ष (कॉमर्शियल) शीतल सापले ने कहा, ‘संक्रमणरोधी, श्वसन और दर्द निवारक दवाएं छोड़ दें तो अप्रैल में भारतीय फार्मास्युटिकल बाजार में अधिकतर दवाओं की बिक्री गिरी है। दर्द निवारक श्रेणी में भी मात्रा के लिहाज से बिक्री ठहरी ही रही। श्वसन संबंधी बीमारियों के उपचार में मूल्य एवं मात्रा यानी दोनों मोर्चे पर वृद्धि दर्ज की गई है।’
मात्रात्मक बिक्री में ठहराव चिंता का विषय है लेकिन मूल्य के लिहाज से वृद्धि भारतीय फार्मास्युटिकल बाजार के लिए सकारात्मक रही।
अप्रैल 2019 में भारतीय फार्मास्युटिकल बाजार 1,32,810 करोड़ रुपये का था, जो अप्रैल 2023 में बढ़कर 1,84,859 करोड़ रुपये हो गया। अप्रैल 2022 के मुकाबले इसमें 9.7 फीसदी इजाफा हुआ। अन्य सभी प्रमुख उपचार श्रेणियों में भी मूल्य के लिहाज से बिक्री बढ़ी है।
उदाहरण के लिए इस साल अप्रैल में हृदयरोग की 23,999 करोड़ रुपये की दवाएं बिकीं, जबकि अप्रैल 2019 में 16,527 करोड़ रुपये की दवा ही बिकी थीं। मूल्य के लिहाज से बिक्री इसलिए बढ़ रही है क्योंकि दवा कंपनियों ने इस बीच दवाओं की कीमतें बढ़ाई हैं।
यदि आप कुल सालाना कारोबार के लिहाज से अप्रैल 2023 के आंकड़ों पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि मात्रात्मक बिक्री महज 1.9 फीसदी बढ़ी मगर मूल्य के लिहाज से बिक्री 5.9 फीसदी बढ़ी और नई दवाओं की बिक्री 1.8 फीसदी ज्यादा रही। केवल अप्रैल का महीना देखें तो 2022 के मुकाबले 2023 में 8.2 फीसदी कम दवा बिकीं। मगर बिकने वाली दवाओं की कीमत 4.8 फीसदी ज्यादा रही।
मझोले आकार की एक दवा कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अधिकतर उपचारों के लिए मात्रात्मक बिक्री स्थिर रहने से संकेत मिलता है कि हृदयरोग और मधुमेह की प्रमुख दवाओं के पेटेंट खत्म होने के बावजूद बाजार का विस्तार नहीं हुआ है। वैश्विक महामारी के दौरान लोग अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को लेकर चिंतित थे। इसलिए उस दौरान विटामिन की दवाएं खूब खरीदी जा रही थीं मगर अब उनकी बिक्री भी सुस्त पड़ गई है।