उत्तर प्रदेश का सहारनपुर लकड़ी के सामान और कलाकृतियों का बड़ा केंद्र है और यहां काष्ठ कला उद्योग खूब फलता-फूलता है। कुछ समय पहले सहारनपुर में लकड़ी के हरेक कारखाने और दुकान में राम मंदिर के मॉडल ही नजर आ रहे थे।
अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से पहले कारीगर भी मॉडल बनाने में इतने व्यस्त थे कि उन्हें दूसरे कामों के लिए फुरसत ही नहीं थी मगर अब तस्वीर एकदम जुदा है। राम मंदिर के मॉडलों की मांग बहुत कम हो गई है, इसलिए मंदिर बनाने वाले उद्यमी और कारीगर लगभग खाली बैठे हैं। उन्हें दीवाली के आसपास इन मॉडलों की मांग बढ़ने की उम्मीद थी मगर वह आस भी पूरी नहीं हुई।
राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद से दर्शन करने के लिए 2.5 करोड़ से अधिक श्रद्धालु अयोध्या जा चुके हैं। प्राण प्रतिष्ठा के बाद रोजाना 1.5 लाख से अधिक श्रद्धालु अयोध्या पहुंच रहे थे। यह रेला देखकर उद्यमियों को लग रहा था कि मंदिर के भीतर रामलला की पहली दीवाली तक मंदिर के मॉडलों की मांग बहुत अधिक रहेगी। लेकिन अप्रैल के बाद से इनकी संख्या घटी है और अब 70,000 से 90,000 श्रद्धालु ही दर्शन करने पहुंच रहे हैं।
दीवाली पर भी मंदिर मॉडल की मांग नहीं आई। अब कारीगरों को लग रहा है कि राम मंदिर बनने के समय उमड़ा जोश अब ठंडा पड़ गया है और आगे भी राम मंदिर के मॉडल का कारोबार सुस्त ही रहेगा।
प्राण प्रतिष्ठा से पहले सहारनपुर में राम मंदिर मॉडल बनाने का काम शुरू करने वाले रवि शर्मा कहते हैं, ‘उस समय इन मॉडल की मांग इतनी ज्यादा थी कि उन्हें 7 से 8 मशीनों पर राम मंदिर मॉडल बनवाने पड़ रहे थे फिर भी इनके ऑर्डर पूरे नहीं हो पा रहे थे। मंदिर बनने के जोश और भारी ऑर्डर देखकर हम लोगों को लग रहा था कि कम से कम एक साल तक इनकी मांग बहुत अधिक रहेगी।’
मगर अचानक इन नन्हें राम मंदिरों की मांग एकदम ठंडी पड़ गई। इसलिए अब एक या दो मशीन पर ही मॉडल बनाए जा रहे हैं। शर्मा बताते हैं कि पहले की तुलना में अब 20 फीसदी ऑर्डर भी नहीं आ रहे और नया माल बनाने के बजाय पहले से इकट्ठे मॉडल बेचने पर ही जोर दिया जा रहा है।
सहारनपुर में ही आलिया आर्ट ऐंड क्राफ्ट के नदीम मलिक ने बताया कि राम मंदिर बनने से पहले काष्ठ कला उद्यमियों के पास काम काफी कम था और कई कारखाने तो लगभग बंदी के करीब थे। ऐसे में प्राण प्रतिष्ठा से पहले सरगर्मी बढ़ने पर उद्यमियों के पास लकड़ी के राम मंदिर के ऑर्डरों का ढेर लग गया और सहारनपुर के कारखानों में नई जान भी आ गई। लेकिन अब ऑर्डर लगभग खत्म हो गए हैं और लकड़ी के उत्पादों की निर्यात मांग भी सुस्त पड़ गई है। इसलिए काष्ठ कला उद्यमियों का धंधा काफी मंदा चल रहा है।
उत्तर प्रदेश के ही मुरादाबाद में निजाम मेटलवेयर के शुएब शम्सी कुछ महीने पहले तक राम मंदिर के पीतल और लकड़ी से बने मॉडल बेच रहे थे। लेकिन अब मंदिरों के ऑर्डर लगभग खत्म हो गए हैं और उन्हें भगवान राम की पीतल की मूर्तियां बनाने थोड़े बहुत ऑर्डर ही मिल रहे हैं।
राजधानी दिल्ली के कारोबारी विजय पाल ने प्राण प्रतिष्ठा से पहले राम मंदिर मॉडल की भारी मांग देखकर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और दूसरे राज्यों के शिल्पियों को इन्हें बनाने के ऑर्डर दिए थे। उन्होंने मॉडल बनाने के लिए 8 मशीनें भी खरीदी थीं।
पाल बताते हैं कि मंदिर के उद्घाटन से पहले और कुछ महीने बाद तक तो काफी ऑर्डर मिले मगर पिछले दो-तीन महीने से इनकी मांग 25-30 फीसदी ही बची है। इसलिए अब दो मशीनों पर ही मॉडल बनाने का काम हो रहा है।
पाल बताते हैं कि सबसे ज्यादा मांग 4 इंच से 12 इंच के मंदिरों की रही, जिनकी कीमत 125 रुपये से 700 रुपये तक है। राम मंदिर के मॉडलों के साथ ही उस समय भगवान राम के चित्र, झंडे, पटके, बैनर आदि की भी खूब मांग थी। लेकिन अब इनकी मांग भी ठंडी पड़ गई है।