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कर्मचारियों के काम के घंटों पर जारी बहस ने भले ही कंपनियों और कर्मचारियों को विभाजित कर रखा हो, लेकिन भारतीय कंपनी जगत के प्रमुखों ने कहा कि जो बात मायने रखती है, वह है परिणाम। मैरिको के प्रबंध निदेशक सौगत गुप्ता ने कहा, ‘घंटे मायने नहीं रखते, परिणाम मायने रखते हैं।’ गुप्ता नैसकॉम टेक्नोलॉजी लीडरशिप फोरम की पैनल परिचर्चा में बोल रहे थे।
कैपजेमिनाई के इंडिया हेड अश्विन यार्डी ने कहा, ‘मैं कहूंगा कि साढ़े 47 घंटे। हम सप्ताह में पांच दिन हर रोज 9.5 घंटे काम करते हैं। पिछले चार वर्षों से मेरा मार्गदर्शक सिद्धांत यह है कि सप्ताहांत पर ईमेल न भेजें, भले ही यह कोई बड़ी बात तो, जब तक कि हमें पता न हो कि हम इसे सप्ताहांत पर हल कर सकते हैं। मैं ईमेल नहीं भेजता।’
उन्होंने आगे कहा कि सहकर्मियों को ईमेल भेजने का कोई मतलब नहीं है, यह जानते हुए कि यह समस्या सप्ताहांत में हल नहीं होगी। उन्होंने कहा कि अपनी टीम को किसी बड़ी बात के बारे में चिंता करने के लिए क्यों परेशान किया जाए, जबकि वे अच्छी तरह जानते हैं कि वे इसे सप्ताहांत पर हल नहीं कर सकते। मैं पूरी लगन से सप्ताहांत में कोई ईमेल नहीं भेजने का पालन कर रहा हूं। यार्डी ने यह भी कहा कि जब जरूरत पड़ी, तो उन्होंने सप्ताहांत में काम भी किया है।
यह इस बात पर निर्भर करता है कि कोई व्यक्ति किस तरह काम कर रहा है और यह बात साफ तौर पर घंटों की संख्या पर निर्भर नहीं होती। सैप लैब्स इंडिया में वरिष्ठ उपाध्यक्ष और प्रबंध निदेशक सिंधु गंगाधरन ने कहा, ‘कभी-कभी आप आधे घंटे में कोई काम कर सकते हैं और कभी-कभी इसमें 15 घंटे लग सकते हैं। यह वास्तव में इस बात पर निर्भर करता है कि आप क्या कर रहे हैं।’ गुप्ता ने कहा, ‘अगर आप वाकई अपने काम से प्यार करते हैं और आप उसमें अच्छा काम करते हैं, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि काम और जीवन क्या है।’