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कोविड के 5 साल: छोटे उद्यमियों को कारोबार बंद होने से लेकर ऑनलाइन बदलाव तक, कई चुनौतियों से करना पड़ा सामना

वैश्विक महामारी से पहले भी छोटे कारोबारी वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) और नोटबंदी के प्रभावों से जूझ रहे थे।

Last Updated- January 29, 2025 | 11:14 PM IST

हरियाणा में गुरुग्राम के पास मानेसर के लेबर चौक पर एकत्रित हुए हजारों दिहाड़ी मजदूरों के बीच 39 वर्षीय चंद और उनके दोस्त अजय भी काम मिलने की उम्मीद में खड़े हैं। दोनों दोस्त सामने मौजूद तमाम मुश्किलों के बावजूद अपनी मौजूदा स्थिति पर दिल खोलकर हंसते हैं। एशिया के सबसे साक्षर गांव समझे जाने वाले उत्तर प्रदेश के धोर्रा माफी के रहने वाले इन दोनों दोस्तों के लिए नई दिल्ली तक की उनकी यात्रा वैसी नहीं थी जैसी उन्होंने उम्मीद की थी।

चंद ने कहा, ‘हम जींस को डाई करने का छोटा कारोबार करते थे। मगर वैश्विक महामारी की पहली लहर और लॉकडाउन के कारण हमें उसे बंद करना पड़ा।’ उन्होंने कहा, ‘हम उस कारोबार को दोबारा शुरू करना चाहते थे और इसलिए उधार लेने की भी कोशिश की। मगर भारी अनिश्चितता के कारण हमें कोई भी उधार नहीं देना चाहता था। इसलिए आज हम यहां दिहाड़ी मजदूरी की तलाश में खड़े हैं।’

उनकी कहानी देश भर के उन तमाम छोटे कारोबारियों के संघर्षों को बयां करती है जो कोविड महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।

भारत में 30 जनवरी, 2020 को कोविड का पहला मरीज पाया गया था। उसके पांच साल बाद भी कई छोटे कारोबारी अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हालांकि कुछ लोग इस कठिन दौर से उबरने में कामयाब भी रहे। मुंबई की मशहूर दुकान वागले स्पोर्ट्स के मालिक मनोहर वागले ने कहा, ‘मेरे परदादा ने 1865 में यह दुकान खोली थी। मैं इसे चलाने वाली चौथी पीढ़ी से आता हूं।’ उन्होंने कहा कि उनके पूर्वजों ने दो विश्व युद्धों के अलावा स्वतंत्रता संग्राम और चीन एवं पाकिस्तान के साथ युद्ध जैसी चुनौतियों का सामना किया था। उन्होंने कहा, ‘कोविड महामारी शायद मेरी सबसे बड़ी परीक्षा थी।’

चौतरफा असर

वैश्विक महामारी से पहले भी छोटे कारोबारी वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) और नोटबंदी के प्रभावों से जूझ रहे थे। कुछ छोटे कारोबारियों के लिए कोविड महामारी और उसके बाद का लॉकडाउन अंतिम झटका साबित हुआ। मगर कुछ अन्य लोग मुश्किल की इस घड़ी से निकलने में कामयाब रहे। चंद ने कहा, ‘वैश्विक महामारी से पहले हमारे पास पर्याप्त ग्राहक आते थे। उनमें अधिकतर औद्योगिक श्रमिक होते थे क्योंकि हम बेहद वाजिब कीमत पर पैंट डाई कर देते थे।’ उन्होंने कहा, ‘हम बहुत अच्छा तो नहीं लेकिन ठीक-ठाक काम कर लेते थे।’ उन्होंने अपने कारोबार के लिए ऋण लिया था जिसकी अदायगी भी कर रहे थे। उन्होंने कहा ‘शुरू में तो हमें कोविड के बारे में पता भी नहीं था, लेकिन जून तक हालात इतने खराब हो गए कि हमें किराया चुकाने के लिए अपनी बचत भी गंवानी पड़ी।’

पूरे देश में ऐसी ही स्थिति दिख रही थी। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के आंकड़ों से पता चलता है कि जनवरी से दिसंबर 2020 तक 1.27 करोड़ लोगों ने अपने ईपीएफ खातों से रकम निकाली, जबकि 2019 में यह आंकड़ा महज 54 लाख था। वागले ने कहा कि उनके लिए सुधार की रफ्तार काफी सुस्त रही है। उन्होंने कहा, ‘कारोबार अभी भी पूरी तरह पटरी पर नहीं लौट पाया है। हमें खार जिमखाना में अपनी दुकान बंद करनी पड़ी थी। हमारा कारोबार वैश्विक महामारी से पहले के मुकाबले करीब 40 फीसदी कम हो चुका है।’ बिना बिके माल का स्टॉक छोटे कारोबारियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी। बिक्री घटने के कारण दुकानों में बिना बिके उत्पादों के ढेर लग गए। इससे दुकानदारों को काफी नुकसान हुआ।

नागपुर में दवा दुकान चलाने वाले आलोक उबगडे ने कहा, ‘कोविड की दूसरी लहर के बाद बिक्री काफी घट गई थी जिससे हमारे पास स्टॉक बढ़ता गया।’ उन्होंने कहा, ‘हमारी कुछ दवा एक्सपायर हो गई और हमें काफी नुकसान उठाना पड़ा। हालांकि अब हालात पहले के मुकाबले बेहतर है और हम कोविड पूर्व स्तर पर लौट आए हैं।’

वागले ने कहा कि उनके लिए स्टॉक मंगवाना जानबूझकर जोखिम लेने जैसा हो गया। उन्होंने कहा, ‘हम पहले काफी स्टॉक रखते थे क्योंकि हमारे विनिर्माता उत्तर भारत में हैं। इसलिए थोक खरीदारी करना समझदारी की बात थी। मगर अब आपूर्तिकर्ता भी उधारी पर कम माल ही देते हैं और हमें अग्रिम भुगतान करना पड़ता है। इसलिए अब पूरी आपूर्ति श्रृंखला ही बदल गई है।’

छोटे कारोबारियों की दूसरी सबसे बड़ी चुनौती किराये की थी। पटना में प्रिंस ऑप्टिकल के मालिक राजेश अग्रवाल ने कहा, ‘कोविड महामारी के बाद बिक्री लगभग आधी हो गई लेकिन हमें किराया और कर्मचारियों का वेतन समय पर देना पड़ता था। उसमें कोई रियायत नहीं थी। बिना बिक्री के दुकान चलाना मुश्किल था। हमें सरकार से भी कोई मदद नहीं मिली।’

चेन्नई के एक प्रोपराइटर पीके क्विमिका के लिए यह मात्रा से अधिक गुणवत्ता का मामला था। उन्होंने कहा, ‘हमें बेहद सावधानी से ऐसे आपूर्तिकर्ताओं को चुनना पड़ा जो समय पर आपूर्ति कर सकें। कच्चे माल की लागत भी काफी बढ़ गई थी।’ उन्होंने कहा कि मार्जिन में कटौती किए बिना ग्राहकों के लिए कीमतें कम रखना मुश्किल था। असंगठित क्षेत्र के उद्यमों के वार्षिक सर्वेक्षण आंकड़ों से साफ तौर पर पता चलता है कि कोविड महामारी के कारण तबाही कितनी भयानक थी। अप्रैल से जुलाई 2021 में दूसरे लॉकडाउन के दौरान असंगठित उद्यमों की संख्या घटकर 50.3 लाख रह गई। हालांकि 2022-23 में वह आंकड़ा 6.5 करोड़ तक पहुंच गया जो 2015-16 में 6.33 करोड़ का था। साल 2023-24 में यह आंकड़ा बढ़कर 7.34 करोड़ हो गया।

नई सामान्य स्थिति

लॉकडाउन के दौरान सख्ती और सोशल डिस्टेंस के कारण छोटे कारोबार को अपना अस्तित्व बचाने के लिए काफी बदलाव करना पड़ा। कोविड के बाद तकनीकी का महत्त्व काफी बढ़ गया और कारोबार को बनाए रखने के लिए ऑनलाइन भुगतान एवं होम डिलिवरी जैसी सुविधाएं जरूरी हो गईं। अग्रवाल ने कहा कि कोविड महामारी के बाद से खुदरा कारोबार में काफी बदल गया। उन्होंने कहा, ‘खुदरा कारोबार में गिरावट दर्ज की गई लेकिन ऑनलाइन बिक्री बढ़ गई।’ उन्होंने कहा कि ग्राहक होम डिलिवरी और ऑनलाइन विकल्पों का उपयोग करना पसंद करने लगे हैं। उन्होंने कहा, ‘हमारे अधिकतर लेनदेन अब डिजिटल हो गए हैं। महज 10 फीसदी ग्राहक ही नकद भुगतान करते हैं।’

वागले ने कहा, ‘अब हमें फोन और व्हाट्सऐप पर ऑर्डर मिल रहे हैं। अधिकतर लोग खरीदारी के लिए बाहर नहीं निकलना चाहते हैं। इसलिए हमने डिलिवरी सेवाओं के साथ गठजोड़ किया है।’ वित्त मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि कोविड महामारी के बाद डिजिटल लेनदेन में काफी तेजी आई है। वित्त वर्ष 2020 में 4.57 अरब डिजिटल लेनदेन हुआ था जो बढ़कर वित्त वर्ष 2022 में 8.84 अरब तक पहुंच गया।

कुछ कारोबारियों को प्रौद्योगिकी अपनाने के अलावा पूरी उत्पाद श्रृंखला पर भी नए सिरे से विचार करना पड़ा। वागले ने कहा कि वैश्विक महामारी ने खेल के सामान का स्वरूप ही बदल दिया। उन्होंने कहा, ‘लोगों ने क्रिकेट बैट और बैडमिंटन रैकेट जैसे आउटडोर खेल के सामानों को खरीदना ही बंद कर दिया था। मगर कैरम और लूडो की मांग बढ़ गई थी और इसलिए हमने उस ओर ध्यान दिया।’

ओडिशा के बालासोर में किराना दुकान चलाने वाले रतिकांत बिस्वाल पहले लॉकडाउन की घोषणा से कुछ दिन पहले वह अपना कारोबार शुरू करने की तैयारी कर रहे थे। मगर उन्होंने खुद को बचाए रखने के लिए आवश्यक वस्तुओं की बिक्री शुरू कर दी। उन्होंने कहा, ‘आवश्यक सेवाओं के तहत आने वाले कारोबार जारी थे लेकिन दूसरों को काम बंद करना पड़ा।’ उन्होंने कहा कि दमदार बचत और वित्तीय संसाधन वाले मालिकों ने अपना काम दोबारा शुरू करने के लिए लॉकडाउन हटने तक इंतजार किया।

सबकुछ निराशाजनक ही नहीं

कोविड महामारी के दौरान कई लोगों ने काफी संघर्ष किया, लेकिन कुछ कारोबार को फलने-फूलने का भी अवसर मिला। उबगडे के लिए आयुर्वेदिक एवं हर्बल उत्पादों की मांग में जबरदस्त वृद्धि एक उम्मीद की किरण थी। उन्होंने कहा, ‘लोग अब आयुर्वेदिक उपचार के प्रति अधिक जागरूक हो गए और वे अपने स्वास्थ्य पर अधिक खर्च करने लगे हैं।’ उन्होंने कहा, ‘वास्तव में कोविड महामारी के दौरान कारोबार में उछाल आई थी। हमें किसी चुनौती से नहीं जूझना पड़ा क्योंकि हमें आवश्यक सेवाओं के तहत वर्गीकृत किया गया था।’

नई दिल्ली के चांदनी चौक में एक कपड़ा दुकान के मालिक ने अपनी पहचान जाहिर न करने की शर्त पर कहा कि उन्हें डिजाइनर मास्क में जबरदस्त अवसर दिखा था। उन्होंने कहा, ‘उस दौरान हम काफी संघर्ष कर रहे थे। मगर एक दिन एक दवा दुकानदार ने हमें मास्क सिलने का ऑर्डर दिया। मास्क बनाने के लिए हमने बचे हुए कपड़े का इस्तेमाल किया और हमारा मास्क हिट हो गया।’ अब उनके कारोबार में डिजाइनर मास्क की करीब 15 फीसदी हिस्सेदारी है।

First Published - January 29, 2025 | 11:14 PM IST

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