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कर्नाटक हाईकोर्ट ने खारिज की X की याचिका, कहा- सहयोग पोर्टल जनता की भलाई का साधन

अदालत ने कहा, ‘कोई भी सोशल मीडिया मंच, भारतीय बाजार को सिर्फ एक खेल का मैदान नहीं मान सकता। ऐसे में सोशल मीडिया की सामग्री का नियमन करने की आवश्यकता है।’

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भाविनी मिश्रा   
Last Updated- September 24, 2025 | 9:52 PM IST

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार के सहयोग पोर्टल के खिलाफ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) की याचिका बुधवार को खारिज कर दी। अदालत ने कहा कि यह प्लेटफॉर्म ‘सार्वजनिक भलाई का एक साधन’ है, जो सरकार के लिए कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक है।

न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना ने अपने फैसले में कहा, ‘सहयोग पोर्टल, संवैधानिक रूप से गलत नहीं है। वास्तव में यह आईटी अधिनियम की धारा 79(3)(बी) और 2021 के नियम 3(डी) के तहत बनाया गया एक ऐसा साधन है जो जनता के कल्याण का एक जरिया है। यह नागरिक और मध्यस्थों के बीच सहयोग की एक मिसाल है और यह एक ऐसा तरीका है जिसके माध्यम से सरकार साइबर अपराध के बढ़ते खतरे से निपटने की कोशिश कर रही है।’

आईटी नियम, 2021 के नियम 3 (1) (डी) के अनुसार, एक ऑनलाइन मध्यस्थ को नियमों का उल्लंघन करने वाली जानकारी को ऐसी सूचना प्राप्त होने के 36 घंटों के भीतर हटाना या उस तक पहुंच को बाधित करना अनिवार्य है। अदालत ने यह भी कहा कि कंपनी के तर्क ‘बिना किसी ठोस आधार’ के थे। यह देखते हुए कि सोशल मीडिया को अराजक स्वतंत्रता की स्थिति में नहीं छोड़ा जा सकता, अदालत ने कहा कि हर संप्रभु राष्ट्र, सोशल मीडिया को नियंत्रित करता है।

अदालत ने कहा, ‘कोई भी सोशल मीडिया मंच, भारतीय बाजार को सिर्फ एक खेल का मैदान नहीं मान सकता। ऐसे में सोशल मीडिया की सामग्री का नियमन करने की आवश्यकता है।’ बुधवार को अपने फैसले में, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम की धारा 79(3)(बी) की एक्स की व्याख्या भी खारिज कर दी।

आईटी अधिनियम की धारा 79(3)(बी) मध्यस्थों से ‘सुरक्षित ठिकाने’ की सुरक्षा हटा लेती है अगर उन्हें किसी गैरकानूनी काम के लिए इस्तेमाल हो रही ऐसी सामग्री की जानकारी मिलती है या सरकार से इस बारे में सूचना मिलती है और वे ‘तुरंत उस गैरकानूनी सामग्री को हटाने या उस तक पहुंच को रोकने’ में विफल रहते हैं।

अदालत ने कहा कि श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ के ऐतिहासिक मामले पर दोबारा विचार किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा, ‘श्रेया सिंघल ने 2011 के नियमों की बात की थी जो अब इतिहास बन चुके हैं। 2021 के नियम, अपनी अवधारणा में नए और अपने डिजाइन में अलग हैं, जिन्हें एक नए व्याख्यात्मक ढांचे की आवश्यकता है, जो पिछले शासन से जुड़ी मिसालों से अप्रभावित हो। विचारों के एक आधुनिक रंगमंच के रूप में सोशल मीडिया को अराजक स्वतंत्रता की स्थिति में नहीं छोड़ा जा सकता।’

श्रेया सिंघल के मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले ने सरकारी सेंसरशिप के खिलाफ महत्त्वपूर्ण सुरक्षा उपाय निर्धारित किए थे और ऑनलाइन मंचों की जिम्मेदारी स्पष्ट की थी। इस फैसले ने आईटी अधिनियम की धारा 66 ए रद्द कर दी जो कंप्यूटर या संचार उपकरणों के माध्यम से ‘अपमानजनक’ संदेश भेजने को अपराध मानती थी, लेकिन धारा 79(3)(बी) और 69ए को सुरक्षित ठिकानों के प्रावधानों के दुरुपयोग को रोकने के लिए सुरक्षा उपायों के साथ बरकरार रखा।

31 अक्टूबर, 2023 को, इलेक्ट्रॉनिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने सभी केंद्रीय मंत्रालयों, राज्य सरकारों, राज्य पुलिस महानिदेशकों और स्थानीय पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया था कि वे आईटी अधिनियम की धारा 79(3)(बी) के तहत जानकारी को बाधित करने के आदेश जारी करने के लिए अधिकृत हैं।

तब सोशल मीडिया क्षेत्र की दिग्गज कंपनी एक्स ने अदालत का रुख किया और यह तर्क दिया कि सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम की केंद्र की व्याख्या, विशेष रूप से धारा 79(3)(बी) का उपयोग, श्रेया सिंघल के एक ऐतिहासिक उच्चतम न्यायालय के फैसले का उल्लंघन करता है और ऑनलाइन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कमजोर करता है।

श्रेया सिंघल के फैसले में, अदालत ने यह भी फैसला सुनाया था कि धारा 79(3)(बी) के तहत, ऑनलाइन मध्यस्थों को उपयोगकर्ता द्वारा बनाई गई सामग्री के लिए तब तक जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता जब तक कि वे अदालत के आदेश या सरकारी निर्देश पर कार्रवाई करने में विफल न हों।

First Published : September 24, 2025 | 9:46 PM IST