न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई ने भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) के रूप में जिम्मेदारी संभाल ली है। उन्हें बुधवार को राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पद की शपथ दिलाई। देश के पहले बौद्ध मुख्य न्यायाधीश ने हिंदी में शपथ ली। उनका कार्यकाल 23 नवंबर, 2025 तक यानी लगभग छह महीने का है।
उनके बाद न्यायमूर्ति सूर्य कांत 24 नवंबर, 2025 से अगले मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यभार संभाल सकते हैं, जो 9 फरवरी, 2027 तक इस पद पर सेवाएं देंगे। उच्चतम न्यायालय में स्वीकृत पद 34 हैं, जबकि वर्तमान में यहां सीजेआई सहित 32 न्यायाधीश कार्यरत हैं। इनमें दो महिलाएं न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना भी हैं। न्यायमूर्ति त्रिवेदी 16 मई को सेवानिवृत्त हो रही हैं। खास यह कि वरिष्ठता नियम के अनुसार न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना 2027 में 36 दिनों के लिए मुख्य न्यायाधीश का पद संभालेंगी। इसी के साथ वह यह जिम्मेदारी निभाने वाली देश की पहली महिला होंगी।
मुख्य न्यायाधीश गवई ने पद की शपथ लेने के बाद पहली पंक्ति में बैठे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह तथा भारत के निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना और अपने परिवार के सदस्यों से हाथ मिलाया।
न्यायमूर्ति बीआर गवई का जन्म 24 नवंबर, 1960 को रामकृष्ण सूर्यभान गवई के घर हुआ था, जो महाराष्ट्र की राजनीति में सक्रिय थे और उन्होंने भीमराव आंबेडकर के साथ भी काम किया था।
न्यायमूर्ति गवई ने 25 साल की उम्र में एक वकील के रूप में करियर की शुरुआत की थी। उन्होंने आरंभिक दिनों में पूर्व महाधिवक्ता और बंबई हाई कोर्ट के न्यायाधीश रह चुके स्व. राजा एस. भोंसले के साथ काम किया। उसके बाद उन्होंने अकेले करियर को रफ्तार दी और 1990 तक बंबई हाई कोर्ट में स्वतंत्र रूप से प्रैक्टिस की। फिर उन्होंने अदालत के नागपुर पीठ के समक्ष प्रैक्टिस की।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने बुधवार को अपने 2022 के नियमों में संशोधन किया है। इससे विदेशी वकील और लॉ फर्म भारत में पारस्परिकता के आधार पर विदेशी कानून की प्रैक्टिस कर सकेंगे। बार काउंसिल ने 15 मई, 2023 को विदेशी वकीलों और लॉ फर्मों को पारस्परिकता के आधार पर देश में प्रैक्टिस करने की अनुमति दी थी। पारस्परिक कानून एक देश या राज्य के ऐसे कानून हैं, जो दूसरे देश या राज्य के नागरिकों को समान अधिकार और विशेषाधिकार देते हैं।
बार काउंसिल की ओर से बुधवार को जारी संशोधित नियमों में कहा गया है कि विदेशी वकीलों को गैर-मुकदमेबाजी मामलों तक सीमित किया जाएगा, जहां समाधान के लिए मामलों को अदालतों में नहीं ले जाया जाता है। यह विदेशी कानून, अंतरराष्ट्रीय कानून और विशेष रूप से सीमा पार लेनदेन एवं अंतरराष्ट्रीय विवादों की मध्यस्थता के संदर्भ में है।