विदेश मंत्री एस जयशंकर ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पश्चिम देशों की अगुआई में तैयार वैश्विक व्यवस्था पर तंज कसा है। जयशंकर ने मंगलवार को कहा कि मौजूदा वैश्विक व्यवस्था तभी प्रभावी हो पाएगी जब यह उचित एवं पारदर्शी ढंग से काम करेगी। उन्होंने कहा कि मौजूदा व्यवस्था की खूबियों को काफी बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जा रहा है जबकि असलियत अलग है।
उन्होंने नई दिल्ली में आयोजित ‘रायसीना डायलॉग’ बहुपक्षीय सम्मेलन में कहा कि कानून सम्मत व्यवस्था बनाए रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र का मजबूत होना जरूरी है मगर इसके लिए सबसे पहले इस वैश्विक संस्था को उचित एवं अधिक पारदर्शी तरीके से व्यवहार करना होगा। जयशंकर ने कहा, ‘पिछले 8 दशकों में दुनिया जिस रूप में आगे बढ़ी है उसकी अवश्य समीक्षा की जानी चाहिए और हमें इसे लेकर पूरी ईमानदारी भी बरतनी चाहिए। यह बात समझी जा सकती है कि दुनिया में संतुलन एवं सहभागिता में बदलाव आए हैं। हमें बातचीत की दिशा बदलनी होगी और सच कहें तो एक नई वैश्विक व्यवस्था तैयार करनी होगी।’
विदेश मंत्री ने कहा कि पश्चिमी देशों ने समान विषयों पर अलग-अलग देशों में भिन्न दृष्टिकोण अपनाए हैं। उन्होंने कहा कि पश्चिमी जगत ने अपने हितों को वरीयता देते हुए संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता से संबंधित मुद्दों पर वैश्विक नियम लागू किए है। जयशंकर ने कहा कि दूसरे महायुद्ध के बाद दुनिया में अगर किसी देश ने ‘सर्वाधिक लंबे समय तक’ अवैध कब्जे का अनुभव किया है तो वह भारत है जहां कश्मीर का एक हिस्सा (पीओके) अब भी अवैध नियंत्रण में है।
जयशंकर ने कहा कि पश्चिमी जगत आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले संगठनों जैसे तालिबान आदि पर अपने हितों को साधने के लिए नजरिया कई बार बदल चुका है। उन्होंने कहा कि म्यांमार में सैन्य तख्तापलट की कई बार आलोचना हुई है मगर भारत के पश्चिम में उसके पड़ोसी देश में हुए ऐसे घटनाक्रम पर चुप्पी दिखी है। जयशंकर का इशारा पाकिस्तान में हुए सैन्य तख्तापलट की तरफ था।
विदेश मंत्री ने सीमा पार से होने वाले राजनीतिक हस्तक्षेप का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा, ‘जब पश्चिमी देश दूसरे राष्ट्रों में हस्तक्षेप करते हैं तो कहा जाता है कि लोकतांत्रिक स्वतंत्रता बहाल करने के लिए वे ऐसा कर रहे हैं मगर जब दूसरे देश यही काम करते हैं तो उनके प्रयासों को संदेह की दृष्टि से देखा जाता है।’ जयशंकर ने कहा कि कभी-कभी छोटे देश भी वैश्विक अव्यवस्था का बेजा फायदा उठा सकते हैं और दुनिया में अस्थिरता फैला सकते हैं इसलिए एक वृहद अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की स्थापना बहुत जरूरी है।