अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने रुपये की विनिमय दर व्यवस्था के लिए ‘फ्लोटिंग’ लेबल को फिर से निर्धारित किया है। इसके पीछे हाल के समय में रिजर्व बैंक द्वारा विदेशी मुद्रा में कम हस्तक्षेप का हवाला दिया गया है। 2023 में आईएमएफ ने फ्लोटिंग तमगे को हटा दिया था और भारत की वास्तविक विनिमय दर नीति को ‘स्थिर व्यवस्था’ बताया था जिससे संकेत मिलता है कि केंद्रीय बैंक विदेशी मुद्रा बाजार में बहुत अधिक और बार-बार हस्तक्षेप कर रहा था।
आईएमएफ द्वारा अपने बोर्ड को प्रस्तुत ‘भारत पर 2025 की स्टाफ रिपोर्ट’ में कहा गया है, ‘रुपये की विनिमय दर अंतरबैंक बाजार में निर्धारित की जाती है जहां भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) अक्सर हस्तक्षेप करता है। आरबीआई अत्यधिक अस्थिरता को रोकने के लिए मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप करता है। भारत की विनिमय दर व्यवस्था फ्लोटिंग है और इसकी वास्तविक विनिमय दर व्यवस्था को क्रॉल जैसी व्यवस्था के रूप में वर्गीकृत किया गया है।’
आईएमएफ के अनुसार क्रॉल-जैसी व्यवस्था का तात्पर्य किसी देश और उसके व्यापारिक भागीदारों के बीच मुद्रास्फीति के अंतर को दर्शाने के लिए मुद्रा में छोटे, क्रमिक समायोजन से है। स्थिर व्यवस्था एक ऐसी प्रणाली को संदर्भित करती है जहां केंद्रीय बैंक के हस्तक्षेप के माध्यम से किसी मुद्रा की हाजिर बाजार दर को लंबी अवधि, आम तौर पर छह महीने या उससे अधिक के लिए एक संकुचित दायरे में रखा जाता है। भारत की बाहरी व्यापार और विदेशी मुद्रा नीतियां हाल के अतीत की तुलना में आईएमएफ स्टाफ की रिपोर्ट के अनुरूप है।
विनिमय दर में लचीलापन का प्रस्ताव करते हुए आईएमएफ ने कहा, ‘इस वर्ष विनिमय दर में उतार-चढ़ाव देखा गया है मगर विनिमय दर लचीलापन की गुंजाइश बनी हुई है। जिसमें हस्तक्षेप को अस्थिर जोखिम प्रीमियम की अवधि तक सीमित किया गया है।’
भारत के अधिकारियों का कहना है कि रुपया और डॉलर की विनिमय दर के लिए कोई विशेष स्तर लक्षित नहीं किया गया है और यह बाजार द्वारा निर्धारित होता है। रिपोर्ट में कहा गया, ‘उन्हें (भारतीय अधिकारियों को) लगा कि विनिमय दर में उतार-चढ़ाव काफी हद तक भारत के अच्छे फंडामेंटल्स को दिखाता है और अगर हस्तक्षेप किया भी गया तो उसका मकसद बहुत ज्यादा उतार-चढ़ाव को रोकना था।’
आईएमएफ बोर्ड में कार्यकारी निदेशक ऊर्जित पटेल की अगुआई में अधिकारियों द्वारा आईएमएफ स्टाफ को दिए गए बयान में यह बताया गया कि विनिमय दर लेकर आरबीआई की नीति पिछले कई वर्षों से एक जैसी रही है और इसका उद्देश्य स्थिरता को बनाए रखना है।
आईएमएफ स्टाफ रिपोर्ट में यह भी इशारा किया गया है कि भारतीय अधिकारियों ने मौजूदा अंतरराष्ट्रीय लेनदेन पर कुछ पाबंदियां लगाई हैं। इसमें उदारीकृत प्रेषण योजना (एलआरएस) के तहत भेजी गए रकम के लिए स्रोत पर संग्रहित कर (टीसीए) भी शामिल है। इसके लिए फंड के कार्यकारी बोर्ड से मंजूरी जरूरी है क्योंकि भारत ने 1994 में इन दायित्वों को स्वीकार किया था।
इसमें एलआरएस के तहत व्यक्तिगत प्रेषण के अलावा शैक्षिक, चिकित्सा और यातायात सेवाओं के भुगतान के लिए टीसीएस से होने वाले विनिमय पाबंदियों को उजागर किया गया। सरकार ने 2023 में एलआरएस के तहत बाहर भेजे जाने वाली रकम पर टीसीएस को 5 फीसदी से बढ़ाकर 20 फीसदी कर दिया था ताकि अधिक मूल्य वाले लेनदेन पर नजर रखा जा सके और बड़ी पूंजी को बाहर जाने से रोका जा सके।
अन्य पाबंदियों में चिकित्सा सेवा और शिक्षा के लिए सालाना 10 लाख रुपये की सीमा से अधिक के भुगतान पर 5 फीसदी कर (ऋण से किए गए भुगतान को छोड़कर) और यात्रा सेवा (विदेश यात्रा पैकेज) के लिए 10 लाख रुपये की सालाना सीमा से कम के भुगतान पर 5 फीसदी कर और उसके बाद 20 फीसदी कर शामिल था।