अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने बुधवार को भारत सरकार से अपने मध्यम अवधि के ऋण लक्ष्य की समीक्षा करने और राज्य सरकार के ऋण को भी शामिल करने के लिए ऋण के दायरे को व्यापक बनाकर इसे और अधिक महत्त्वाकांक्षी बनाने की सलाह दी है। आईएमएफ ने यह भी कहा कि वित्त वर्ष 2026-27 में राजकोषीय समेकन की गति शुल्क के उत्पादन पर पड़ने वाले असर के मुताबिक होनी चाहिए।
बहरहाल परामर्श के दौरान भारतीय अधिकारियों ने कहा कि ‘खासकर भारत सरकार द्वारा पालन किए जा रहे विश्वसनीय और पारदर्शी राजकोषीय मार्गदर्शन पथ को देखते हुए’ वित्त वर्ष 2026-27 में राजकोषीय समेकन को विराम देने पर विचार करना जल्दबाजी होगी। भारत सरकार ने वित्त वर्ष 2030-31 तक ऋण के लक्ष्य की पर्याप्तता 50 से एक प्रतिशत कम या ज्यादा रहने को लेकर भरोसा जताया है।
आईएमएफ ने कहा कि राज्यों को आगे और राजकोषीय सुधार करने की जरूरत है, जिससे ऋण को सततता के स्तर पर लाया जा सके और साथ ही बुनियादी ढांचे पर खर्च और सामाजिक व्यय को जारी रखा जा सके। इसने सुझाव दिया है कि 16वें वित्त आयोग को एक ऐसा विचलन फॉर्मूला बनाना चाहिए, जिससे इक्विटी का प्रदर्शन पर आधारित प्रोत्साहन के साथ संतुलन बन सके। इसमें कहा गया है कि मौजूदा विचलन फॉर्मूले में ज्यादा घाटे वाले राज्यों को समेकन या अपना राजस्व बढ़ाने के लेकर बहुत मामूली प्रोत्साहन दिया गया है।
आईएमएफने कहा है कि केंद्र सरकार का जीडीपी के 50 प्रतिशत से एक प्रतिशत कम या ज्यादा का लक्षित ऋण अनुपात आगे के बगैर किसी राजकोषीय कदम के हासिल किया जा सकता है। इसने कहा है कि तेज समेकन से अत्यधिक कर्ज भुगतान के बोझ से जल्द मुक्ति मिलेगी और इससे भविष्य के झटकों से बचाव के लिए राजकोषीय बफर बन सकेगा।
आईएमएफ ने उल्लेख किया है कि वृहद आर्थिक स्थिरता के लिए राज्यों की राजकोषीय सततता महत्त्वपूर्ण है, लेकिन राजकोषीय ढांचे का अनुपालन कमजोर है। इसने समय से आंकड़ों की रिपोर्टिंग और राज्य स्तर पर आकस्मिक देनदारियों जैसे मद के व्यापक खुलासे की सलाह दी है। आईएमएफ ने सरकार के इरादों को स्पष्ट करने और वित्तीय बाजारों का मार्गदर्शन करने के लिए बेहतर परिभाषित वार्षिक राजकोषीय समायोजन पथों के साथ मध्यम अवधि के लक्ष्य को चालू करने का सुझाव दिया है। आईएनएफ ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) दर और व्यक्तिगत आयकर में कमी किए जाने के असर की सावधानीपूर्वक निगरानी करने की सलाह दी है।