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पैसा है तो एंगर रूम में निकालें भड़ास

कुछ हफ्ते पहले ही किसी सदमे से गुजरने के बाद गुस्से में भरी बैठी अनुष्का ने जो किया, उसे मनोवैज्ञानिक 'डिस्ट्रक्शन थेरेपी' कहते हैं। इसका मतलब है… गुस्से से उबरने के लिए कुछ बरबाद कर देना।

Published by
अक्षरा श्रीवास्तव
Last Updated- April 14, 2023 | 9:00 PM IST

साल था 2017 और बुरी तरह चिड़चिड़ाई अनुष्का गुप्ता (बदला हुआ नाम) अपनी भड़ास निकालने का कोई तरीका तलाश रही थीं। उन्होंने इसके लिए बड़ा अजीब तरीका निकाला। नई दिल्ली की अनुष्का घर के पास एक कबाड़खाने में गईं और वहां एक कर्मचारी के हाथ में 500 रुपये का नोट थमा दिया। कर्मचारी उन्हें ताज्जुब से देखता रहा और अनुष्का ने अपने हाथ में एक स्पैनर लेकर वहां रखे सामान पर हमला बोल दिया। कुछ ही देर में उन्होंने वहां मौजूद करीब-करीब सारा सामान तोड़फोड़ दिया।

उन्होंने वहां रखे टीवी, म्यूजिक सिस्टम और धातु के डिब्बे फोड़ डाले। वहां पड़े इयरफोन रौंद दिए। उसके बाद उनकी नजर एक तरफ पड़े टेडी बियर पर पड़ी और उन्होंने उसे भी चीरना शुरू कर दिया। करीब 40 मिनट के बाद जब अनुष्का थमीं तो वह थक चुकी थीं मगर काफी अच्छा महसूस कर रही थीं।

कुछ हफ्ते पहले ही किसी सदमे से गुजरने के बाद गुस्से में भरी बैठी अनुष्का ने जो किया, उसे मनोवैज्ञानिक ‘डिस्ट्रक्शन थेरेपी’ कहते हैं। इसका मतलब है… गुस्से से उबरने के लिए कुछ बरबाद कर देना।

कुछ हजार किलोमीटर दूर इंदौर में यह थेरेपी पहले से ही चल रही है। 54 साल के अतुल मालिकराम ने 2017 में कैफे भड़ास खोला था, जहां थोड़ी रकम देकर आप तोड़फोड़ कर अपना गुस्सा निकाल सकते हैं। इन्हें रेज रूम कहें या ब्रेक रूम, एंगर रूम, डिस्ट्रक्शन रूम अथवा स्मैश रूम कहें। अब ये देश के कई शहरों में हैं।

हाल ही में बेंगलूरु में भी ऐसा ही एक रूम खुला है। अक्टूबर 2022 में हैदराबाद में भी एक रेज रूम खुला था। गुरुग्राम का ब्रेक रूम कुछ साल पहले बंद हो गया था। हैदराबाद में रेज रूम 25 साल के सूरज पुसरला ने शुरू किया था। एक स्टार्ट-अप में काम करने वाले सूरज एक दिन दोस्तों के साथ बैठे थे और बात कर रहे थे कि बच्चे अपनी भावनाएं जताने के लिए सामान तोड़ दें तो कोई कुछ नहीं कहता। बड़े होने पर भी कभी-कभी आपको उसी तरह भड़ास निकालने की जरूरत पड़ती है।

यहीं से रेज रूम की शुरुआत हुई। सूरज ने कबाड़ियों से बेकार सामान खरीदा और दो कमरों में भर दिया। लेकिन यहां आने वाला हर शख्स अनुष्का की तरह भड़ास निकालने नहीं आता। सूरज कहते हैं, ‘मैं तो यह उन लोगों के लिए चला रहा हूं, जिन्हें सामान तोड़ने में मजा आता है। हमारे पास ज्यादातर प्रेमी जोड़े होते हैं, जो डेटिंग करते समय कुछ हटकर अनुभव करना चाहते हैं।’ फिर भी यहां कम से कम 3 फीसदी लोग वे आते हैं, जो वाकई गुस्से में होते हैं और उसे निकालने के लिए जरिया तलाश रहे होते हैं।

मगर रेज रूम कैसे काम करते हैं? 20 मिनट तक भड़ास निकालने के लिए लोग यहां 800 से 2,800 रुपये तक चुकाते हैं। इसमें उन्हें क्रेट और इलेक्ट्रॉनिक कचरा वगैरह तोड़ने का मौका मिलता है। वे डार्ट से बोर्ड पर निशाना भी लगाते हैं। चोट से बचने के लिए उन्हें सुरक्षा सूट, हेलमेट, दस्ताने और जूते दिए जाते हैं।

तोड़फोड़ से जो कचरा होता है, उसे रीसाइक्लिंग के लिए भेज दिया जाता है और हर रविवार को नया माल आ जाता है। सूरज बताते हैं कि पिछले 100 दिन में उनके रेज रूम में 500 से ज्यादा ग्राहक आए हैं।

इंदौर में रेज रूम आपको ज्यादा व्यक्तिगत अनुभव कराता है। आने वाला शख्स जिस वजह से गुस्सा होता है, उससे जुड़ा हुआ सामान ही एंगर रूम में रखा जाता है। मान लीजिए प्रेमी या प्रेमिका से झगड़ा हुआ है तो कमरे में गिफ्ट बॉक्स, दिल की आकृति के गुब्बारे, बेडशीट और तस्वीरें भरी रहेंगी, जिन्हें कोई भी तोड़ सकता है या फाड़ सकता है।

दफ्तर की किसी बात पर भड़ास निकालनी है तो मेज, कुर्सियां, कंप्यूटर, फोन आदि रखकर कमरे में दफ्तर जैसा माहौल तैयार कर दिया जाएगा। इंदौर में रेज रूम तैयार करने वाले अतुल बताते हैं, ‘जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया घूमते हुए मेरे दिमाग में यह विचार आया।

मैं जानता हूं कि गुस्सा बुनियादी भावना है और उसे बाहर निकाला ही जाना चाहिए। इसके कई तरीके हैं। कुछ लोग गुस्से में जिम पहुंचकर कसरत शुरू कर देते हैं, तो कुछ लोग संगीत सुनकर गुस्सा शांत करते हैं। कुछ लोगों के लिए सामान तोड़ना गुस्सा दूर करने का रास्ता हो सकता है।’

जिन लोगों को ऐसे अस्थायी इलाज के बजाय गुस्से की समस्या का गंभीरता से इलाज कराना होता है, उनके लिए अतुल के पास डॉक्टर भी मौजूद हैं। इंदौर का यह एंगर रूम शुरू हुए छह साल बीत चुके हैं और अब तक यहां 1,700 से ज्यादा लोग आ चुके हैं।

क्या कहते विशेषज्ञ

गुस्सा निकालने के लिए चीजें तोड़ना-फोड़ना कुछ लोगों के लिए इलाज हो सकता है मगर गुस्से को काबू करना सिखाने वाले विशेषज्ञ मानते हैं कि इससे कुछ समय के लिए ही राहत मिल सकती है और गुस्से की समस्या ठीक से नहीं संभाली गई तो भारी नुकसान हो सकता है।

गुरुग्राम के एंगर मैनेजमेंट विशेषज्ञ आशिष सहगल कहते हैं, ‘यह बेवकूफी भरी बात है मगर बेवकूफी भरे दूसरे तरीकों की तरह यह भी काम कर जाता है।’ वह कहते हैं, ‘सामान तोड़ने से उस पल में तो आपकी भड़ास निकल जाता है मगर हमेशा के लिए दूर नहीं होती। इसके फायदे हैं मगर मुझे नहीं लगता कि ये फायदे बढ़िया हैं। यह विचार डिस्ट्रक्शन थेरेपी से आया है मगर इसका तरीका इलाज से बिल्कुल उलट है। इसमें दिमाग को सिखा दिया जाता है कि उसे नतीजों के बारे में सोचना ही नहीं है।’

जब लोग नतीजों के बारे में सजग होते हैं तो वे किसी भी काम से पहले पूछते हैं कि इसका नतीजा क्या होगा? नई दिल्ली में काउंसलिंग सेवा देना वाली संस्था सारथि में एंगर मैनेजमेंट विशेषज्ञ शिवानी साधू कहती हैं, ‘सवाल यह है कि जब एंगर रूम नहीं होगा तो कोई अपनी भड़ास कैसे निकालेगा? क्या वह घर जाएगा और वहां सामान तोड़ना शुरू कर देगा? क्या वह लोगों पर हमला करेगा? इसमें दिमाग गुस्से को हिंसक तरीके से निकालना सीख जाता है, जो सही नहीं है।’

आशिष और शिवानी दोनों का ही कहना है कि 10 में से 5 मामलों में पानी पीने या 20 तक उलटी गिनती गिनने जैसे छोटे-छोटे काम ही दिमाग को शांत कर देते हैं और भड़ास निकालने की जरूरत ही नहीं पड़ती। महामारी के डरावने अनुभव से उबर रहे और कामकाजी जगहों की बदलती सूरत से गुजर रहे समाज में आर्थिक मोर्चे पर उतार-चढ़ाव से जूझ रहे लोग साथ मिलकर गुस्से से कैसे निपटेंगे?

First Published : April 14, 2023 | 9:00 PM IST