वर्ष 2024 मौसम इतिहास का सबसे गर्म साल दर्ज किया गया था। इस साल हाल और भी बुरे हो सकते हैं। झारखंड, ओडिशा, महाराष्ट्र, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुंच गया है। जैसा अनुमान लगाया गया था, उससे पहले ही लू चलने लगी हैं। वैज्ञानिक इस वर्ष के लिए प्रतिकूल मौसमी घटनाओं के बारे में चेता रहे हैं। समुद्री सतह का बढ़ता तापमान शहरी बुनियादी ढांचा, रियल एस्टेट, फार्मास्युटिकल्स, ऊर्जा और कृषि क्षेत्रों को व्यापक तौर पर प्रभावित कर सकता है।
ला-नीना के निष्प्रभावी होने के बावजूद बीते फरवरी का महीना 125 वर्षों में सबसे अधिक गर्म दर्ज किया गया। मौसम विभाग के अनुसार मार्च से मई के दौरान दक्षिणी, एकदम उत्तर और पूर्वोत्तर क्षेत्र को छोड़ दें तो देश के अधिकांश हिस्सों में दिन का तापमान सामान्य से ऊपर रहने की संभावना है और लू चलने के दिनों में भी वृद्धि हो सकती है। अमूमन मार्च से जून के बीच लू चलती हैं और कभी-कभी ये जुलाई तक भी ठहर सजाती हैं। जब तापमान में विचलन 4.5 डिग्री सेल्सियस या इससे अधिक हो जाता है तो देश के तटीय इलाकों में लू या भीषण गर्मी शुरू हो जाती है। मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि लू जल्दी चलने लगती हैं तो आगे चलकर सर्दी का सीजन बहुत अधिक शुष्क रहने की संभावना बढ़ जाती है।
निजी मौसम एजेंसी स्काईमेट के उपाध्यक्ष महेश पलावत कहते हैं, ‘इस साल देश के लोगों ने सबसे शुष्क सर्दियों में से एक का सामना किया है।’ बढ़ते तापमान के बारे में पलावत कहते हैं, ‘मध्य प्रदेश के ऊपर छाया प्रति चक्रवात गर्म पूरवाई हवाओं को पश्चिमी तटों की ओर धकेल रही है। इस कारण समुद्री हवाओं के तट की ओर नहीं आने और भूमि पर हवाओं के अधिक समय तक चलने के कारण तापमान बढ़ रहा है।’
उन्होंने कहा कि तटीय क्षेत्रों में आद्रर्ता का स्तर अधिक रहने के कारण भी परेशानी बढ़ रही है। उन्होंने यह भी कहा कि मॉनसून पूर्व गतिविधियां अभी अप्रैल में शुरू हो सकती हैं तब तक उत्तर भारत खास कर हरियाणा, पंजाब, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तापमान सामान्य से ऊपर बने रहने की संभावना है। उन्होंने कहा, ‘पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और ओडिशा जैसे राज्यों में भीषण लू चलने की आशंका है।’
ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन 2023 में रिकॉर्ड स्तर पर दर्ज किया गया था। इस दौरान कार्बनडाई ऑक्साइड का स्तर 420 पीपीएम को पार कर गया था और मीथेन उत्सर्जन पिछले दशक के दौरान लगभग 14 प्रतिशत बढ़ गया था। इस कारण आर्कटिक क्षेत्र में बर्फ तेजी से पिघल रही है, महासागर अधिक गर्म हो रहे हैं और जंगलों में आग लगने की घटनाओं में वृद्धि हो रही है। ग्रीनहाउस गैसों द्वारा संचित 90 प्रतिशत ऊर्जा महासागरों में जमा होती है।
वर्ष 2024 के दौरान महासागरों की गर्मी पिछले 65 वर्षों में सबसे उच्च स्तर पर पहुंच गई थी। विश्व मौसम संगठन की हाल की रिपोर्ट में कहा गया कि 1960 से 2005 के दौर के मुकाबले पिछले दो दशकों में महासागरों के गर्म होने की दर दोगुने से भी अधिक रही है। इससे पिछले आठ वर्षों में प्रत्येक साल गर्मी का नया रिकॉर्ड बना रहा है। क्लाइमेट चेंज ऐंड सस्टेनेबिलिटी सर्विसेस, ईवाई इंडिया में पार्टनर सौनक साहा ने कहा, ‘बढ़ती गर्मी के कारण 2025 में अधिक प्रतिकूल मौसममी घटनाएं देखने को मिल सकती हैं।’ वह कहते हैं, ‘समुद्री सतह का तापमान 21 डिग्री सेल्सियस को पार करने के साथ महासागरों का गर्म होना जारी रह सकता है। इससे भीषण चक्रवाती तूफान और तटीय क्षेत्रों में बाढ़ की घटनाएं बढेंगी। इससे कुछ क्षेत्र जहां सूखे के शिकार होंगे तो वहीं कई जगह बाढ़ की स्थितियां बनेंगी।’